( लेखक एक पूर्व अधिकारी हैं )
भारत में वसंत ऋतु के आगमन का उल्लास से भरा त्यौहार है वसंत पंचमी। इसी दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्मदिन भी हम मनाते हैं। हमारे पुरखों ने कितनी सूझबूझ के साथ यह तय किया होगा कि जब सर्दी बीत चुकी हो और गर्मी आने में अभी समय हो, प्रकृति का तापमान मनुष्य के शरीर के तापमान के बराबर हो, हवा मदमाती हुई पत्तों को छूते हुए गुजरे और प्रकृति में नई कोपलें धारण करने का उल्लास हो, ऐसी वसंत ऋतु में ही मां सरस्वती का जन्मदिन हो सकता है, क्योंकि ऐसी ही रितु मस्तिष्क के मुक्त भाव से चिंतन के सबसे अनुकूल होगी।
अगर हम घर से बाहर निकल कर आसपास के पेड़ पौधों और जंगलों पर नजर डालें तो आप देखेंगे कि कुछ पेड़ों पर वसंत आ चुका है, जबकि कुछ अभी वसंत की प्रतीक्षा में खड़े हैं। कुछ पौधों में फूल खिल गए हैं, कुछ पौधे पत्ते छोड़ चुके हैं। कई वृक्षों के पत्ते पीले पड़ चुके हैं और झरने की प्रक्रिया में है। कहीं बसंत आ चुका है, कहीं आने वाला है तो कोई पतझड़ की तैयारी कर रहा है। उसके बाद ही उसका वसंत आएगा।
क्या प्रकृति के इन सभी पेड़ पौधों को पता नहीं है कि वसंत आ चुका है तो उन सब को एक साथ पत्तों और फूलों से लद जाना चाहिए। असल में प्रकृति तो वसंत ले आती है लेकिन अपने हिस्से का वसंत लाने के लिए सबकी अलग-अलग पात्रता है। एक सी हवा, पानी और धूप में कोई वृक्ष पतझड़ की तैयारी करता है तो दूसरा वृक्ष वसंत पर इठलाता है। जब तक कोई स्वयं तैयार नहीं होता है तब तक प्रकृति अकेले उसमें बदलाव नहीं कर सकती।
यही बात हम मनुष्यों पर भी लागू होती है। प्रकृति और ईश्वर ने तो हमें वे सारे कारण प्रदान किए हैं जिनमें हमारे ऊपर सदा बहार बनी रहे, लेकिन हम ही अपनी कमजोरियों से वसंत को खुद से दूर कर लेते हैं। प्रकृति के जीवन में जो महत्त्व वसंत के पर्यावरण का है, मनुष्य के जीवन में वही महत्त्व सत्संग के असर का होता है। जो व्यक्ति जितनी ताकत से ज्ञान और मानवता के रास्ते पर आगे बढ़ता है, उसके जीवन में उतनी ही तेजी से शांति और सौम्यता आती जाती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके आसपास दुनिया भर का ज्ञान होता है लेकिन उन्हें अपना अज्ञान का अंधेरा ऐसा पसंद होता है कि वे ज्ञान की तरफ देखते ही नहीं। अगर किसी को पतझड़ से ही प्यार हो जाए तो वसंत का उसके पास पहुंचना बहुत कठिन है।
मनुष्य और प्रकृति के स्वभाव की इसी समानता को छूते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने प्रसिद्ध निबंध लिखा था वसंत आ गया है। इसी निबंध में उन्होंने आगे कहा था वसंत आता नहीं लाया जाता है।
तो जिस तरह इस समय प्रकृति मवसंत के लिए तैयार है और पेड़ पौधे अपनी अपनी पात्रता के अनुसार उसका स्वागत करते जा रहे हैं, उसी तरह इंसान को भी लगातार अपनी योग्यता को बढ़ाना होगा ताकि उसका वसंत और ज्यादा लंबा हो। वसंत का अर्थ सिर्फ इतना नहीं है की प्रकृति हरी भरी हो जाती है, वसंत का अर्थ यह भी है कि इस समय में प्रकृति पूरे संसार पर पराग लुटाती है। तो मनुष्य की भी यह जिम्मेदारी है कि वह खुद तो फूलों की तरह खिलता ही रहे, साथ ही अपनी महक से दूसरों को भी खुश करता रहे। हम सबके जीवन में ऐसा ही वसंत हमेशा आए, यही कामना है।