आइए आज हम आपको ऐसे उदार, सर्वधर्म सद्भाव की मिसाल और ज्ञान की ऊंचाइयों को छूने वाले एक महान व्यक्ति की जीवन कहानी सुनाते हैं। एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसने जन्म तो मुस्लिम समुदाय में लिया लेकिन मरने से पहले वसीयत की कि उनका अंतिम संस्कार की विधि दाह संस्कार की हो। उन्हें सुपुर्दे ख़ाक न किया जाए बल्कि उन्हें अग्नि को समर्पित किया जाए।
हम बात कर रहे हैं मोहम्मद हिदायतुल्लाह की। छत्तीसगढ़ से उनका गहरा नाता रहा, वे यहां रायपुर के सरकारी स्कूल में पढ़े। वे अपने 2 भाइयों व माता जी के साथ बूढ़ापारा में रहते थे। उनके पिता को प्रोपर्टी कोर्ट ऑफ वार्डस बस्तर स्टेट में प्रशासक नियुक्त किया गया था। उनका कार्य बस्तर की प्रॉपर्टी की हिफाज़त व कर निर्धारण आदि करना था। उस समय बच्चो की पढ़ाई के लिए उन्हें उनकी माँ के रायपुर में रखा गया। इसलिए मोहम्मद हिदायतुल्लाह अपनी माँ और भाइयों के साथ रायपुर में ही रहते थे। मोहम्मद हिदायतुल्लाह एक ऐसा नाम है जो भारत के महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार का प्रत्यक्ष गवाह रहे। ये भारत के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश और कार्यवाहक राष्ट्रपति रहने के साथ साथ एक पूर्णकालिक उपराष्ट्रपति भी रहे। इनके राष्ट्रपति बनने की कहानी बड़ी रोचक है जिनके वजह से संविधान के जानकार अक्सर इनकी चर्चा करते हैं।
जीवन परिचय
मोहम्मद हिदायतुल्लाह का जन्म 17 दिसंबर 1905 को नागपुर(महाराष्ट्र) के एक संभ्रांत,शिक्षित और बुद्धिजीवी परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज़ मूल रूप से बनारस के रहनेवाले थे। इनके दादा “मुंशी कुदरतुल्लाह” बनारस के एक जाने माने वकील थे जबकि इनके पिता “खान बहादुर हाफिज़ विलयतुल्लाह” I S O मजिस्ट्रेट मुख्यालय में तैनात थे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह की एक बहन और दो भाई भी थे।उनके भाइयों का नाम “इकरामुल्लाह और अहमदुल्लाह था। इनकी माता का नाम मुहम्मदी बेगम था जो मूल रूप से मध्य प्रदेश के “हंदिया” की रहनेवाली थी। मोहम्मद हिदायतुल्लाह भी पढ़ाई में बहुत तेज़ थे। उनकी विद्वता का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि समय से पूर्व ही वो मैटिक परीक्षा लिखने के लिए तैयार हो गए थे। इसके अलावा केवल 9 वर्ष की उम्र में ही उनकी विद्वता के कारण उन्हें “हाफिज” नामक मुस्लिम पदवी प्राप्त हो चुकी थी। 1922 में इन्होंने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण