Exclusive : आपके आस-पास भी हो सकता है चीनी जासूस, पढ़िए एक सत्य घटना

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         अरविंद दुबे, वरिष्ठ पत्रकार                                     जबलपुर। सुनने मे भले ही यह बेहद आश्चर्य जनक लग रहा हो लेकिन यह सच्चाई है कि मध्य प्रदेश मे भला चीनी जासूसों का क्या काम लेकिन यह बात सच है कि एक वक्त ऐसा भी रहा है जब प्रदेश के एक बेहद उन्नत शहर मे चीनी एजेंट अपना जाल बिछा चुके थे। भारतीय सेना की गतिविधियों पर न केवल नजर रख रहे थे बल्कि गोपनीय जानकरी चीन भेज रहे थे। एक ऐसे ही चीनी जासूस को बेनकाब किया था हमारी गुप्तचर एजेंसी ने। उस आपरेशन का हिस्सा बनने का मौका मुझे भी मिला था। आपको बताते है कैसे चीनी एजेंट को ट्रैप किया गया और इस मिशन से जुडा घटनाक्रम्।

   सुनने में भले ही बेहद आश्चर्य हो रहा था लेकिन चीफ की बात को न मानने के लिए मेरे पास कोई वजह भी नहीं थी लेकिन इससे भी ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने बताया कि जासूसी कलेक्टर कार्यालय से हो रही है. और तुम्हे अब उस आदमी से नजदीकियां बढ़ाना है जो की देशद्रोह के काम को धड़ल्ले से अंजाम दे रहा है. इसके बाद चीफ की आवाज धीमी होती चली गयी. जो कुछ भी उन्होंने समझाया था उसे दिमाग में अच्छे से फीड कर लिया था.आपरेशन के तहत अब उससे नजदीकिया बढ़ाना थी और उससे मिलने वालो की पूरी जानकारी इकठ्ठा करना थी. इस आपरेशन में मुझे अन्ग्रेजी का बीटू नाम मिला था,  मेरे साथ तीन और अधिकारी काम कर रहे थे लेकिन उस बाबू से मेरा परिचय होने की वजह से सबसे अहम काम मुझे सौंपा गया था. गुड लक चीफ की आवाज गूंजी और मैं उस बिल्डिंग से बाहर निकल आया।  यूं तो कलेक्टर कार्यालय में कवरेज के लिए रोज सुबह जाना ही पड़ता था. लेकिन आज कलेक्टर कार्यालय बदला सा नजर आ रहा था क्योंकि इस कार्यालय के अंदर मुझे वो खोजना था जिसकी मैने कभी कल्पना भी नही की थी। सबसे पहले मैंने उस बाबू के केबिन के तरफ रुख किया जिस बाबू को हमारी खुफ़िया एजेंसी ने अपना टारगेट बनाया था और मुझे जिम्मेदारी सौंपीं गयी थी। कमरे मे घुसते ही आवाज गूंजी आइये सर आज हमारे साथ चाय पी लीजिये रोज तो आप कलेक्टर साहब के साथ चाय पीते हैं. मैंने तुरंत हामी भरी और कुछ ही देर में चाय आ गयी चाय पीते हुए मेरी नज़रे उसके सामने बिखरी फाईलो पर थी एक फाईल रक्षा मंत्रालय से संबधित थी जिसमे सेना के लिए शासकीय भूमि उपलब्ध कराने संबंधी आवेदन दिया गया था.जिस पर बाबू कुछ खोज रहा था. मेरी आँखों ने उसकी पूरी हरकत कैद कर ली थी.दर असल हम टीवी जर्नलिस्ट की आंखें भी किसी प्रोफ़ेश्नल कैमरे की तरह हो जाती हैं और कुछ भी असामान्य नजर आने पर उसे मन मस्तिष्क में दर्ज कर लेती हैं। बाबू की नजर में मै एक सिर्फ टीवी जर्नलिस्ट था जिसके संबध आईएएस अधिकारियों से बहुत अच्छे थे सो उसके पास मेरे ऊपर शक करने की कोई वजह नहीं थी. कलेक्ट्रेट के उस बाबू से अब मेरी मुलाकांतें अक्सर होने लगीं। कलेक्टर से बोल कर उसकी ख्वाहिशें भी पूरी करा देने से अब मैं बाबू का खास बन चुका था। मैं उस बाबू की सभी गतिविधियों की जानकारी जुटा रहा था और चीफ़ को रिपोर्ट भेज रहा था। कुछ दिनों की मुलाक़ात के बाद बाबू ने मुझे एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की कवरेज करने का आमंत्रण दिया जिसमे उसके कई साथी हिस्सा ले रहे थे. इधर चीफ के पास इनपुट आया की कुछ संदिग्ध लोग शहर में आ गए है जिनके संबंध दुश्मन देश चीन से है. चीफ को रिपोर्ट करते हुए मैंने जब बाबू के कार्यक्रम के बारे में बताया तो वे ख़ुशी से उछल पड़े और उन्होंने उस कार्यक्रम में कवरेज करने के बहाने जाने के लिए कहा लेकिन आज उन्होंने मुझे हिदायत दी की अब मै बेहद सतर्कता पूर्वक काम करूँ. आम तौर पर हम जब किसी आपरेशन को अंजाम देते हैं या फ़िर कोई जानकारी जुटाते हैं और यदि उस काम मे जोखिम ज्यादा होता है तो ग्राऊंड वर्कर को सुरक्षा उपलब्ध करायी जाती है लेकिन सुरक्षा देने वाला कभी भी बेहद करीब नही होता है, फ़िलहाल मेरे पास ऐसा कोई सुरक्षा कवच नही था। तय समय में सिविल लाइंस के एक मंगल भवन में जब उस कार्यक्रम में पहुंचा तो वहा पर समाज के लिए बेहतर काम करने वालो को मंच पर बुला कर प्रशंसा पत्र दिये जा रहे थे. प्रशंसा पत्र लेने वाले जैसे ही मंच पर आते वैसे ही प्रशंसा पत्र देने वाले अतिथि को सेल्यूट कर रहे थे। वे अपना सीधा हाथ माथे के पास लाकर मुट्ठी बंद कर सेल्यूट कर रहे थे. इस तरह का सेल्यूट करते हुये मैने चीनी सैनिकों और माओवादियों को टीवी पर देखा था, ख़ास बात यह थी की ऐसा करने वालो में महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. मै समझ गया था की अब हम चीन के लिए काम करने वाले नेटवर्क के नजदीक है. यह मेरे लिए बडी उपलब्धि थी लेकिन अब मैं ज्यादा सतर्क होकर काम कर रहा था।. मै स्टेज की तरफ देख ही रहा था की पीछे से आवाज आई हजूर लाई मैंने पलट कर देखा तो बाबू मुस्कुरा रहा था हाथ में रेड रम से भरा ग्लास था और वह काफी कुछ नशे की हालत में था उसे मालुम था कि मैं शराब नही पीता हूं इसलिये उसने कोल्ड ड्रिंक लाने के लिये कैटरर के आदमी को आवाज दी। अब चौंकने की बारी मेरी थी क्योंकि कोल्डड्रिंक लाने वाला कैटरर का आदमी मेरे चीफ़ थे। हम दोनो की नजरें मिली लेकिन अपरिचितों की तरह। बाबू ने अपने दोस्तों से मिलाया जो की नेपाल के बिराटनगर से आये थे. सेना के जवानों की तरह नजर आने वाले  इन लोगों को बहुत कम हिंदी आती थी ये वही लोग थे जिनकी वजह से दिल्ली से लेकर जबलपुर तक तहलका मचा हुआ था।  इन्ही लोगो के लिए चीफ की पूरी टीम परेशान थी लेकिन कार्यक्रम की कवरेज के बहाने अब ये सभी बाहरी व्यक्ति कैमरे में कैद थे और हमारी टीम उनकी निगरानी कर रही थी. कार्यक्रम में भाषण देने वाले सामंतवादी शासको के खिलाफ जहर उगल रहे थे, जिस भाषा मे वे बात कर रहे थे उस भाषा की समझ रखने की वजह से मुझे उनके इरादे भांपने में वक्त नहीं लगा.इस कार्यक्रम के दौरान मैंने देखा की कार्यक्रम की कवरेज के दौरान बाबू एक बार भी कैमरे के सामने नहीं आया. इन लोगों के आने का मकसद काफ़ी हद तक साफ़ था लेकिन जासूसी के आम उसूलों का पालन करते हुये किसी भी प्लान की पूरी जानकारी किसी भी अधिकारी के पास नही रहती है सो मुझे भी सिर्फ़ इन लोगों के मूमेंट की जानकारी थी इसके आगे मुझे भी कुछ नही मालुम था बाकि जो निर्देश प्राप्त हो रहे थे मैं वैसा काम कर रहा था। मेरा टारगेट तो कलेक्ट्रेट का बाबू था सो मेरा पूरा फ़ोकस उस पर ही था।

      दूसरे दिन चीफ यह फुटेज देख कर बेहद खुश हुए, मीटिंग के दौरान मुझे काफ़ी प्रशंसा मिली लेकिन अभी मुख्य काम बाकी था। आपरेशन की तय रणनीति के अनुसार काम होने से मेरे हौसले बुलंद थे अब मेरा पूरा ध्यान सिर्फ इस बात पर था की आखिर बाबू को रक्षा और सेना से संबंधित दस्तावेज कहा से मिल रहे थे और वह कैसे दुश्मन देश चीन तक भेज रहा था.

         एक दिन सुबह सुबह ही इनपुट मिला कि आज शाम को बाबू देश की सुरक्षा से जुडे दस्तावेजों का आदान प्रदान करने वाला है। हमारे मैसेंजर का इनपुट काफ़ी मजबूत था सो चीफ़ ने भी अपनी तैयारी की और हमें आपस मे को-आर्डिनेट करने कहा। इसके साथ ही मुझे बाडी शेडो ( सुरक्षा गार्ड) भी दिया गया जो कि मुझसे कुछ दूर रह कर मेरे ऊपर होने वाले संभावित हमले से बचाने का काम करने वाला था।

      स्टूडियो से एंकरिंग कर बाहर निकला तब तक शाम हो चुकी थी और तेज ठंड का अहसास हो रहा था। तय कार्यक्रम के तहत मैं सीधे बाबू के ठिकाने पर पहुंचा, मैंने देखा बाबू अपनी मोपेड से सिविल लाइंस की ओर जा रहा है मैंने भी उसका पीछा करना शुरू कर दिया. सिविल लाइंस में एक आदमी अपनी बुलेट में खडा बाबू का इंतज़ार कर रहा था. बाबू ने उसके कान में कुछ कहा इसके बाद उस व्यक्ति ने कागजो का एक बण्डल बाबू को दिया और तेजी से वहा से चला गया. बाबू बण्डल लेकर अपने घर आ गया। बाबू का घर सिविल लाईंस क्षेत्र की एक संकरी गली में था चूंकि शाम का वक्त था इसलिये ज्यादतर महिलायें और बच्चे घरों के बाहर ही थे ऐसे मे छुप कर किसी पर नजर रखना संभव नही था और पहचान जाहिर होने का खतरा भी था सो मैं उस गली के बाहरी मुहाने पर आकर टहलने लगा।मेरे पीछे मेरा बाडी शेडो था और उसके पीछे हमारी टीम सादे कपडों मे मौजूद थी। लगभग एक घंटे बाद दो लोगों ने गली मे प्रवेश किया और सीधे बाबू के घर के अंदर चले गये। मै इसी मौके की तलाश मे था मैने दूर खडे अपने बाडी शेडो को ईशारा किया और उसने पीछे खडी टीम को सिग्नल दिया। कुछ ही देर में हमारी टीम पहुँच गयी और गली के बाहर मोर्चा संभाल लिया। जैसे ही बाबू से मिलने आये दोनों लोग गली से बाहर निकले हमारी टीम ने उन्हें अपनी कार में खींच लिया और उनके हाथ से वह कागजो का बण्डल छीन लिया जो की बाबू ने उन्हें दिया था. पलक झपकते ही इस वारदात को अंजाम दे दिया गया वह भी बेहद शांत तरीके से इस वजह से बाबू और आस-पास मौजूद लोगों को कोई भी जानकारी नही लग सकी। मै काफ़ी दूर खडा था इस वजह से बाबू मुझे नही देख सका और मेरी गोपनीयता बरकरार रही। इसके बाद चीफ ने हेड क्वार्टर को सूचना दी. कुछ ही देर में साफ़ हो गया की एक बेहद गोपनीय जानकारी लीक हुयी है लेकिन हमारे काउंटर एक्शन की वजह से यह गोपनीय जानकारी दुश्मन देश के पास तक नहीं जा सकी यह हमारी कामयाबी थी. चीफ ने हमारी टीम को बधाई दी और बताया की यदि यह जानकारी लीक हो जाती तो सेना को चीन बार्डर में अपने एक बड़े अभियान में तब्दीली लाना पड़ती. बाबू की इस हरकत की वजह से हमारे आपरेशन के प्लान में भी बदलाव करना पडा. ख़ास बात तो ये थी की अभी भी हेडक्वार्टर ने बाबू के खिलाफ कोई भी एक्शन लेने के निर्देश नहीं दिए थे. हमे इस बात का पता लगाना था कि आखिर उसे सेना के बेहद संवेदन शील दस्तावेज कौन दे रहा है।

      अब हमें बाबू को दस्तावेज लेते हुए ही दबोचना था. टास्क कठिन थी लेकिन हम उसकी चौबीस घंटे निगरानी कर रहे थे इसलिए यह ज्यादा मुश्किल काम तो नहीं था उस पर भी मै बाबू का सबसे ज्यादा विश्वास पात्र बन चुका था. हालांकि बाबू को यह संदेह होने लगा था की गुप्तचर एजेंसियां उस पर निगाह रख रही है लेकिन मैं गुप्तचर एजेंसी के लिये काम कर रहा हूं इस बात का उसे जरा भी शक नही था, यही वजह है कि वह अपने आने जाने का ब्यौरा मुझे बता देता था। इसलिए वह अपने ठिकाने भी लगातार बदल रहा था और घर भी कुछ देर के लिए ही जा रहा था.

       रोज की तरह जब मैं कलेक्टर कार्यालय पहुंचा तो बाबू अपनी सीट पर नजर नही आया, मुझे स्टाफ़ के लोगो ने बताया कि बाबू तो लंबी छुट्टी पर चला गया. कलेक्टर को दिए गए छुट्टी के आवेदन में उसने बताया था की वह अपने कर्मचारी संघ के समारोह में शामिल होने के लिए कोलकाता जा रहा है, मैने तुरंत चीफ़ को सूचना दी। ईधर बाबू के कोलकता जाने की खबर मिलने के बाद दिल्ली हेडक्वार्टर ने जब बाबू की खोज खबर ली तो पता चला कि बाबू कोलकता नही पहुंचा है, बल्कि वह गायब हो चुका है. हमारे आपरेशन के लिए यह तगड़ा झटका था. गुप्तचर एजेंसियां नेपाल तक उसकी खोज कर रही थी लेकिन उसका कही पता नहीं चल रहा था. तीन दिन की खोज के बाद हमारे साथी एजेंट ने बाबू को दिल्ली में खोज निकाला. वह एक देश की एंबेसी में बतौर अतिथि रुका हुआ था. हम समझ गए थे की देश से जुडी महत्वपूर्ण सूचना देने के बदले में उसे दुश्मन देश के द्वारा ईनाम दिया जा रहा है. कुछ दिन दिल्ली में रुकने के बाद बाबू मुबई आ गया और यहाँ से भी वह गोपनीय जानकारी चीन तक भेज रहा था. प्रति रक्षा विभाग ने अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. एक दिन सुबह लगभग सात बजे चीफ का फोन आया उन्होंने बताया की बाबू मुंबई से इलाहाबाद होते हुए नेपाल जा रहा था हमारे साथी एजेंट उसे कवर कर रहे थे उसकी आखिरी लोकेशन इलाहाबाद तक देखी गयी इसके बाद वह इलाहाबाद स्टेशन से गायब हो गया है लेकिन अभी इनपुट मिला है की वह जबलपुर रेलवे स्टेशन में किसी दूसरी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा है. तुम जाकर उसे तब तक रोकने की कोशिश करो जब तब हमारा दूसरा एजेंट उसे कवर करने न पहुँच जाए. मैं घर से निकलते हुये सोच रहा था कि इतनी सुबह बिना वजह यदि उससे मिलने गया तो उसे शक हो जाएगा सो मैंने उसका इंटरव्यू लेने का निर्णय लिया ताकि उसे शक न हो सके. इतनी सुबह कैमरामेन नहीं पहुँच सकता था सो मैंने ही अपना प्रोफेशनल कैमरा निकाला और सीधे स्टेशन पहुंचा. बाबू एक कोने में किसी के साथ बात कर रहा था मुझे देख कर वह बुरी तरह चौंका अरे सर आप इतनी सुबह उसने मुझसे पूछा. मैंने उसे बताया की कोई नेताजी आने वाले है लेकिन अभी उनकी ट्रेन लेट है सो मै इंतज़ार कर रहा हूँ. इसी बीच मैंने उससे उसके कर्मचारी संघ के बारे में एक इंटरव्यू ले लिया. इस दौरान मैंने लगभग पैंतालीस मिनिट तक उससे बात की लेकिन मेरी आँखे अपने साथी एजेंट को खोज रही थी जो की उसे कवर करने के लिए आने वाला था. आखिरकार नीली टी शर्ट पहने एक व्यक्ति ने मुझे इशारा किया तब मैंने बाबू से हाथ मिलाया और जल्द मिलने का वादा किया. बाबू इलाहाबाद जाने वाली ट्रेन में सवार हो गया. इसके बाद वह बनारस से फ्लाईट से काठमांडू पहुँच गया. नेपाल में सरकार बदल गयी थी और काफी खून खराबे के बाद अब चुनाव होने वाले थे. एक दिन सुबह चीफ का फोन आया उन्होंने बताया की बाबू को नेपाल की एक राष्ट्रीय पार्टी ने सांसद का चुनाव लड़ने के लिए टिकिट दिया है और वह अब चुनाव जीत कर सांसद बन गया है और ख़ास बात ये है की वह भारत आ रहा है और उसे राजकीय अतिथि का दर्जा दिया गया है. चीफ की बात सुनकर मुझे गुस्सा आ रहा था साथ ही आश्चर्य हो रहा था की कैसे कलेक्टर कार्यालय का एक बाबू दूसरे देश का सांसद बन गया. आप सोच रहे होंगे की आखिर इस बाबू को वक्त रहते क्यों नहीं पकडा। मै बताना चाहूँगा की जब किसी देश के लिए जासूसी की जाती है तो उसके पीछे भी कोई एजेंसी काम कर रही होती है और फिर एजेंटो का जाल एक देश से दूसरे देश तक बिछा रहता है इसे समझने और फिर इसका खुलासा करने में अपने देश के लिये जासूसी करने वालों की जान खतरे में पड़ जाती है इसलिए दूसरे देश के लिए जासूसी करने वालो पर तुरंत एक्शन नही लिया जाता है।( यह एक सच्ची घटना है जिसमे गोपनियता की वजह से पात्र का नाम और स्थान बदल दिए गए हैं.)  

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