नौसेना में शामिल हुई INS Karanj’साइलेंट किलर’ सबमरीन, जानिए इसकी खासियत और ताकत

नई दिल्ली : देश की समुद्री ताकत को बढ़ाने में आज का दिन बहुत महत्व रखने वाला है। बुधवार को मुंबई में स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस करंज भारतीय नौसेना में शामिल हो गई। नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और एडमिरल (सेवानिवृत्त) वीएस शेखावत की उपस्थिति में आईएनएस करंज को नौसेना के बेड़े में शामिल कियाय।

आईएनएस करंज के नौसेना में शामिल होने के बाद हमारे देश की समुद्री ताकत कई गुना और बढ़ जाएगी। आईएनएस करंज को साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि ये बिना किसी आवाज के दुश्मन के खेमे में पहुंचकर तबाह करने की क्षमता रखती है।

कैसे पड़ा नाम आईएनएस करंज ?
आईएनएस करंज के नाम के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। आईएनएस करंज के हर अक्षर का एक मतलब है यानी K से किलर इंसटिंक्ट, A से आत्मनिर्भर भारत, R से रेडी, A से एग्रेसिव, N से निम्बल और J से जोश। इससे पहले इसी श्रेणी की दो पनडुब्बियां, आईएनएस कलवरी और आईएनएस खंडेरी को नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा चुका है। अब चौथी पनडुब्बी आईएनएस वेला का समुद्री ट्रायल किया जा रहा है।

आईएनएस करंज में सतह और पानी के अंदर से टॉरपीडो और ट्यूब लॉन्च्ड एंटी-शिप मिसाइल दागने की क्षमता है। ऐसा दावा है कि आईएनएस करंज में सटीक निशाना लगाकर दुश्मन की हालत खराब करने की क्षमता है। इसके साथ ही इस पनडुब्बी में एंटी-सरफेस वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, खुफिया जानकारी जुटाने, माइन लेयिंग और एरिया सर्विलांस जैसे मिशनों को अंजाम देने की क्षमता है।

आईएनएस करंज की लंबाई करीहब 70 मीटर की है और ऊंचाई 12 मीटर है। इस पनडुब्बी का वजन 1600 टन है। ये पनडुब्बी मिसाइल, टॉरपीडो से लैस है। इसके अलावा समुद्र में माइन्स बिछाकर दुश्मन को तबाह करने की ताकत भी रखती है।

दुश्मन की नजरों से रहेगी ओझल?
स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस करंज में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे दुश्मन देशों की नौसेनाओं के लिए इसकी टोह लेना मुश्किल होगा। इन तकनीकों में अत्याधुनिक अकुस्टिक साइलेंसिंग तकनीक, लो रेडिएटेड नॉइज लेवल, हाइड्रो डायनेमिकली ऑपटिमाइज़्ड शेप शामिल है। पनडुब्बी को बनाते हुए पनडुब्बियों का पता लगाने वाले कारणों को ध्यान में रखा गया है जिससे ये पनडुब्बी ज्यादातर पनडुब्बियों की अपेक्षा सुरक्षित हो गई है।

ये एक ऐसी पनडुब्बी है जिसे लंबी दूरी वाले मिशन में ऑक्सीजन लेने के लिए सतह पर आने की जरूरत नहीं है। इस तकनीक को डीआरडीओ के नेवल मैटेरियल्स रिसर्च लैब ने विकसित किया है। पुरानी पनडुब्बी करंज के मुकाबले नई करंज में एआईपी को शामिल किया गया है।

दरअसल, जब पनडुब्बी को बैटरी से चलाते हैं तो बैटरी को रिचार्ज करने के लिए पनडुब्बी को सतह पर आना पड़ता है। क्योंकि डीजल इंजन से बैटरी को चार्ज करते हैं और डीजल इंजन चलाने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। लेकिन एयर इंडिपेंडेंट प्रॉपल्शन एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से पनडुब्बी को बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर आने की जरूरत नहीं पड़ती है।”

 

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