कौन कहता है, मौत आई तो मर जाऊंगा मैं तो दरिया हूं, समंदर में उतर जाऊंगा…

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )               

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री, डीएम (कलेक्टर) से सीएम (मुख्यमंत्री) बनने वाले संभवत: पहले आईपीएस, आईएएस, दो बार राज्यसभा, 2 बार लोकसभा सदस्य बनने वाले छत्तीसगढ़ के माटीपुत्र अजीत जोगीका 74 साल की उम्र में निधन हो गया जोगीसार (मरवाही) के एक गांव का बच्चा इतना लंबा सफर पूरा करके चला गया… उन्होंने उस बुलंदी को छुआ जिसकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
अजीत जोगी ने अपनी पुस्तक ‘मोर मांदर के थाप’ में एक कविता लिखी है…।

जिंदगी मेरी
कालपक्षी की उड़ान का
सीमित सोपान है,
और पक्षी
पूरे वेग से उड़ रहा है,
कुछ करना है तो
अमा यार,
जल्दी करो
कह गये हैं एक पूर्वज
‘काल तुमसे होड़ है मेरी’

लगता है अजीत जोगी ने यह कविता अपनी जिंदगी पर ही लिखी है सही में उनकी काल से होड़ ही रही… अपने जीवन में 11 बार उन्होंने काल से मुकाबला किया। हर बार होड़ में वे जीत गये। पर इस बार 20 दिन तक मौत से मुकाबला करते करते वे काल के गाल में समा गये।
एक गांव से निकलकर (एमएसीटी) मौलाना आजाद कालेज ऑफ टेक्नालॉजी भोपाल से बीई मेकेनिकल करने के बाद रायपुर इंजीनियरिंग कालेज में लेक्चरार की नौकरी की। धुप्पड़ पेट्रोलपंप के पास एक घर किराये में लिया था। उन्होंने ही एक बार बताया था कि मोटर सायकल-स्कूटर लेने पैसे नहीं थे, सायकल में कालेज पढ़ाने जाना अच्छा नहीं लगता इसलिए पैदल ही कालेज चला जाता था…। बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते ही यूपीएससी में आईपीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की ट्रेनिंग भी ली, एडीशनल एसपी के रुप में तैनाती भी हो गई पर तब तक आईएएस में चयन हो गया। 1970 बैच के आईएएस ने मसूरी में प्रशिक्षण लिया पहली बार असिस्टेंट कलेक्टर जबलपुर के पद पर कार्य किया फिर सिहोरा में एसडीएम तथा कटनी में एडीएम बने और मात्र 4 साल में सीधे सीधी के कलेक्टर बन गये यह क्षेत्र अर्जुन सिंह का प्रभाव क्षेत्र था फिर वे शहडोल के कलेक्टर बने। उसके बाद उनकी बतौर कलेक्टर पदस्थापना छत्तीसगढ़ की अघोषित राजधानी रायपुर में हुई। उस समय श्यामाचरण – विद्याचरण शुक्ल का यह प्रभाव क्षेत्र था शुक्ल बंधुओं और अर्जुन सिंह की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता किसी से छिपी नहीं है उस समय अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर जिले में 20 विधायक होते थे रायपुर जिले में वर्तमान जिले महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी भी शामिल थे। बस उसी समय मेरी अजीत जोगी से कुछ निकटता बढ़ी क्योंकि बतौर छात्रनेता उनसे मिलने का अवसर मिलता था। छात्र-नेताओं को आर्थिक रूप से संपन्न करने जीप टेक्सी चलाने की शुरुवात उन्हीं के कार्यकाल में हुई थी।

विद्याचरण को चुनाव लडऩे की अनुमति दी….

जब अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे तब 8 मंत्री रायपुर जिले के ही थे। खैर एक वाक्या भी याद आ रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल का नाम किस्सा कुर्सी का में आने के कारण उनका नामांकन रद्द करने का आवेदन जिलाधीश अजीत जोगी के पास आया था तब संजय गांधी के निर्वाचन क्षेत्र में भी ऐसा ही आवेदन लगा था। जोगी ने कहा कि यदि न्यायालय से राहत मिल सकती है तो किसी को चुनाव लडऩे से रोकना उचित नहीं है उन्होंने आपत्ती खारिज कर दी और उनसे जूनियर आईएएस अफसर तथा निर्वाचन अधिकारी ने संजय गांधी को भी चुनाव लडऩे का पात्र घोषित कर दिया। समय कैसे बदलता है कालांतर में वही विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ अजीत जोगी महासमुंद से उम्मीदवार बने और उन्हें लगभग सवा लाख मतों से पराजित किया, महासमुंद से विद्याचरण शुक्ल की यह पहली हार थी।

राजीव गांधी से निकटता….

बहरहाल जनता पार्टी की देश में सरकार बनी तो माना विमानतल में बतौर पायलेट राजीव गांधी से भी उनकी निकटता बढ़ी थी, दरअसल उस समय सांसद पुरुषोत्तम लाल कौशिक विमानन एवं उड्डयन मंत्री हो गये थे और उन्हें लेने माना विमानतल बतौर कलेक्टर अजीत जोगी जाया करते थे। तब कभी-कभार बतौर पायलेट राजीव गांधी विमान लेकर रायपुर लेकर आया करते थे। उन्होंने एक बार बताया था कि राजीव गांधी उन्हें हमेशा मिस्टर कलेक्टर कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने एक बार कहा भी था कि माना विमानतल को नया रुप दें और बाद में जोगी ने माना विमानतल को नया रूप दिया। वहां स्थित एक कमरे को सुसज्जित भी किया था ताकि वीआईपी आकर वहां बैठ सके।

पीएमओ में नहीं राजनीति में आना है…

बहरहाल रायपुर कलेक्टर की पारी खेलने के बाद उन्हें म.प्र. के सबसे बड़े शहर इंदौर का कलेक्टर बनाया गया। वह क्षेत्र प्रकाशचंद सेठी का प्रभाव क्षेत्र था, माधवराव सिंधिया का भी उस क्षेत्र में दखल था। करीब साढ़े 4 साल तक वहां कलेक्टरी करने के बाद अर्जुन सिंह की पहल तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निर्देश पर उन्हें राजनीति में आना पड़ा। वे इंदौर ग्रामीण क्षेत्र के दौरे पर थे रात में लौटे तो श्रीमती डॉ. रेणु जोगी ने बताया कि प्रधानमंत्री बात करना चाह रहे हैं। बाद में राजीव गांधी के पीए वी जार्ज से बात हुई तो उन्होंने कहा कि आप कलेक्टर पद से इस्तीफा दें प्रधानमंत्री चाहते हैं आप राजनीति में आएं। 1974 से 1986 यानि 12 साल लगातार कलेक्टर बनकर उन्होंने आजाद भारत में एक रिकार्ड बनाया था। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं तो मैं पीएमओ में आ सकता हूं, नौकरी छोडऩे की बात क्यों? जार्ज ने कहा कि आपको म.प्र. से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करना है। केवल ढाई घंटे में कलेक्टरी छोड़कर वे सीधे राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल कर राजनीति में उतर गये और नामांकन के बाद ही कांग्रेस की सदस्यता ली। उस समय दिग्विजय सिंह उन्हें लेने आये थे दूसरे दिन उन्होंने भोपाल जाकर नामांकन दाखिल किया। 2 बार राज्यसभा सदस्य रहे फिर रायगढ़ लोकसभा से विजयी रहे।

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बने….

फिर शहडोल से लोसचुनाव पराजय के बाद लोगों ने उनकी राजनीतिक पारी खत्म बताना भी शुरू कर दिया था पर नियति को कुछ और मंजूर था। छत्तीसगढ़ नया राज्य बना और विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा जैसे दिग्गजों की दावेदारी के बीच उन्हें पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। उन पर आरोप भी लगा कि वे कलेक्टरों के माध्यम से सरकार चला रहे हैं बहरहाल नई राजधानी का चयन, किसानों की सरकारी धान खरीदी, अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के विकास को प्राथमिकता छग में सड़कों का जाल बिछाने, जोगी डबरी, फसल चक्र परिवर्तन को लेकर वे चर्चा में रहे।

विवादों से रहा नाता…..

विवादों से भी उनका कई बार नाता जुड़ा। जब वे मुख्यमंत्री बने तो विधायक नहीं थे उन्होंने मरवाही के भाजपा विधायक रामदयाल उइके से इस्तीफा दिलाकर भाजपा को झटका दिया फिर बहुमत होते हुए 12 भाजपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराकर भी चर्चा में रहे, म.प्र. के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तब के नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय आदि का लाठीचार्ज में घायल होना भी मुद्दा बना। विद्याचरण वैसे भी नाराज थे। छग के पहले चुनाव में विद्याचरण शुक्ल ने राकांपा के बेनर तले चुनाव लड़ाया, उनका तो केवल एक ही विधायक नोबल वर्मा विजयी रहा पर उनके प्रत्याशियों को मिले मतों से भाजपा की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया। वैसे जूदेव की सीडी कांड, तारू जग्गी हत्याकांड, झीरम घाटी नक्सली हमला आदि भी विवादों में उन्हें निशाना बनाया जाता रहा…l भाजपा की सरकार नहीं बनने देने बलीराम कश्यप के माध्यम से विधायकों को तोडऩे के प्रयास के नाम पर अजीत जोगी का कांग्रेस से निलंबन भी हुआ पर लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि अजीत जोगी की राजनीतिक पारी लगभग समाप्त हो गई है। पर लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल (तब भाजपा) के खिलाफ चुनाव लडऩे के नाम पर निलंबन समाप्त हुआ। महासमुंद लोकसभा चुनाव तो वो जीत गये पर इसी दौरान अप्रैल 2004 में एक सड़क दुर्घटना में घायल होने के कारण व्हील चेयर्स उनकी साथी हो गई फिर भी वे सक्रिय राजनीति में लगे रहे, महासमुंद लोकसभा से जहां उन्होंने विद्याचरण शुक्ल को हराया था वहीं बाद से वर्षों में महासमुंद लोकसभा से ही उन्हें भाजपा के चंदूलाल साहू से 133 मतों से पराजित भी होना पड़ा। वैसे उन्होंने अपनी पत्नी रेणु जोगी और पुत्र अमित को भी विधायक बनवा ही दिया हाल ही में अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के बैठने पर अजीत और अमित निशाने पर आये, कांग्रेस संगठन ने अमित को सदस्यता से निष्कासित कर अजीत जोगी को भी नोटिस दिया था और उसी के बाद जोगी कांग्रेस का जन्म हुआ जिसने पिछले विस चुनाव 5 सीटे तथा गठबंधन में बसपा की 2 सीटे इस तरह 7 सीटें जीती हैं। अजीत जोगी कांग्रेस की सबसे उच्च स्तरीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी के भी सदस्य रहे थे जबकि छग में शुक्ल बंधु कभी भी इस कमेटी में शामिल नहीं रहे।
बहरहाल 74 साल की उम्र में इस प्रशासनिक तथा राजनीतिक योद्धा ने अपने जीवन को विराम दिया। कलेक्टर से राजनेता बनने के उनके सफर को मैंने करीबी से देखा है और उसी आधार पर यह लेख समर्पित कर रहा हूं। यह तो तय है कि अजीत जोगी मतलब सिर्फ अजीत जोगी ही नहीं एक विचारधारा है। आदमी तो चला जाता है पर विचारधारा नहीं मरती है।
‘उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि’

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