राम दवा है रोग नहीं सुन लेना राम त्याग है भोग नहीं सुन लेना राम दया है क्रोध नहीं सुन लेना राम सत्य है शोध नहीं सुन लेना

   शकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )                                                                                                                                करीब 500 वर्षों से चले आ रहे मंदिर-मस्जिद विवाद की 5 अगस्त को इतिश्री मान लेना चाहिये मर्यादा पुरुषोत्तम राम का भव्य मंदिर वहां बनकर रहेगा। वैसे इसका पूरा क्रेडिट देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को जाता है पर भूमिपूजन समारोह को भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मय रूप देने का प्रयास किया गया। पर इतिहास साक्षी है कि 1984 में हत्या के पहले इंदिरा गांधी भी चाहती थी कि मंदिर का ताला खुल जाए उनकी हत्या के बाद राजीव गांधी के कार्यकाल में मंदिर का ताला खुला और उस समारोह का सीधा प्रसारण भी हुआ। वैसे मंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल, विनय कटियार, कल्याण सिंह की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता तो राजीव गांधी, नरसिंह राव, उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत, वीर बहादुर सिंह तथा नारायण दत्त तिवारी को भी याद किया जाना भी उचित होगा।
घटनाक्रम कुछ ऐसा चलता रहा कि राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर वोटों के ध्रुवीकरण तक की सारी की सारी खीर कांग्रेस की तैयार हुई थी लेकिन राजीव, नरसिम्हा रावके बाद कांग्रेस नेतृत्व इस मुद्दे पर ठोस फैसला नहीं ले पाया… और खीर भाजपा खा गई एक बात और है कि भाजपा के भी जिन नेताओं ने भाजपा को फर्श से अर्श तक (2 सांसदों से केंद्र में सत्ता) पहुंचाया उनके हिस्से श्री रामजन्म भूमि पूजन का निमंत्रण तक हाथ नहीं आया… आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी वृद्ध हैं चलो मान लिया, उमा जी तो वहां जाकर भी मुख्य समारोह में नहीं पहुंची, कल्याण सिंह कहां थे… वैसे गृहमंत्री अमित शाह से लेकर म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तक कोरोना प्रभावित…? थे तो उप्र के कद्दावर नेता तथा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कहां थे…? किसी मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में जिस तरह भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों का जमावड़ा नजर आता रहा है वहां सिर्फ कोरोना का बहाना बताकर सभी की उपेक्षा कहां तक सही कही जा सकती है…। श्रीराम का पेटेण्ट भाजपा के पास नहीं है, श्रीराम समूचे भारत नहीं विश्व के हैं। क्या भारत में रामनवमी, विजयादशमी (रावण वध) की परंपरा प्राचीन नहीं है? नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल या दूसरे कांग्रेसी नेता दिल्ली के रामलीला मैदान में रावण वध के कार्यक्रम में शामिल नहीं होते रहे हैं…। वैसे कांग्रेस की बनाई खीर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही खाने प्रयासरत है बाकी भाजपा नेताओं के हिस्से में तो न खीर आई न श्रेय…। एक फोटो मिली है जिसमें रामजन्म भूमि आंदोलन के पूरोधा लालकृष्ण आडवाणी के साथ बालक योगी आदित्यनाथ भी परिलक्षित हो रहे हैं।

मंदिर-मस्जिद कथा…        

अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर लगभग 500 साल पहले वर्ष 1530 में बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक यह मस्जिद हमलावर मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाकी ने बनवाई थी लेकिन मीर बाकी ने यह जमीन कैसे हासिल की… मस्जिद के पहले वहां क्या था…. बहरहाल अनेक ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन में हनुमानगढ़ी मंदिर पर कब्जे को लेकर धावा बोला था3, उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनवाई गई थी 1857 में स्वतंत्रता संग्राम के बाद नवाबी शासन समाप्त होने के बाद ब्रिटिश कानून, शासन और न्याय व्यवस्था स्थापित हुई माना जाता है कि इसी समय हिन्दुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से में कब्जा करके चबुतरा बना लिया और भजन पूजन भी शुरू हो गया उसी के बाद से वहां झगड़े होते रहे, बाद में शासन ने चबुतरे तथा मस्जिद के बीच दीवार बना दी लेकिन मुख्य दरवाजा एक ही रहा, 19 जनवरी 1885 को निर्मोही अखाड़े के महंत रघवरदास ने चबुतरा को रामजन्म स्थान बताते हुए भारत सरकार तथा मो. असगर के खिलाफ सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया, मुकदमे में 17321 फीट लंबे चौड़े चबुतरे को जन्मस्थान बताया। बाद में सिया सिया-सुन्नी समुदाय द्वारा अपनी अपनी मस्जिद होने का दावा भी किया गया।

राम मंदिर चुनावी मुद्दा

देश विभाजन के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई। कुछ ने विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया। आचार्य नरेन्द्र देव के खिलाफ तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने अयोध्या उपचुनाव में हिंदू संत राघवदास को उम्मीदवार बनाया, अयोध्या में मंदिर निर्माण मुद्दा बना तब मुख्यमंत्री पंत ने अपने भाषणों में बार-बार कहा कि समाजवादी आचार्य नरेन्द्र देव ‘राम’ को नहीं मानते, और समाजवाद के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव चुनाव हार गये। बाबा राघवदास की जीत से मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए, जुलाई 1949 को उप्र सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी थी। तब तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह ने 10 अक्टूबर को कलेक्टर को रिपोर्ट दी की मस्जिद के बगल में छोटा मंदिर है उसे रामजन्म स्थान बताकर हिन्दू समुदाय एक भव्य मंदिर बनाना चाहता है। जमीन नजूल की है इसलिए मंदिर निर्माण की अनुमति देने में कोई रूकावट नहीं है उस समय संक्रांतिकाल था, देश का नया संविधान लागू होने वाला था, कुछ हिन्दू बैरागियों ने इसी बीच साफ सफाई शुरू की तब वहां अस्थायी चौकी बनाकर पीएसी की तैयारी की गई पर 22-23 नवंबर 1949 को अभय रामदास और उसके साथियों ने दीवार फांदकर राम, जानकी तथा लक्ष्मण की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखकर प्रचार कर दिया कि भगवान राम ने वहां प्रकट होकर अपने जन्म स्थान पर वापस कब्जा कर लिया है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने मुख्यमंत्री पंत को तार भेजकर इस मामले में व्यक्तिगत रूचि लेने कहा था। उस समय के कलेक्टर नायर ने मूर्ति हटाने पर असहमति जाहिर करते हुए स्वयं को हटाने का भी अनुरोध किया था कालांतर में नायर जनसंघ की टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़कर जीते थे। बाद में इस मामले की शिकायत उ.प्र. के तत्कालीन गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ( बाद में देश के प्रधानमंत्री) से भी की गई, विधानसभा में भी मुद्दा उठा पर एक लाईन का संक्षिप्त जवाब आया कि मामला न्यायालय में है इसलिए ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं है। इसके बाद न्यायालय में कई मामले दायर होते रहे…।

भाजपा – संघ ने मुद्दा बनाया….

आपातकाल के बाद 1977 में जनसंघ तथा अन्य विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया लेकिन आपसी फूट से 3 साल भी सरकार नहीं चली और 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तब संघ परिवार ने अगले चुनाव के पहले हिंदुओं को राजनीतिक एकजुट करने पर मंथन शुरू किया।
हिंदुओं के तीन आराध्य देव हैं राम, कृष्ण और शिव। इनसे जुड़े स्थान अयोध्या, मथुरा और काशी। इधर अयोध्या , काशी और मथुरा की मस्जिदों को केंद्र बनाकर आंदोलन की रणनीति बनी। 7-8 अप्रैल को दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद का आयोजन कर तीनों धर्मस्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव पास किया चूंकि काशी और मथुरा में स्थानीय समझौते के तहत मस्जिद से सटकर मंदिर बन चुके थे इसलिए अयोध्या पर फोकस करने का निर्णय लिया गया, 27 जुलाई 1984 को रामजन्म मुक्ति यज्ञ समिति गठित की गई, एक मोटर का रथ बनाया गया जिसमें राम-जानकी की मूर्तियों को अंदर कैद दिखाया गया। इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या तथा राजीव गांधी की प्रचंड बहुमत से केंद्र में सरकार बन चुकी थी। तब विश्व हिन्दू परिषद ने मस्जिद का ताला खोलने के लिए आंदोलन तेज किया, 6 मार्च 1986 तक ताला नहीं खुलने पर जबरन ताला तोडऩे की चेतावनी दी। तभी बजरंग दल का भी गठन हुआ तब उप्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया वीर बहादुर सिंह ने विवादित स्थल के करीब 42 एकड़ जमीन लेकर विशाल रामकथा पार्क के निर्माण की घोषणा की, सरयूनदी से अयोध्या के पुराने घाटों तक नहर बनाकर राम की पैड़ी बनाने का काम भी शुरू किया कहा जाता है कि बाद में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके साथियों ने फैजाबाद जिला अदालत में फ्रेश वकील (जिसका रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से कोई लेना-देना नहीं था) उमेशचंद पांडे से ताला खुलवाने की अर्जी डलवाई, तब के कलेक्टर- एसपी ने भी अदालत में ताला खुलवाने पर शांति व्यवस्था नहीं बिगडऩे की बात कही इसी बयान के आधार पर जिला जज के.एम.पांडे ने ताला खोलने का आदेश कर दिया एक घंटे के भीतर आदेश का अमल भी हो गया जाहिर है कि उपर से आदेश रहा होगा इसी के बाद दूरदर्शन में समाचार भी प्रसारित कर दिया गया जिससे धारणा बनी की यह सब प्रायोजित था।
इधर भाजपा ने पहली बार 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि अदालत इस मामले में फैसला नहीं कर सकती, सरकार समझौते या सांसद में कानून बनाकर रामजन्म स्थान हिंदुओं को सौंप दे तभी से महसूसा गया कि यह राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बन गया है और अगले लोस चुनाव में इसका असर पड़ सकता है इधर विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर शिलान्यास और देशभर में शिलापूजन यात्राएं निकालने की घोषणा की। हालांकि उ.प्र. सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने 9 नवंबर को विवादित भूखंड पर शिलान्यास की अनुमति दे दी। जाहिर है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सहमति थी। इसी के बाद कांग्रेस के बागी विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल बना और उन्होंने कांग्रेस को पराजित कर भाजपा तथा वामपंथी दलों के समर्थन से प्रधानमंत्री बने, उ.प्र. में भी पुराने समाजवादी मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने। बाद में 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा, 1991 के लोस चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंहराव के प्रधानमंत्री बनने, उ.प्र. के कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने बाद में 6 दिसंबर 92 को कारसेवा के दौरान बाबरी मस्जिद को क्षतिग्रस्त करने, भाजपा की राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का मामला हाल फिलहाल का ही है। बाद में 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद कोर्ट ने माना कि भगवान राम का जन्म मस्जिद के बीच वाले गुंबद वाली जमीनपर हुआ होगा पर जमीन के मालिकाना हक के बारे में किसी के पास पुख्ता सबूत नहीं है। इस जगह को भगवान राम, निर्मोही अखाड़ा तथा सुन्नी बोर्ड के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया जाए. खैर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रामजन्म भूमि के पक्ष में फैसला दिया और मस्जिद बनाने कही अन्यत्र जमीन देने का आदेश दिया। 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि में भव्य मंदिर निर्माण का पूजन भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदी बेन, मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ सहित साधू संतों की उपस्थिति में संपन्न हुआ।

और अब बस….

0 म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हनुमानजी की पूजा की तो भाजपा नेताओं को तकलीफ क्यों…?
0 छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्रीराम के ननिहाल छग में माता कौशल्या का भव्य मंदिर तथा श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण के वनपथ गमन को ऐतिहासिक बनाने का फैसला लिया तो भाजपा को उसका सार्वजनिक अभिनंदन करना चाहिए।

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