खाट पर लिटा कर इलाज के लिए ले जाई जा रही यशोदाबाई की चीख खोल रही थी सिस्टम की पोल ….जानें क्या हुआ ऐसा

सिवनी। गांव की पगडंडी पर खाट में लिटा कर एक जली हुई महिला को इलाज के लिए ले जाया जा रहा है. बिजली के तार गिर जाने की वजह से बुरी तरह जली इस आदिवासी महिला यशोदाबाई सैयाम की चीख बता रही है कि उसे जो दर्द हो रहा है वह शरीर का कष्ट तो है ही सिस्टम के खोखले पन का भी दर्द है….   
जी हां यह दृश्य मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के थाना किंदरई कें के गांव बखारी माल का है जहां शनिवार को अपने खेत में काम कर रही एक महिला बिजली के तारों की चपेट में आ गई जो कई वर्षों से सुधारे ही नहीं गए थे और खंभे से लेकर जमीन तक झूल रहे थे.. बिजली का करंट लगने की वजह से महिला बुरी तरह झुलस गई. ग्रामीणों ने तुरंत 108 एंबुलेंस सेवा से संपर्क किया लेकिन गांव तक सड़क मार्ग ना होने की वजह से एंबुलेंस या अन्य वाहन उपलब्ध नहीं हो सके ऐसे में ग्रामीणों ने खाट को एक बल्ली से बांधा और महिला को उसमें लिटा कर कंधे पर उठाकर लगभग चार किलोमीटर का गांव का रास्ता पार कर मुख्य मार्ग तक पहुंचे ..इस दौरान महिला दर्द से चीखती रही तड़पती रही लेकिन असहाय ग्रामीण कोई मदद नहीं कर सकते थे इसके सिवा कि वे जल्द से जल्द मुख्य मार्ग तक पहुंच जाए चार किलोमीटर का सफर तय करने के बाद उन्हें एक वाहन मिला उस वाहन में लेकर वे सीधे जबलपुर स्थित एक निजी अस्पताल में पहुंचे जहां महिला को तुरंत आईसीयू में दाखिल कर लिया है और उसकी हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है.. महिला यमुनाबाई सैयाम नब्बे प्रतिशत जल गई है चिकित्सक उसका उपचार कर रहे हैं. यमुना बाई के पति चंदूलाल ने बताया कि उनके गांव बखारी माल तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं बल्कि एक पगडंडी है जिससे ग्रामीणों का आवागमन होता है.. गांव के ऊपर से हाईटेंशन लाइन गुजरती है कहने को तो यह लाइन खंभे से बंधी हुई है लेकिन इसके तार जमीन को छूते रहते हैं जिससे अक्सर ग्रामीण इनकी चपेट में आते रहते हैं.. इन ग्रामीणों ने सड़क और बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए अनेकों बार अधिकारियों और नेताओं के सामने गुहार लगाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई अभी तक यह ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.. आदिवासियों के हितों का दावा करने वाली सरकार और उसके नुमाइंदों ने अभी तक इस आदिवासी महिला की कोई सुध नहीं ली है यही वजह है कि ग्रामीण इस उदासीनता से बेहद नाराज हैं. आपको बता दें की नर्मदा पर बरगी बांध बनाने के लिए इन ग्रामीणों को बरगी से साल 1977 में विस्थापित कर इन गांव में बसाया गया था इन्हें मूलभूत सुविधाएं देने का आश्वासन दिया गया था लेकिन दशकों बीत जाने के बाद भी इन गांव में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं.

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