शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
हाल ही में छत्तीसगढ़ के बीजापुर क्षेत्र के तरर्म थाना के अंतर्गत नक्सलियों ने 22जवानों की शहादत ले ली,वहीं कश्मीर के निवासी युवा जवान का अपहरण भी कर लिया और मध्यस्थता के बाद उसे जनता दरबार में रिहा भी कर दिया…अपनी भूमिका का स्पष्टीकरण भी दिया… वहीं सुरक्षा बलों पर आरोप भी लगाया….साथ ही मीडिया की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैंl बहरहाल जब तालमेटला की घटना हुई थी और 76 जवान शहीद हुए थे अब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और राज्य में भाजपा की सरकार थी तब तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम आए थे और नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की बात की थी…. हाल ही में तो बीजापुर की घटना के समय 22जवानों की शहादत हुई और केंद्र के गृहमंत्री अमित शाह आए और उन्होंने भी निर्णायक संघर्ष की बात की…फर्क इतना है कि अभी केंद्र में भाजपा की सरकार है और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है.., भला हो भाजपा की प्रदेश सरकार का जिसके अपने संपर्कों के माध्यम से नक्सलियों से जवान क़ो छुड़ाने में सफल रहे. हालांकि इस मामले में खूंखार नक्सली हिड़मा को निपटाने किसके नेतृत्व में टीम गई….? इंटेलिजेंट फैलवर था कि नहीं…?इसका खुलासा तो शायद ही हो पाएगा l
प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर बस्तर में वनों से आच्छादित पहाडिय़ां, उनमें उन्मुक्त विचरण करते वन्य प्राणी, मनोहारी जलप्रपातों के साथ कलकल बहती नदियां, वहां रहने वाले सीधे सादेे लोग, जंगलों में पारंपरिक नृत्य मन मोह लेते थे पर पता नहीं बस्तर को किसकी? नजर लग गई.झीरमघाटी के नरसंहार के बाद विधायक भीमा मंडावी सहित 5 लोगों की हत्या, बीजापुर के हालिया मामले से निश्चित ही फिर सोचने मजबूर किया है कि क्या बस्तर या छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या का कोई तोड़ सरकार के पास नहीं है…,?
केरल राज्य से बड़ा बस्तर उत्तर से दक्षिण तक 215 किलोमीटर की लंबाई और पश्चिम से पूर्व तक 182 किलोमीटर की चौड़ाई तक फैले 39 हजार 114 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का बस्तर अपनी प्राकृतिक संपदा, जनजातीय संस्कृति, पुरातत्व और प्राकृतिक स्थलों के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। पर कुछ सालों से सदाबहार और निस्तब्ध वनों की खुशबू में खौफनाक जहर घोल दिया है। बस्तर, नक्सली वारदातों, बारूद की दुर्गंध और निर्मम हत्याओं को लेकर चर्चा में है। 1972 में पहली बार भोपालपट्नम में पहली बार नक्सली धमक सुनी गई थी। उसके बाद छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदात बढ़ती रही उनका दखल क्षेत्र बढ़ता गया। 76 सीआरपीएफ जवानों की निर्मम हत्या, झीरमघाटी में 9 बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, बतौर निर्दलीय सांसद बनने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, अविभाजित म.प्र. तथा छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री का दायित्व सम्हालने वाले नंदकुमार पटेल, पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित 31 लोगों की शहादत हो चुकी है, दंतेवाड़ा जेल ब्रेक में 299 नक्सलियों सहित कैदियों के फरार होने की वारदात हुई, एक ट्रक बारूद भी बस्तर के जंगलों से लापता होने की खबर मिली थी, राजनांदगांव जिले के मानपुर जंगल में नक्सली वारदात में एसपी विनोद चौबे की हत्या की गई। बस्तर में दिनों दिन बिगड़ते हालात के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है….? सीआरपीएफ के 76 जवानों के सामूहिक नरसंहार के बाद तत्कालीन एसपी को हटा दिया गया, झीरम घाटी की बड़ी वारदात के बाद भी एसपी हटा दिये गये वहीं तत्कालीन कलेक्टर को सचिवालय अटैच कर दिया गया। दुनिया का सबसे बड़ा नक्सली जेल ब्रेक हुआ और तत्कालीन डिप्टी जेलर को बर्खास्त कर दिया गया। क्या बस इसी से सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो गई। सुकमा से कलेक्टर एलेक्स पाल मेमन का अपहरण हो गया उनकी किन ‘शर्तों’ में वापसी हुई इसकी अभी तक चर्चा है…!
बस्तर और विवाद
कभी बस्तर संभाग का बतौर कार्यभार सम्हालने वाले तत्कालीन कमिश्नर शेखर दत्त बाद में छग के राज्यपाल बने, छत्तीसगढ़ के बतौर मुख्य सचिव का कार्यभार सम्हालने वाले सुनील कुमार ने आईएएस का प्रारंभिक प्रशिक्षण बस्तर से ही लिया। म.प्र. के पूर्व मुख्य सचिव आर.परशुराम भी जून 86 से मई 88 तक बस्तर के कलेक्टर रहे, नक्सलियों के करीबी समझे जाने वाले स्व. ब्रम्हदेव शर्मा भी बस्तर में कलेक्टर रह चुके हैं। बस्तर में कई योग्य अफसर पदस्थ रहे फिर भी नक्सलवाद के बीज को खाद-पानी मिलता रहा और वह अब विशाल वृक्ष के रूप में तब्दील हो चुका है। सीपीएण्ड बरार (जब म.प्र.-छत्तीसगढ़ इसी राज्य में शामिल था) में भी बस्तर की पृथक पहचान थी। आजादी के बाद एसपी मुशरान वहां प्रभारी तो 6 जनवरी 49 से 21 जनवरी 55 अर्थात लगभग 6 साल के लंबे समय तक कलेक्टर रहे आर.सी.व्ही. पी. नरोन्हा ने रिकार्ड ही बना डाला वही मात्र 24 दिन के कलेक्टर बनने का रिकार्ड हर्षमंदर का है।
बस्तर के कलेक्टर मो. अकबर ने 1962 से 66 यानि 4 साल तक बस्तर की कलेक्टरी की इन्हीं के कार्यकाल में ही बस्तर के मसीहा के नाम से चर्चित राजा प्रवीरचंद भंजदेव की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई वहीं कई अन्य लोग भी पुलिस फायरिंग से मारे गये। उस समय अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री डीपी मिश्र थे। यह मामला देश की संसद सहित विधानसभा में गूंजा था। आज भी कई सवाल अनुतरित है। डॉ. ब्रम्हदेव शर्मा 24 अगस्त 69 से 3 नवंबर 71 तक बस्तर के कलेक्टर रहे तब बस्तर में दैहिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई एवं पुरातात्विक धरोहरों की अफरा-तफरी उस समय भी हुई। 10 अक्टूबर 1977 से 1 अगस्त 1980 तक बस्तर के कलेक्टर रहे नन्हें सिंह का कार्यकाल काफी चर्चित रहा। इन्हीं के कार्यकाल में यशोदा हत्याकांड और बैलाडिला गोलीकांड हुआ जिसमें कई आदिवासियों-श्रमिकों की मौत हुई थी। औद्योगिक नगरी किरंदुल (बैलाडिला की पहाडिय़ों से लगा) में छटनी का विरोध करने वाले मजदूरों और पुलिस के बीच झड़प के बाद गोली चलाई गई कई मजदूर असमय ही काल कलवित हो गये। उस समय मजदूरों की सिलसिलेवार जली झोपडिय़ां और बैलाडिला की रक्त रंजित पहाडिय़ां अभी भी इस बात की गवाह है कि आजादी के इतने साल बाद भी पुलिस का आचरण वैसा ही था जैसा आजादी के पहले था। बस्तर के 27 वें कलेक्टर बी राजगोपाल नायडू ने 15 जुलाई 96 को कार्य सम्हाला था तब तत्कालीन कमिश्नर और उनके बीच उपजे विवाद की चर्चा तत्कालीन मुख्यमंत्री तक पहुंची थी। मालिक मकबूजा वृक्ष यानि आदिवासियों की जमीन पर खड़े इमारती वृक्षों को कहा जाता था। टिम्बर व्यापारी कम कीमत में वृक्ष खरीदकर अधिक कीमत में बेचते थे। इस दौरान करीब 55 करोड़ के 75 हजार वृक्ष टिम्बर व्यापारियों द्वारा काटे गये बाद में कमिश्नर और कलेक्टर को जांच का आदेश देना भारी पड़ा उनके तबादले कर दिये गये। इस मामले में बस्तर के कुछ राजनेताओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में 25 फरवरी 97 को प्रवीरकृष्ण कलेक्टर बने तो ‘इमली आंदोलन’ के लिए उनका कार्यकाल चर्चित रहा। बस्तर की वनोपज इमली का सही मूल्य दिलाने उन्होंने महत्वपूर्ण कदम उठाया था। वैसे मालिक मकबूजा प्रकरण के छीटे तत्कालीन कमिश्नर नारायण सिंह (बाद में मुख्य सचिव छग के समतुल्य पद से सेवानिवृत्त) तथा चितरंजन खेतान तत्कालीन सहायक कलेक्टर पर भी पड़े, नारायण सिंह, खेतान तो इसी प्रकरण के चलते संभवत: मुख्य सचिव नहीं बन सके जुलाई माह में खेतान रिटायर हो जाएंगे.. बस्तर में बाद में गणेश शंकर मिश्रा ने बतौर कलेक्टर- कमिश्नर वहां कार्यभार सम्हाला और शहर के विकास सहित औद्योगिकीकरण के लिए कई कदम भी उठाये। बस्तर में अमृत खलको आयुक्त के पद पर नई सरकार के गठन के बाद पदस्थ किये गये । वैसे वे संभवत: देश के पहले आयुक्त हैं जिनके अधीन सर्वाधिक जिले रहे । इनके कार्यकाल में विधानसभा चुनाव तथा उप चुनाव में बस्तर भाजपा मुक्त हो गया, बस्तर से एक कांग्रेसी सांसद भी चुना गया पर उन्हें अचानक राजभवन में अटैच कर दिया गया…?सवाल फिर यही उठ रहा है कि जब अच्छे प्रशासक – कलेक्टर-कमीश्नर वहां पदस्थ रहे तब भी नक्सलवाद का पौधा कैसे फलता-फूलता रहा? क्या अफसरशाही इसके लिए जिम्मेदार है वहां की राजनीति इसके लिए दोषी हैं या राज्य सरकार की इच्छाशक्ति की कमी कहीं न कहीं दोषी है। इसके लिए गंभीरता से विचार करना होगा? अभी भी नक्सलियों से बातचीत की बात उठती है….तो कभी गोली का जवाब गोली से उठाने की बात होती है….इस समय मुझे छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल तथा आईबी में डायरेक्टर रहे इ.एस.एल. नरसिम्हन (बाद में राज्यपाल आंध्रप्रदेश-तेलंगाना) की बात याद आती है उन्होंने एक बार मुझे दिये गये साक्षात्कार में कहा था कि पहले यह तो पता चले कि नक्सली आखिर चाहते क्या हैं? नक्सलियों से बातचीत का सवाल है तो पहले यह तो पता लगाया जाए कि नक्सली का नेतृत्व कौन कर रहा है? क्योंकि नक्सली संगठन कई लेयर में बना है? वैसे आंध्रप्रदेश-तेलंगाना पैटर्न पर ही सरकार को कोई योजना बनाना पड़ेगा। सलवा जुडूम, के.पीएस गिल की पदस्थापना, विजय रमन को नक्सली मामले का प्रभारी बनाकर कई प्रयोग हुए और उन्हें सफल तो नहीं कहा जा सकता है?
कोरोना टेस्ट, अस्पताल से मरघट तक..
कोरोना के कारण पिछले एक साल से अधिक समय से जनजीवन बेहाल है, बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई है, कुछ राज्यों की आर्थिक हालत दयनीय है ऐसे में कोरोना की दूसरी लहर के बाद नाइट कर्फ्यू, लॉक डाउन कई शहरों में शुरू हो गया है, छग के रायपुर, दुर्ग, राजनांदगाव, बेमेतरा तथा बालौद जिलों में लॉक डाउन है….
वैसे कई राज्यों में बड़ी अजीब स्थिति हो गई है कुछ राज्यों की शिकायत है कि उन्हें कोरोना वैक्सीन समय पर नहीं मिल रही है छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने सही कहा है कि पहले प्रदेशों में वेक्सीन की आपूर्ति की जाए बाद में दूसरे देशों में….. वैसे 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को वेक्सीन दी जा रही है और जो लोग इससे कम आयु के गंभीर रूप से बीमार हैं उनके बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है I छग के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने भी 18 साल की उम्र वालों को भी कोरोना वैक्सीन शुरू करने की मांग प्रधानमंत्री से की हैl
हालात यह है कि पहले कोरोना की जाँच नहीं हो पा रही है….किसी तरह जाँच हो गईं और कोरोना रिपोर्ट पजिटिव्ह आई तो अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं हैँ… चलो कहीं भर्ती हो गये तो नर्स, वार्ड ब्वाय के भरोसे इलाज चल रहा है…. बच गये तो आपका पुण्य प्रताप है, दुनिया छोड़ गये तो बिना परिजनों के कब अंतिम संस्कार होगा यह तय नही है….? क्योंकि वहाँ भी इंतजार करना पड़ रहा है… क्योंकि मरघट में बड़ी भीड़ है… दरअसल यह जान लेवा बीमारी हमारे घर नहीं आती..,हम ही इसे लेकर घर आते हैँ…. हमें मास्क लगाने,हांथ धोने के साथ वेक्सीन लगवाने आगे आना ही होगा…
और अब बस…
0 देश में नक्सलवाद की कुल घटनाओं में करीब 70 प्रतिशत छत्तीसगढ़ और झारखंड में होती है।
0 बस्तर की पहाडिय़ों में बसा अबूझमाड़ ऐसा वन क्षेत्र है जहां सर्वेक्षण ही नहीं हो सका है।
0 बस्तर को पहली बार 1896 में पहली बार राजदरबार ने वन अधिकारी की नियुक्ति की थी।
0 महेन्द्र कर्मा पहले राजनेता रहे है जो निर्दलीय सांसद बनने में सफल रहे थे।
0 बस्तर से अभिमन्यु रथ जरूर राज्यसभा में गये थे पर उन्हें ओडि़सा राज्य से प्रतिनिधित्व मिला था। बस्तर को ओडि़सा में शामिल करने के प्रयास के कारण उन्हें राज्यसभा भेजा गया था।