( लेेेखक ) शिव ग्वालानी
जब एक उपन्यास कई सारी सत्य घटनाओं पर आधारित हो तो वो एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन जाता है। भले ही मज़बूरीवश पात्रों के नाम बदल दिये जायें। स्थान परिवर्तित कर दिये जायें, लेकिन इससे पात्रों और घटनाओं का महत्व कम नहीं हो जाता। ऐसे उपन्यास पाठकों का मनोरंजन तो करते ही हैं, किन्तु उनके ज्ञान में वृद्धि भी करते हैं। ऐसा ही एक उपन्यास इन दिनों चर्चा में है ‘मास्टर ऑफ नथिंग डब्ल्यू डी’। उपन्यास का नाम जितना अनोखा है, उतना ही रोमांचक इसका प्लॉट है।
उपन्यास का नायक विदाउट डिग्री है इसलिए उसके दोस्त उसे ‘डब्ल्यू डी’ कहते हैं। लेकिन ‘डब्ल्यू डी’ अनपढ़ नहीं है। उसने हर जगह हाथ-पैर मारे हैं। बीएससी पास कर पीएमटी क्लियर करने की कोशिश की, एक नम्बर से डॉक्टर बनते-बनते रह गया। डेंटल में प्रवेश मिला तो आरक्षण के मुद्दे पर बाहर हो गया। BAMS, CA, UPSC ना जाने कहाँ-कहाँ प्रयास किये। अन्ततः वकालत पढ़ने करने पहुंचा पर फाइनल ईयर में अंग्रेजी न आने के कारण वहां से बाहर हो गया। पेंटिंग की, फिल्में भी बनाई। कोई डिग्री न होने से दोस्त उसे विदाउट डिग्री कहने लगे हैं। लेकिन वह कुछ न होकर भी हर विषय का मास्टर है। पढ़ाई से भले उसे कुछ हासिल न हुआ हो, लेकिन जीवन की पाठशाला ने उसे वह सबकुछ सीखा दिया है, जो अच्छे-अच्छे नहीं जानते।
उसकी एक प्रेमिका भी है ‘डेला’। खूबसूरत, स्मार्ट और डब्ल्यू डी से बेतहाशा प्रेम करने वाली। डेला एडवोकेट है। वो डब्ल्यू डी की मदद से बड़े से बड़े मुकदमे जीतती है और नामी वकील बन जाती है। इन दोनों की कहानी रोमांच पैदा करती हैं। दोनों कई तरह के जंजाल में फंसते-निकलते रहते हैं।
समाज और सिस्टम के गलीचे के नीचे चल रहे भ्रष्टाचार को यह उपन्यास सबके सामने लाकर रख देता है। नेता, मीडिया, हाउसिंग सोसायटीज़, न्यायपालिका, अफसर के नेक्सेस पर उपन्यास जोरदार वार करता नज़र आता है।
उपन्यास की शुरुआत ही कोर्टरूम ड्रामे से होती है। कैसे एक आरोपी न्याय व्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए जमानत हासिल कर लेता है। डेला डब्ल्यू डी की मदद से हाइकोर्ट जाती है और निचली अदालत में हुए अन्याय को सामने लाती है। आरोपियों की जमानत कैंसिल होती है और सरकारी वकील को केस से हटवाती है और निचली अदालत के जज पर कोर्ट ऑफ इन्क्वारी बैठती है। चूंकि यह एक सत्य घटना पर आधारित है तो इसे पढ़ना बहुत रोमांचक लगता है।
लेखक ने उपन्यास में अपने जीवन का निचोड़ डाल दिया है। पात्रों के संवाद भी सधे हुए लगते हैं। कहीं-कहीं दार्शनिक भाव में भी संवाद लिखे गए हैं।
ऐसा ही एक संवाद है कि’ धर्म कभी भी इंसान के जीवन से बढ़कर नहीं होता। जब भी इंसान के जीवन पर संकट आता है तो वह उसे बचाने के लिए हर उस चीज का उपयोग करता है जो कुदरत ने बनाई है।’
डब्ल्यू डी पत्रकार भी बनता है। यहां उसे वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे भी मिलते हैं, जो दैनिक नव जन आज़ादी के संपादक हैं और शहर में उनकी तूती बोलती है। वे डिस्ट्रिक डेवलपमेन्ट अथॉरिटी में हो रहे जमीन आवंटन के घपलों का खुलासा कर तूफान ला देते हैं।
उपन्यास में प्यारी सी प्रेम कहानी है तो मर्डर मिस्ट्री भी है। कोर्ट रूम ड्रामे हैं, तंत्र-मंत्र है। मेडिकल कॉलेजों की आरक्षित सीटों की बंदरबांट का सटीक चित्रण भी है। धर्मों की व्याख्या भी है। इनायत अली, शंकर पांडे, शफ़ीक़ भाई, तिवारी जी जैसे पात्र हैं, जिनके संवाद हमें जीवन की गहराई में जाते हैं। कुल मिलाकर यह एक थ्रिलर है, जिसे पढ़कर आप इसमें खो जाएंगे।
लेखक शिव ग्वालानी खुद जासूसी उपन्यासों के कायल रहे हैं। वे इब्ने सफ़ी से लेकर गुलशन नन्दा, वेद प्रकाश कम्बोज, ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश शर्मा और सुरेंद्र मोहन पाठक की किताबें पढ़ते रहे हैं। अंग्रेजी उपन्यासकार फेड्रिक फोरसिथ, शिड्नी शेलजन,अर्लस्टेनले गार्डनर, अगाथा क्रिस्टी, जेम्स हेडली चेईस को भी उन्होंने पढा है।
यह शिव ग्वालानी का पहला उपन्यास है, जो मौलिक है और मजेदार भी। शिव ग्वालानी ने उपन्यास को पठनीय बनाने के लिए सारे मसाले डाले हैं। घटनाओं का चित्रण बहुत बारीकी से किया है। यही कारण है उपन्यास में कहीं भी हल्कापन नज़र आता। इसकी यूएसपी ये भी कि ये ऐसा नॉवल है, जिसे घर का हर सदस्य पढ़ सकता है।
इसे एम्प्टी कैनवास पब्लिशर ने प्रकाशित किया है। यह अमेज़न पर भी उपलब्ध है।
प्रियंका कौशल। ( समीक्षा )