आचार्य कृपलानी ने लड़ा था रायपुर लोस से चुनाव……

किश्त {10}

अविभाजित मप्र/छग से कई दिग्गजों ने चुनाव लड़कर जोर-आजमाइस की थी,यह बात और है किअधिकांश बाहरी उम्मीदवार को मतदाताओं ने स्वीकार नहीं किया। डी.पी. मिश्र और अर्जुन सिंह जरूर बाहरी होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने में सफल रहे।आचार्य कृपलानी,बाबूराव पटेल,कांशीराम ने भी छत्तीसगढ़ से राजनीति करने का प्रयास किया बतौर उम्मीदवार चुनाव भी लड़ा पर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

आचार्य कृपलानी

1967 के लोकसभा चुनाव में आचार्य जे.बी. कृपलानी ने जन कांग्रेस प्रत्याशी बतौर रायपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा पर उन्हें कांग्रेस के लखनलाल गुप्ता से 24 हजार 415 मतों से पराजित होना पड़ा। वैसे नई पीढ़ी को शायद ही पता होगा कि जे.बी. कृपलानी (जीवटराम भगवान दास) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गांधीवादी समाजवादी,पर्यावरणवादी राजनेता थे।जब भारत 15अगस्त 1947 को आजाद हुआ तब भारत की सबसे पुरानी राजनीति पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।कहा तो यह भी जाता है कि जब देश आजाद हुआ तो भावी प्रधानमंत्री तय करने कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद सबसे अधिक मत आचार्य कृपलानी को ही मिला था पर महात्मा गांधी के समझाने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने पर अपनी सहमति दे दी थी।कृपलानी की कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में गिनती होती थी।आजादी की लड़ाई में उन्होंने गांधीजी का हर कदम पर साथ दिया। उन्हें अपनी उम्र से 20 साल छोटी महिला से प्यार हो गया। एक बंगाली और एक सिंधी…!उन्होंने जब विवाह करने का फैसला लिया तो बड़ा भू-चाल आ गया…। दोनों परिवारों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। महात्मा गांधी भी अपनी शिष्या और अपने सहयोगी के इस रिश्ते के खिलाफ थे। पर विवाह हो ही गया। उस समय दुल्हा 48 साल का था और दुल्हन थी 28 साल की। पर मृत्यु पर्यन्त दोनों का रिश्ता मधुर रहा, हम बात कर रहे हैं आचार्य जे.बी. कृपलानी और सुचेता मजूमदार की……!
आचार्य कृपलानी सिंध के हैदराबाद में पैदा हुए थे।वे आजादी के पहले कांग्रेस में लंबे समय तक महासचिव तथा 1947 में देश की आजादी के समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में कृपलानी इतिहास विभाग में प्रोफेसर बनकर पहुंचे बाद में गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण नौकरी छोड़ दी। कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विवि में सुचेता मजूमदार प्रोफेसर बनकर पहुंची,वहां कभी पदस्थ रहे आचार्य कृपलानी की चर्चा सुनती थी और बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय में उनकी कभी कभी आने पर आचार्य कृपलानी से मुलाकात भी होती रही थी।बाद में कृपलानी और गांधी से प्रभावित होकर सुचेता भी गांधी और आजादी के आंदोलन से जुड़ी।कृपलानी ने उन्हें प्रोत्साहित भी किया।बाद में जब दोनों ने विवाह का निर्णय लिया तो गांधी ने विरोध भी किया। दरअसल उस समय तक सुचेता,गांधी का लगभग दाहिना हांथ बन चुकी थी। बहरहाल शादी हो गई, सुचेता ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि गांधीजी चाहते थे कि वे किसी और से शादी कर ले,उन्होंने दबाव भी डाला पर मैंने उसे एक सिरे से खारिज कर दिया। खैर 1936 में दोनों का विवाह हो गया। आचार्य जे.बी. कृपलानी की पत्नी सुचेता कृपलानी महात्मा गांधी के काफी करीबी रही।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहीं,कई बार जेल भी गईं।प्रसिद्ध अधिवक्ता और साहित्यकार कनक तिवारी ने बताया कि भारत की संविधान सभा का कार्य 9 दिसंबर 1946 को शुरू हुआ। सबसे पहले जे बी कृपलानी ही बोले थे।इधर सुचेता भी 1946 में संविधान सभा की सदस्य रहीं।1958-1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रही वहीं 1963 से 1967 तक उत्तरप्रदेश की चौथी तथा आजाद भारत की पहली महिला सीएम बनने का गौरव भी हासिल किया। वे उप्र के मुख्यमंत्री बनने के पहले 2 बार लोकसभा सदस्य भी रही। वैसे वे आल इंडिया महिला कांग्रेस की संस्थापक भी रहीँ ।14 अगस्त 1947 को देश की आजादी के पूर्व उन्होंने वंदेमारतम् गाया था उसी के बाद संसद में पं. जवाहर लाल नेहरू ने भाषण दिया था।1950 में उन्होंने मतभेद के चलते कांग्रेस से अलग होकर अपने पति की पार्टी से न्यू दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस की उम्मीदवार मनमोहनी सहगल को पराजित किया। बाद में कांग्रेस में उनकी वापसी हो गई और 1967 में उत्तरप्रदेश के गोंडा लोस से अंतिम बार सांसद चुनी गई।1952 में आचार्य कृपलानी के पंडित जवाहर लाल नेहरू से संबंध खराब हो गये। उन्होंने अपनी अलग पार्टी कृषक मजदूर प्रजा पार्टी बना ली। बाद में हालात ने ऐसी करवट ली कि पति-पत्नी दोनों विरोधी दलों में हो गये। लेकिन दोनों साथ साथ ही रहते थे।आजादी के बाद सुचेता कृपलानी तो कांग्रेस में ही रही पर आचार्य कृपलानी आजीवन कांग्रेस के विरोधी रहे। बाद में आचार्य कृपलानी मजाक में कहते भी थे कि कांग्रेसी इतने बदमाश हैं कि वो मेरी पत्नी को भगाकर ले गये (कांग्रेस में) दरअसल 1950 में जब कांग्रेस से अलग होकर आचार्य कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई फिर लोहिया के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की तो 1950 में सुचेता ने दिल्ली लोकसभा से किसान मजदूर पार्टी से चुनाव लड़ा,जीता भी बाद में कांग्रेस में चली गई और उ.प्र. की मुख्यमंत्री बनी, 1971 में राजनीति से संन्यास लेने के बाद अपने पति के साथ दिल्ली में एक बंगले के गैरेजनुमा किराये के कमरे में रहती थीं।1974 में सुचेता की मृत्यु 66 साल की उम्र में हो गई। वहीं आचार्य कृपलानी का 1982 में निधन हो गया।

 

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