कल शायद फिर सितारों से लड़ा था….. नशे में धुत्त चाँद समंदर में पड़ा था…..

         

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )  

नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल में कब तक पी एम रहेंगे, किस तेवर के साथ काम करेंगे,यह अब नीतीश बाबू और चंद्रबाबू नायडू पर ही निर्भर करेगा,मोदी के तीसरे कार्यकाल में कई ऐसे एजेंडे होंगे ,जिन्हें गठबंधन सर कार में पूरा करना आसान नहीं होगा…? जैसे नीतीश और चंद्रबाबू, वननेशन,वन इलेक्शन,समान नागरिक संहिता,पीएसयू में विनिवेश पर शायद तैयार हों, अग्नि वीर योजना पर भी समीक्षा की बात उठ रही है।मोदी की आक्रामक आर्थिकनीति यां भी दोनों की सहमति के बिना लागू नहीं कर सकते हैं…?एनआरसी और सीएए को लेकरविरोध बढ़ सकता है?नरेंद्र मोदी के पासअटल बिहारी वाला अनुभव नहीं है।वाजपेयी ने दर्जन भर से ज़्यादा पार्टियों को लेकर एनडीए की सरकार चलाई थी,तब भाजपा को अपना हार्डकोर एजेंडा किनारे रख ना पड़ा था।ऐसे में मोदी के पास सिर्फ दो विकल्प होंगे, पहला यह कि अपने एजेंडा किनारे रखें और दूसरा कि साझे एजेंडे पर आगे बढ़ें.? पिछली दो बार से केंद्र में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिल रहा था लेकिन इस बार एनडीए को बहुमत मिला है,मोदी 2 मंत्रिमंडल की स्मृति ईरानी सहित 19 मंत्री चुनाव हार गये हैं ऐसे में मोदी को अब कई एजेंडे किनारे रखने पड़ सकते हैं। भाजपा को 240 सीटों पर जीत मिली है और बहुमत के लिए 272 का आँकड़ा चाहिये, हालांकि एनडीए को 293 सीटें मिली हैं और यह सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है।चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने मिलकर 28 सीटें जीती हैं,एनडीए को बहुमत के आँकड़े तक ले गई हैं। इंडिया गठबंधन बहुमत से 40 सीटें पीछे रह गया है। गुजरात में साल 2002 में दंगे हुए थे तो चंद्र बाबू नायडू ही एनडीए के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने बतौर सीएम नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की मांग की थी।अप्रैल 2002 में टीडीपी ने मोदी के ख़िलाफ़ हिंसा को रोकने,सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को राहत देने,बुरा फेल होने को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था, इस बार आंध्र में टीडीपी की16 सीटें आई हैं और अब नायडू किंगमेकर की भूमिका में दिख रहे हैं तो सोशल मीडिया पर मोदी का साल 2019 में आंध्र प्रदेश में दिया गया भाषण ख़ूब शेयर किया जा रहा है। इस भाषण में नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू को “अपने ससुर के पीठ में छूरा भोंकनेवाला बताया था” उन्होंने चुनावी रैली में कहा था,“वो (चंद्र बाबू नायडू) ख़ुद को मुझसे सीनियर मानते हैं,अच्छी बात है….आप सीनियर हैं, लेकिन आप सीनियर हैं, पार्टी बदलने में, ससुर की पीठ में छूराभोंकने में सीनि यर हैं एक के बाद एक चुना व हारने में…?उसमें तो मैं सीनियर नहीं हूँ.”।अब चंद्र बाबू की बदलौत एनडीए दक्षिण के राज्य में बेहतर कर पाई है।चंद्रबाबू के भाजपा से संबंध एनडीए में रहते हुए बहुत ही कड़वाहट भरे रहे हैं। उसी दौरान ही अमित शाह ने भी एक भाषण दिया था,जिसमें चंद्रबाबू को ‘अवसरवादी’ बताते कहा था कि ‘एनडीए के दरवाज़े हमेशा के लिये बंद हो गये हैं, ‘लेकिन टीडी पी की गठबंधन में वापसी साल 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो गई, इधर नीतीश कुमार ने साल 2013 में एनडीए छोड़ा तो उसकी वजह नरेंद्र मोदी ही थे।तब भाजपा ने मोदी को चुनावी अभियान का प्रमुख बनाया था, तब नीतीश को अंदाज़ा हो गया था कि भाजपा पीएम पद का उम्मीदवार उन्हें ही बना एगी।नीतीश कुमार को यह पसंद नहीं था।नीतीश को लगता था कि वह मोदी के नेतृत्व में एनडीए में रहे तो उनके मुस्लिम वोटर अलग हो जाएंगे, यहाँ तक नीतीश ने 2013 से पहले यानी 20 10 के बिहार विस चुनाव में नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार तक करने नहीं आने दिया था।नीतीश ने ऐसा ही 20 05 के बिहार विस चुनाव में भी किया था।2014 के लोस चुनाव में नीतीश की पार्टी बिहार में अकेले ही मैदान में उतरी थी लेकिन 2 सीटों पर सिमट गई थीसाल 2015 के बिहारविस चुनाव में नीतीश ने आरजेडी के साथ चुनाव लड़ा था और बंपर जीत मिलीथी।2 साल बाद नीतीश फिर एनडीए में आ गए थे और 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी।2020 के विस चुनाव में नीतीश की जेडीयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बनी लेकिन एनडीए की सरकार में वो सीएम बनें। सन 20 22 में नीतीश,आरजेडी के साथ आ गए।लेकिन जन वरी में वो फिर पाला बदल भाजपा के साथ आ गए।नीतीश का गठबंधन बद लना भारत की राजनीति में ऐसी प्रक्रिया बन गई है,जो हैरान नहीं करती लेकिन सस्पेंस बरकरार रहता है कि वो किसे कब किंग की भूमिका में ला दें?अब 12 लोस सीटों के नीतीश को अपने साथ बनाए रखना मोदी के लिए चुनौती होगा, विपक्ष को उम्मीद है कि ये दो दल कभी भी साइड बदल सकते हैं और यही भाजपा के लिए चिंता भी होगी….?

छ्ग से हारने वाले भूपेश
चौथे पूर्व सीएम….   

छग में इस बार के लोक सभा चुनाव में एक और पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी चुनाव हार गये हैँ ,मप्र के दो तथा छग के एक सीएम को बाद के चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा था, मप्र के सीएम रहे श्यामा चरण शुक्ला तो बतौर सी एम ही पवन दीवान से विधानसभा चुनाव हार गये थे,छ्ग बनने के बाद लोक सभा चुनाव में रमेश बैस से भी हार का सामना करना पड़ा था।मप्र सीएम रहेवोरा भी बाद में लोस चुनाव ही डॉ रमनसिह से हार गये थे वहीं छ्गबनने के बाद पहले सीएमअजीत जोगी ने लोस चुनाव में कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल को पराजित किया फिर उसी लोकसभा से उन्हें ही हार का सामना करना पड़ा था।पूर्व सीएम बघेल, राजनाँद गांव लोस प्रत्याशी बने थे, पहले वे रायपुर,दुर्ग से लोस चुनाव हार चुके हैं,अब पूर्व सीएम की हार पर चर्चा करें 1977 में आपातकाल के बाद विस चुनाव हुए तो मप्र में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी,खुद सीएम श्यामाचरण ही राजिम विस से जनता पार्टी के संत पवन दीवान से चुनाव हार गएथे,श्यामा चरण शुक्ल की पहली हार थी, रमेश बैस ने वर्ष 2004 में श्यामा चरण को रायपुर लोकसभा चुनाव में हराया था और वर्ष 2009 में छग के बाद में सीएम बने भूपेश बघेल को हरा दिया थावोरा को 1999 के राजनांदगांव लोकसभा चुनाव में डॉरमन सिंह के हाथों पराजितहोना पड़ा,वोरा पहली,आख़री बार चुनाव हारे थे,खुद विस चुनाव हारने के बाद वोरा को लोस में हराने के बाद डॉ रमन सिंह,अटल मंत्रि मंडल में शामिल हुए,छ्ग बनने के बाद 15 साल तक सीएम रहे,आईपीएस,आई एएस,राज्यसभा, लोकसभा होकर जोगी छग के पहले सीएम बने,उपचुनाव जीत कर विधा यक बने।बाद में महासमुंद लोकसभा से 2004 के चुनाव में विद्या चरण शुक्ल को पराजित किया।जोगी कांग्रेस से तो शुक्ल भाजपा से प्रत्याशी थे। 2014 से पहले ये रिकॉर्ड रहा है कि किसी पार्टी को लगातार दो बार जीत नहीं मिली लेकिन भाजपा के चंदूलाल साहू ने मिथक को तोड़ने में काम याबी पाई।2014 में महास मुंद से दोबारा जीतने वाले भाजपा के चंदूलाल साहू ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं छग के सीएम अजीत जोगी को 1217 वोटों के बेहद कम अंतर से हराया था। विद्या चरण शुक्ल ने सर्वाधिक 6 बार यहां से जीत हासिल की,भाजपा के चंद्रशेखर साहू के नाम जीतने-हारने का भी रिकॉर्ड है।कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल यहीं से राजनैतिक करियर की शुरुआत की थी।बतौर सांसद अपने 9 कार्यकाल में से शुक्ल ने अपने पहले चुनाव समेत 6 चुनाव महासमुंद से ही जीते थे। 2004 में जब राकाँपा होकर भाजपा में शामिल हो गये थे।इसी क्षेत्र में लौट कर आए, कांग्रेस केअजीत जोगी से हार गये, चुनाव में चंदूलाल साहू नामक 11 उम्मीदवार थे,कहा जाता है कि इनको चुनाव लड़ाने के पीछे भी जोगी की भूमिका थी…?

बृजमोहन अग्रवाल,
अपराजेय योद्धा….   

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ भाजपा नेता तथा अविभाजित मप्र, सहित छ्ग मंत्रिमंडल मेंवर्षो तक शामिल रहे बृजमोहन अग्रवाल लगातार 8 बार विधायक बन चुके हैं,जीवन के पहले लोकसभा चुनाव में जीत कर लगातार 9 वीं बार जीतने का रिकार्ड (5,75,285) बना चुके हैं।छात्र राजनीति से होकर मप्र में सन 1990 में पहली बार रायपुर से विधायक बने तथा उसके बाद 1993,98 2003, 2008, 2013, 20 18 और 2023 में लगा तार विधायक बनते आ रहे हैं। पटवा मंत्रिमंडल में नग रीय प्रशासन,पर्यटन राज्य मंत्री बने तो छ्ग में 2003 से रमन की सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल में लगा तार कबीना मंत्री बनते रहे हैं, छ्ग में गृहमंत्री भी रहे।2018 में चुनाव जीत कर विधान पुरुष के रूप में चर्चित मथुरा प्रसाद दुबे के लगातार 7 बार विधायक बनने की बराबरी पहले ही कर चुके हैँ ।

ज्योत्सना बनी सांसद,
सरोज पांडे, पराजित   

कोरबा लोकसभा से कांग्रेस की ज्योत्सना डॉ चरणदास महंत ने भाजपा की राष्ट्रीय नेत्री सरोज पांडे को करीब 43283 मतों से पराजित कर छ्ग में कांग्रेस की लाज बचा ली है। छ्ग की 11 में से केवल यही सीट कॉंग्रेस के खाते में गई है, ज्योत्सना के पति डॉ चरणदास महंत ने भी अटलजी की भतीजी स्व. करुणा शुक्ला को परा जित किया था, महापौर, विधायक,सांसद एक साथ बनने का रिकार्ड बनाने वाली सरोज पांडे का दुर्भाग्य ही है कि वे दूसरी बार लोस चुनाव हारी हैं, इसके पहले दुर्ग लोस से ताम्रध्वज साहू से हार चुकी हैं।ज्योत्सना लगातार दूसरी बार लोस सदस्य बनने में सफल रहीं हैं।

और अब बस…

0इलाहाबाद लोस से कांग्रेस के उज्ज्वल रमण सिंह की 40 साल बाद जीत दर्ज की है।आखिरी बार 1984 में इलाहाबाद सीट से कांग्रेस प्रत्याशी और अभिनेता अमिताभ बच्चन जीते थे।
0भाजपा फैजाबाद लोक सभा से भी हार गईजिसका हिस्सा भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या भी शामिल है।
0देश में सर्वाधिक मतों से जीतने वाले 10 लोगों में बृजमोहन अग्रवाल भी शामिल हैं।

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