किन्नरों का अनोखा संसार, क़ानून और राजनीति में सक्रियता..

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         {किश्त130}

इंसान की पहचान ही उसके वजूद को जीने की वजह देती है लेकिन जब पहचान, परेशानी और , परेशानी का दाग बन जाये तो जीना मुहाल हो जाता है, फिर सबसे बड़ी परेशानी तो है कि उन्हें पूरा समाज न तो मर्द मानता या और ना ही औरत….?कभी भीड़ में,कभी घर आंगन में,कभी सड़क पर,कभी महफिलमें, कभी ढोलक की थाप पर, कभी तालियों की आवाज पर थिरकते,उन चेहरों को तो आपने भी देखा होगा। ये वो हैं जो जब-जब सामने आते हैं, नजरें ना चाहते हुए भी उन पर टिक जाती है, इनकी पहचान ही कुछ ऐसी बनी हुई थी कि हर खासो-आम इनसे बस किसी तरह पीछा छुड़ाना चाहता था,लेकिन जब ये पीछे पड़ जाएं तो इनसे पीछा छुड़ाना आसान नहीं होता है। दुनिया के साथ ही भारत में भी दो ही जेंडर थे पुरूष और महिलाएं।तमाम सुविधाएं,जरूरी पहचान, हक,अधिकार हासिल था पर 15 अप्रैल 2014को भारत की सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया तो तीसरे जेंडर ने भी कानूनन जन्म ले लिया, सुप्रीम कोर्ट ने करीब 50 लाख किन्नरों को इज्जत से सिर उठाकर जीने का हक दिया। सुको ने थर्ड जेंडर को वो सारे अधिकार देने को कहा, पिछड़ी जातियों को हासिल हैं। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, आरक्षण सभी शामिल है। इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में किन्नरों को बच्चा गोद लेने का अधि कार देने,साथ-साथ सेक्स चेन्ज करवाकर औरत या मर्द बनने का भी अधिकार दे दिया है। किन्नर बिरादरी वर्षों से अपने अधिकार के लिये लड़ाई लड़ रही थी। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकारमिला हुआ था।1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल टाईब्स यानि जयराम पेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजादी के बाद भारत का नया संविधान बना तो 1961 में क्रिमिनल टाईब्स से तो निकाल दिया पर उन्हें उनका हक तब नहीं मिला। हालांकि तब से अब तक ये किन्नर इसी दुनिया में रह रहे हैंअधिकतर लोग या तो किन्नरों का सामना करने से बचते हैं या फिर उनसे नफ रत करते हैं, हमारी इनसे मुलाकात खुशियों के मौकों पर होती है,मर्जी से याजबर दस्ती! समाज में बदनसीब समझा जाता है उनकाकाम दुआएं देना है लेकिन इन दुआ देने वालों का भी एक सच होता है।रोता है दिल पर,आंखों में नायाबमुस्कान इस मुस्कान के मुरीद जाने कितने लोग होंगे कि बस एक बार उनकी चौखट पर आये, हंसकर, मुस्कुराकर चले जाए, दुआ देकर चले जाए पर, होठों पर हंसी के पीछे अंगारों सी उस जिंदगी के पीछे भी अलग दु:ख है। कमबख्त ये लोग रोते नहीं, हंसकर शायद उपरवाले से कहते हैं देख विधाता तेरी हर बेमजा जिंदगी का मजा लिया है हमने….!आखिर हमारा कसूर क्या है। दर्द की दास्ताँ अपने साथलेकर चलने वाले यह भी तो नहीं पूछ सकते कि उनकागुनाह क्या है…?अगर वे पूछना भी चाहें तो समाज का एक रटा-रटाया सा जवाब तैयार होता है तुम अलग हो सबसे इसलिए….?जीना तो इनके लिए अभिशाप है ही, मरना भी सुकून से बहुत दूर है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि किन्नरों की मौत तो कभी भी हो सकती है पर उनकी शवयात्रा हमेशा रात में ही निकाली जाती है, कहा जाता है कि शवयात्रा निकालने के पहले शव की पिटाई भी जूते-चप्पलों से की जाती है शायद इसके पीछे यही है किअगले जन्म में तो कम से कम इस रूप में जन्म नहीं लेना!जीने के साथ मरना ही अभिशप्त है, किन्नरों की दुनिया रहस्य मय तो है ही साथ ही कई तरह की किवदंती भी जुड़ी है।

जर्दा,पर्दा, गर्दा
और नार्मदा…

अविभाजित मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को चार चीजों के लिये मशहूर कहा जाता था। जर्दा, पर्दा, गर्दा और नार्मदा। जर्दा आज भी पुराने भोपाली बहुत खाते हैं, बटुआ, पान का डिब्बा आज भी उनके साथ रहता है। पर्दा भी वहां है, पहले जैसा नहीं है। गर्दा यानि धूल…? पक्की सड़कों के अभाव में गिट्टी की सड़कों के कारण भोपाल की धूल मशहूर थी। बाद में भोपाल राजधानी बनने के बाद धूल गायब सी हो गई। लेकिन नार्मदा जिन्हें जनाने,हिजड़े, ताली फटकार, किन्नर, वृह न्नला आदि कई नामों से संबोधन दिया जाता है। पहले मंगलवारा में ही रहते थे,मंगलवारा वाले का भी संबोधन मिल गया था, बाद में इनका ठिकाना बुधवारा भी बन गया था। रायपुर शहर में काफी पूर्व से कादर चौक को किन्नरों का स्थायी ठिकाना माना जाता है।यहां एक- दो बार किन्नरों का सम्मेलन भी हो चुका है।

महाभारत,कृष्ण का
किन्नर से विवाह

विष्णुजी ने जब श्री कृष्ण अवतार लिया था तो उनकी 16 हजार 108 पत्नियां थी। मगर महाभारत युद्ध के दौरान उन्हें पुन: मोहनी रूप धारण कर एक किन्नर से विवाह करना पड़ा था। तामिलनाडू की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार प्रत्येकवर्ष अरवणी पर्व पर जनमानस एकत्रित होकर किन्नर अरवण की बरसी पर शोक मनाते हैं।अरवण असल में अर्जुन और उनकी पत्नी उलूपी के पुत्र थे,श्रीकृष्ण के पति….महाभारत युद्ध जीतने के उपरांत अरवण की बलि आवश्यक थी।अर वण ने शर्त रखी वह विवाह के उपरांत ही बलि पर ही चढ़ेगा,अरवण नपुंसक था उसकी मौत अटल थी,कोई भी कन्या विवाह हेतु तैयार नहीं हुई तब श्रीकृष्ण ने अरवण की अंतिम ईच्छा पूरी करने पुन: मोहिनी रूप धारणकर उस से विवाह किया,अगले ही दिन मोहनी रूप श्रीकृष्ण विधवा होगये विधवा के रूप में सभी रीति-रिवाज भी पूरे किये। अर्जुन ने भी तो अज्ञातवास बिताने के दौरान वृहन्नला के रूप में कुछ माह का समय गुजारा था।

राजनीति में किन्नर

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर से किन्नर मधु ने महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी महावीर गुरूजी को करीब साढ़े चार हजार मतों से पराजित कर कब्जा किया था, दिलचस्प बात यह है कि मधु किन्नर वार्ड नंबर 37 रायगढ़ से पार्षद चुनाव लडऩा चाहती थी। कांग्रेस के नेताओं से भी संपर्क भी किया पर उसका मजाक उड़ाया गया। भाजपा के कुछ नेताओं ने भी किन्नर के वार्ड पार्षद का टिकट कांग्रेस की टिकट से लडऩे पर की चर्चा का ही उपहास उड़ाया और 35 वर्षीय मधु किन्नर ने महापौर पद का चुनाव निर्दलीय बतौर लड़ा और अपनी जीत दर्ज की थी।वैसे राजनीति में 1999 में शबनम मौसी ने सोहाग पुर विधानसभा (मप्र के समय) से देश की पहली किन्नर विधायक बनने में सफल रही थी। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व राज्यपाल कृष्णपाल सिंह के पुत्र को पराजित किया था। उसी के बाद कमला जान ने कटनी की महापौर बनकर देश की पहली किन्नर महापौर बनने का रिकार्ड बनाया था।सागर (मप्र)के महापौर के पद पर भी कमला बुआ ने महिला के लिये आरक्षित सीट से 2009 में चुनाव जीत लिया था। लेकिन जिला अदालत में कमला बुआ स्वयं को महिला साबित करने में ही असफल रहीं और निर्वाचन निरस्त कर दिया गया।साथ ही अनुसूचित जाति वर्ग की है यह भी साबित करने में सफल नहीं हो सकीं थीं।

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