बिप्लब् कुण्डू,पाखंजुर : फसल कटाई के बाद किसान फसलों के ठूंठ खेत में ही जला देते है। इसे मिट्टी की उर्वरता के लिए नुकसान दायक बताते हुए उप संचालक कृषि नरेन्द्र कुमार नागेश ने बताया कि फसल अवशेष खेतों में जलाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है, मित्र कीट नष्ट होते हैं, सूक्ष्म जीव पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं, साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बल मिलता है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस संबंध में कार्यवाही करते हुए फसल अवशेष को खेतों में जलाना प्रतिबंधित कर दिया है। इसकी निगरानी भारत सरकार के द्वारा सेटेलाईट्स के माध्यम से की जावेगी। फसल अवशेष जलाना अब दण्डनीय अपराध होगा । छोटे किसान जिनके पास दो एकड़ से कम खेत हैं उन्हे 2500 रूपये, मध्यम किसान जिनके पास 2-5 एकड़ खेत हैं उन्हे 5000 रूपये एवं बड़े किसान जिनके पास 5 एकड़ से अधिक खेत हैं उन्हे 15000 रूपये हर्जाना स्वरूप फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के एवज में देना होगा। उप संचालक द्वारा कृषि विभाग के समस्त मैदानी अमलों को इस संबंध में कृषकों को समझाईश देने हेतु निर्देशित किया गया है।
फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव…
फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव के संबंध में जानकारी देते हुए उप संचालक नागेश ने कहा कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा इसका दुष्प्रभाव मानव एवं पशु स्वास्थ्य तथा मृदा स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में पाये जाने वाले पोषक तत्व विशेषतः नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर नष्ट हो जाते हैं एवं मिट्टी की उर्वरता कम होती है। फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाऊस प्रभाव पैदा करने वाली तथा अन्य हानिकारक गैसों तथा मीथेन, कार्बन मोनोआक्साईड, नाईट्रस आक्साईड तथा नाइट्रोजन के अन्य आक्साईड का उत्सर्जन होता है।
बायोमॉस जलाने से उत्सर्जित होने वाले धुएं में फेफड़ों की बीमारी को बढ़ाने वाले तथा कैंसर उद्दीपक विभिन्न अज्ञात तथा संभावित प्रदूषक भी होते हैं। फसल अवशेष जलाने से मृदा की सर्वाधिक सक्रिय 15 सेन्टी मीटर तक की परत में सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्यजीवियों का नाश हो जाता है। मिट्टी में पाये जाने वाले केचुंए, अन्य लाभकारी जीव एवं मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। अनुमानतः 1 टन धान के पैरे को जलाने से 5.5 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फास्फोरस, 25 किलो ग्राम पोटेशियम तथा 1.2 किलो ग्राम सल्फर नष्ट हो जाता है। सामान्य तौर पर फसल अवशेषों में कुल फसल का 80 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 50 प्रतिशत सल्फर व 20 प्रतिशत पोटाश होता है। इनका उचित प्रबंधन काश्त लागत में पर्याप्त कमी किया जा सकता है।
फसल अवशेष प्रबंधन…
फसल कटाई के उपरांत खेत में पड़े हुए पैरा, भूसा आदि को गहरी जुताई कर पानी भरने से फसल अवशेष कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जायेंगे जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होंगे। फसल कटाई के बाद खेत में बचे हुए फसलों के अवशेष जैसे- घास-फूस, पत्तियां एवं पौधे के ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए फसल को काटने के बाद 20-25 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर के दर से खेत में छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से भूमि में मिला देना चाहिए। फसल कटाई के उपरांत दी गई नत्रजन की मात्रा अवशेषों में सड़न क्रिया को तेज कर देती है। इस प्रकार पौधों के अवशेष खेत में विघटित होकर ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं। इस प्रक्रिया में लगभग एक माह का समय लगता है।
एक माह के पश्चात् फसल अवशेष स्वयं विघटित होकर आगे बोई जाने वाली फसलों को पोषण तत्व प्रदान करते हैं। फसल कटाई उपरांत खेत में बचे हुए फसल अवशेषों को इकट्ठा कर कम्पोस्ट गड्ढे में या वर्मी कम्पोस्ट टांके में डालकर कम्पोस्ट बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। फसल कटाई उपरांत खेत में फसल अवशेष पड़े रहने के बाद भी बिना जलाये बीजों की बोनी हेतु शून्य लागत बीज बोआई यंत्र, जिरो-सीड-कम-फअीर्लाईजर ड्रील, हैप्पी सीडर इत्यादि बोनी यंत्र तथा फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का उपयोग किये जाने से बीज का प्रतिस्थापन उपयुक्त नमीं स्तर पर होता है, साथ ही ऊपर बिछे हुए फसल अवशेष नमी संरक्षण का कार्य, खरपतवार नियंत्रण एवं बीज के सही अंकुरण के लिए मल्चिंग का कार्य करता है।
उप संचालक नागेश ने कहा कि फसल अवशेष का उपयोग मशरूम उत्पादन इत्यादि के लिए किया जाना चाहिए। फसल अवशेष से चारे के रूप में एवं पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने में किये जा सकते हैं तथा इसका प्रयोग इथेनॉल उत्पादन और ऊर्जा उत्पादन में कच्चे माल के लिए भी किया जा सकता है।