विश्व की प्राचीनतम रंगशाला सीताबेंगरा गुफा छत्तीसगढ़ में….

 {किश्त115}

अरस्तू ने कहा था-“मानव की प्रवृत्ति है कि वह अपनी क्रियाओं को पुनः विविध रूपों में देखना चाहता है” इसीलिए नाटकों व इस तरह की समस्त विधाओं का विकास हुआ और कला नित नए आयाम को प्राप्त होती गयी…27 मार्च को पूरे विश्व में रंगमंच दिवस मनाया जाता है,छत्तीसगढ़ को न जाने क्यों लोग पिछड़ा कहते थे,विश्व की प्राचीन रंगशाला सरगुजा में स्थित है, वहाँ आदिकाल से नाटकों का मंचन होता था ऐसी मान्यता है।हमारे छत्तीसगढ़ में भी ‘विश्व की प्राचीन नाट्य शाला’ है जो सीताबेंगरा (रामगढ़)की पहाड़ियों में अवस्थित है।रामगढ़,सरगुजा जिले में उदयपुर के समीप पड़ता है।मान्यता है कि इस गुफा में वनवास के दौरान सीता का निवास था… सरगुजिया में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है। सीताबेंगरा की यह नाट्य शाला ईसापूर्व 3री शताब्दी की है जो पत्थरों को काट कर बनाई गई है। इसकी दीवारें सीधी, द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊँचाई 6 फीट है।इसका प्रांगण 45 फीट लम्बा व 15 फीट चौड़ा है।गुफा में प्रवेश क़रने हेतु दोनों तरफ सीढियां बनी हुई हैं,दर्शक दीर्घा पत्थरों को काट कर गैलरीनुमा सीढ़ीदार बनाई गई है,50-60 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है।सामने मंच है।नाट्यशाला को प्रति ध्वनि रहित करने के लिए दीवारों पर गवाक्ष हैं। गुफा के प्रवेश द्वार पर मध्य कालीन नागरी में लिखा है……

*”आदिपयन्ति हृदयं सभाव्वगरू कवयो ये रातयं दुले वसन्ति ……. कुद्स्पीतं एव अलगेति “*

पूरा परिदृश्य रोमन रंगभूमि की याद दिलाता है।यह राष्ट्रीय स्तर के मंचीय कार्य क्रमों का प्राचीनतम प्रमाण है।आषाढ़ के प्रथम दिवस पर यहाँ नाटक,अन्य कार्य क्रम होते हैं।रामगढ़ की यह पहाड़ियां इसलिये भीचर्चित हैं क्योंकि माना जाता है कि महान कालिदास ने अपने निर्वासन काल में ‘मेघदूतम’ की रचना यहीं पर की थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *