रायपुर : समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने पुनः एक बार वर्तमान स्थिति को देखते हुए मीडिया के माध्यम से आम जनता, प्रशासन और शासन का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि जहाँ एक ओर नोटबंदी के बाद से ही देश की जनता आर्थिक संकट से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन के कारणवश अब ये आर्थिक स्थिति बद से बदत्तर हो चुकी है। लेकिन चिंता की बात यह है कि इस विपरीत स्थिति में भी कुछ लोग, कुछ संस्थान और कुछ संगठन, मानवता और संवेदनशीलता पूरी तरह से भूल चुके हैं। यहां तक की यह लोग, यह संगठन और यह संस्थान सरकारी नियमों का भी पालन नहीं कर रहे हैं और पूरी तरह से केवल पैसे के लिए सरकारी फ़रमान की अनदेखी कर रहे हैं और लोगों को मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और सभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने देशवासियों को आश्वस्त किया था की कोरोनावायरस के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन में कोई किसी से किराया नहीं लेगा, कोई किसी पर दबाव नहीं डालेगा, कोई सरकारी या गैर सरकारी स्कूल या कॉलेज अभिभावकों पर फीस के लिए कोई दबाव नहीं डालेंगे ना ही कोई मैसेज या कॉल करेंगे, लोग वर्क एट होम कर पाएंगे लेकिन उनकी पगार नहीं कटेगी। लेकिन ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही है। असल बात यह है कि लोगों की नौकरियाँ चली गईं, किरायेदारों ने मकान मालिकों के दबाव के कारण या तो अपने सामान बेचकर किराया दिया या तो घर छोड़कर जाने को मजबूर हुए, बैंकों ने ईएमआई सुचारू रूप से वसूल की नहीं तो लोगों को भारी भरकम पेनल्टी भरने की चेतावनी दी, मजदूर काम नहीं होने के कारण अपने अपने घरों को जाने के लिए जूझते रहे जो कि पूरे देश ने देखा और स्कूल व कॉलेज अभिभावकों को निरंतर मैसेज भेजते रहे और आज भी भेज रहे हैं कि वह स्कूल की फीस जमा करवाएं। इन स्कूल व कॉलेजों में न केवल प्राइवेट बल्कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित स्कूल भी अभिभावकों को मैसेज व कॉल कर रहे हैं।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि अब प्रश्न यह उठता है कि यह अभिभावक किस से गुहार लगाएं, किसकी शरण में जाएं, क्योंकि सरकारें अपने अधिकारियों को आदेश तो जारी करने के लिए बोलती हैं लेकिन कभी यह नहीं देखतीं कि क्या उन आदेशों का सुचारू रूप से पालन हो रहा है? देश में यह जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ना सरकारी नीति सही है ना नियम सही है और सरकारी नियमों और आदेशों का क्रियान्वयन सही प्रकार से हो रहा है या नहीं उस पर ना कोई अंकुश है और न ही उनका सुपरविजन हो पा रहा है।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि प्राइवेट स्कूल कॉलेजों के साथ ही, केंद्रीय विद्यालय जैसे संगठन भी अभिभावकों को फीस भरने के लिए मैसेज भेज रहे हैं जो कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित है। अब मैं मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, केंद्रीय शिक्षा मंत्री और छत्तीसगढ़ राज्य के शिक्षा मंत्रियों से यह प्रश्न करता हूं कि जब देश में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण हुए लॉकडाउन के बाद आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ है, लोगों के पास अपने जीविकोपार्जन के लिए पैसे नहीं हैं तो उस सूरत में लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस कैसे भरें और जब सरकारें कह रही हैं कि फिलहाल फीस भरने की जरूरत नहीं है तो यह प्राइवेट और सरकारी शैक्षणिक संगठन किस आधार पर अभिभावकों को फीस देने के लिए मैसेज भेज रहे हैं। यह विचारणीय है। इस पर कृपया ध्यान दें नहीं तो देश में बहुत ही विकराल स्थिति पैदा हो जाएगी, साथ ही मैं मांग करता हूं की एक ऐसी टीम का गठन किया जाए जो कि देश में सभी प्रकार के निर्देशों और आदेशों के पालन और क्रियान्वयन का सुपरविजन करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्या केंद्र और राज्य की योजनाएं और नियमों का पालन सही प्रकार से हो पा रहा है या नहीं? क्या वाकई जनता को इन नियमों आदेशों और योजनाओं से लाभ मिल पा रहा है या नहीं!