दिल्ली : राजधानी दिल्ली में किसानों के उग्र आंदोलन जो पिछले करीब 60 दिनों से देश के कई इलाकों खासतौर से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा है। इस आंदोलन की अब तक खास बात यह थी कि किसानों ने आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखा। इसमें कहीं भी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं दिखाई दी। यहां तक कि 11 दौर की बातचीत विफल होने पर भी किसानों ने हर मौके पर संयम दिखाया। लेकिन गणतंत्र दिवस पर जब देशभक्ति के तरानों से पूरा देश गूंज रहा था,तब वह हो गया, जिसका डर था। किसानों ने बैरिकेड तोड़कर सिर्फ उग्र होने की शुरुआत नहीं की, बल्कि उन्होंने अनुशासन का बांध भी तोड़ दिया।
पहले से थी उपद्रव की आशंका…
गौरतलब है कि किसान काफी समय से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत मांग रहे थे। लेकिन उसके साथ ही यह भय सताने लगा था कि 26 जनवरी के दिन दिल्ली में उपद्रव न हो जाए। आज वही हो रहा है, जिसका डर था। दिल्ली में सैकड़ों-हजारों किसानों ने बैरिकेड ही नहीं, अनुशासन का बांध भी तोड़ दिया। वह अनुशासन और सब्र, जो किसानों की ताकत रहा। पिछले करीब दो महीने में काफी कोशिशों के बावजूद आंदोलन बदनाम नहीं हुआ। टूटा नहीं तो सिर्फ इसलिए कि अनुशासन मजबूत था।
गणतंत्र दिवस पर बवाल…
बता दें कि किसानों ने ट्रैक्टर परेड की इजाजत मांगी थी तो उन्होंने नियमों का पालन करने का हवाला दिया था। लेकिन जब ट्रैक्टर परेड शुरू हुई तो किसानों ने सबसे पहले सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर पुलिस के बैरिकेड तोड़ दिए। इसके बाद हजारों किसान दिल्ली में घुस आए और राजधानी की सड़कों पर किसानों का सैलाब आ गया। जगह-जगह रास्ते जाम हो गए। किसानों का काफिला आईटीओ की ओर बढ़ा और पुलिस पर पथराव करने लगा। इसके बाद तो किसान आंदोलन में शामिल उपद्रवियों ने हद ही कर दी। उन्होंने लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा हटाकर खालसा का केसरी झंडा लगा दिया।
आईटीओ पर एक किसान की मौत…
जानकारी के मुताबिक, आईटीओ पर ट्रैक्टर पलटने से एक किसान की मौत होने की सूचना है। हालांकि, किसानों का आरोप है कि पुलिस ने फायरिंग की, जिससे किसान की जान गई। अब गणतंत्र दिवस पर बसों और पुलिस जीप पर पथराव के साथ-साथ तलवारें लहराने के जो दृश्य दिखाई दे रहे हैं, वे बेहद दुखद हैं और भयावह भी। यही डर था कि किसानों की रैली के नाम पर ऐसे तत्व सक्रिय हो जाएंगे, जो शांति नहीं चाहते। उम्मीद है कि ये बवाल जल्द थम जाएगा।