सच घटे या बढे तो सच न रहे….. झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं…..

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )           

हिमाचल प्रदेश में जनता ने भाजपा को सत्ता से बेदखल किया है। इसे सिर्फ हर पांच वर्ष में बदलाव करने के तथाकथित हिमाचली रिवाज के आधार पर टरकाया नहीं जा सकता। यहां भाजपा की निर्णायक हार हुई है।पूर्व की भाजपा सरकार के 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के हमीरपुर लोकसभा में भाजपा सभी सीटें हारी हैं और कुल सीटों के मामले में भी यह पहले की तुलना में लगभग आधी रह गयी है। इससे भी ज्यादा बड़ा मसला यह है कि हिमाचल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का गृहप्रदेश है। इस चुनाव की कमान खुद उनके हाथों में थी। सिर्फ उम्मीदवार तय करने तक ही नहीं, नीचे से नीचे तक, पंचायतों और मतदान केंद्रों तक, अभियान और प्रबंधन की माइक्रो प्लानिंग वे खुद कर रहे थे। मोदी-शाह की जोड़ी ने भी इस छोटे से राज की पहाड़ियां चढ़ने–उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस तरह यह भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व की हार है। मगर वह गुजरात से बाहर निकलने को ही तैयार नहीं है। हिमाचल आते भी हैं, तो जीतकर आयी कांग्रेस में फूट-बिखराव-विघटनऔर संताप की ब्रेकिंग न्यूज़…और यहां भी मध्यप्रदेश जैसी खरीद–फरोख्त दोहराने की “थैलीधारी फर्जी चाणक्य” की योग्यता से जल्द ही छींका टूटने की संभावनाओं की अटकलें और पहेलियाँ भी बुझाते रहे हैं।यही रवैया दिल्ली की एमसीडी के नतीजों को लेकर है।इसे एक स्थानीय नगरपालिका चुनाव की तरह बस छू कर भर छोड़ रहे हैं।जबकि ठीक दो साल पहले दिसंबर में हुए हैदराबाद के म्युनिसिपल चुनाव के वक़्त इतना शोर मचाया गया था जैसे किसी राज्य को जीत लिया हो? पहले नंबर पर रहने वाली टीआरएस का जिक्र तक नही था। दिल्ली के चुनावों को लेकर खबर यह नहीं है कि कौन जीता है, असली खबर यह है कि दिल्ली की जनता ने 15 वर्ष से एमसीडी में सत्तासीन भाजपा को हराया है। वह भी तब, जब 24 घंटा 365 दिन चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा ने अपने अभियान से दिल्ली को रौंद कर रख दिया था। अपने ठेठ संविधान विरोधी, आपराधिक और जहरीले बयानों से दिल्ली को विषाक्त बनाने की कोशिश करने वाले असम के मुख्यमत्री सहित भाजपा शासित 7 प्रदेशों के सीएम ,एक डिप्टी सीएम, 17 केंद्रीय मंत्रियों, प्रदेश सरकारों के 40 मंत्रियों और बिहार, झारखण्ड सहित कुछ राज्यों के अपने पूर्व मंत्रियों से दिल्ली को पाट कर रख दिया था। अकेले प्रचार बंद होने वाले दिन ही भाजपा ने 210 आमसभाएँ की थीं। इतने सब के बावजूद दिल्ली की जनता ने मोदी–शाह की भाजपा का टाट उलट दिया और यह अच्छी बात है। गुजरात पर आने से पहले इन दोनों चुनाव परिणामों की वजहों पर सरसरी नज़र डालना ही होगा।हिमाचल के चुनाव अभियान की धुरी भाजपा को हराकर कांग्रेस को जिताने की नहीं थी।इसके बाद भी भाजपा विरोधी मतों का एकजाई ध्रुवीकरण किसी नेता या पार्टी के लिए नहीं, जनता के जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दों को लेकर था। पुरानी पेंशन योजना की बहाली और किसानों की स्थानीय उपज ‘सेब’ की बदहाली सबसे बड़ा मुद्दा था। (सेब उत्पादन वाले क्षेत्र की 17 में से 14 सीटों पर भाजपा हारी है) इसी के साथ सेना में भर्ती खत्म कर देने वाली अग्निवीर योजना के खिलाफ हिमाचली जनता का गुस्सा मुखर था। महंगाई, खासकर रसोई गैस और पेट्रोलियम पदार्थों की आकाश छूती कीमतें आक्रोश का कारण थीं। मतदाताओं का बड़ा हिस्सा इन मांगों पर ठोस कार्यवाही सुनिश्चित कर सकने वाला राज चाहता था। इस तरह यह भाजपा की चुनावी हार भर नहीं है उसकी नीतियों के विरुद्ध जनादेश है….? इस तरह उसकी राजनीतिक पराजय है।हिमाचल की जनता का मिहिमाचल और दिल्ली दोनों ही जगहों पर पाकिस्तान, समान आचार संहिता से लेकर उन्मादी सवाल खड़े किये गए, मगर चले नहीं। गुजरात में तस्वीर इस आम रुझान से अलग रही। यहां नरेंद्र मोदी और उनके अमित शाह, सिर्फ घर–घर जाकर पर्चे ही नहीं बाँट रहे थे,हर सीट पर खुद ही उम्मीदवार भी थे। बड़ी संख्या में वर्तमान विधायकों को बदलने के बाद भी मुख्य नारा “फलाना तो मजबूरी है,मोदी बहुत जरूरी है” का था।

चीन विवाद और नेहरू
पर आरोप का सच….?     

संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और भारत पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि, “भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता, चीन के लिए छोड़ दी…।” उनका यह आरोप जवाहरलाल नेहरू पर है। गृहमंत्री का यह बयान तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्यों की सदस्यता का निर्णय, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सन1945 में ही हुआ था जब यूएनओ का गठन किया गया था, जबकि भारत 1945 में तो, आजाद ही नहीं हो पाया था। आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी। आजादी के पहले ही कैसे स्थायी सदस्यता काऑफर भारत को मिलता….? भारत तो यूएनओ का सदस्यभी नहीं था हालांकि, तकनीकी रूप से भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक माना जा सकता है। क्योंकि 26 जून, 1945 को भारत ने, अन्य भाग लेने वाले देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किया है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर की पुष्टि के बाद 30 अक्टूबर, 1945 को भारत को संयुक्त राष्ट्र में शामिल किया गया, लेकिन वह आजाद और संप्रभु भारत नहीं था, वह ब्रिटिश के आधीन एक उपनिवेश था। 1972 में यूएनओ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और चीन द्वारा किए गए 1962 से लेकर अब तक के हमले/झड़पों का कोई अंतर्संबंध नहीं है। यदि गृह मंत्री को लगता है कि ऐसा कोई गंभीर प्रस्ताव, यूएनओ की तरफ से, वास्तव में आया था और नेहरू ने मना कर दिया था तो वह दस्तावेजों को अब भी रखा होगा। उन्हें चाहिए कि संसद में उन दस्तावेजों को रखें और बताएं कि इस तारीख को यह औपचारिक प्रस्ताव आया था और जवाहरलाल नेहरू ने, उसे ठुकरा कर स्थाई सदस्यता लेने से मना कर दिया था। वास्तविकता यह है कि, रिपब्लिक ऑफ चाइना, 1945 में संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा है।

छत्तीसगढ़: तोर महतारी
मोर महतारी…..?     

“बात है अभिमान की छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान की “।छ्ग में भूपेश सरकार द्वारा लगातार छ्ग की परम्परा, संस्कृति, विरासत को आगे बढाने एक अभियान चलाया जा रहा है। भाजपा के सीएम भूपेश ने राम की माता कौसल्या के चंदखुरी स्थित मंदिर के जीर्णोद्धार, राम वनपथ गमन योजना के समय कहा था कि हमारे राम भान्जा राम है, भाजपा के चंदा वाले राम है? अब अपने अपने राम के बाद “तोर महतारी, मोर महतारी”को लेकर भी चर्चा तेज हो गईं है। छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार के 4साल पूरा करने पर सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट किया कि….जनता – हमारे पास न्याय योजना हैं, मुफ़्त इलाज है, स्वामी आत्मानंद स्कूल हैं, धन्वन्तरि मेडिकल स्टोर हैं, हॉफ बिजली बिल हैं, सबसे कम बेरोजगारी दर है और बहुत कुछ है,तुम्हारे पास क्या है?भाजपा – मेरे पास ईडी है। इस ट्वीट के बाद पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने जवाब दिया कि..हमारे पास छत्तीसगढ़ महतारी है…।भूपेश ने जवाब में कहा कि उसके पास गाड़ी है, बंगला है पहले क्या था? जहाँ तक छत्तीसगढ़ महतारी का सवाल है तो उसकी सेवा उन्होंने नहीं की, महतारी की सेवा हमने की है,उसका निर्माण हमने की है, छ्ग महतारी हमारी है,भाजपा के प्रभारी ने तो छ्त्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति का ही विरोध किया था। डॉ रमन ने अपने कार्यकाल में छत्तीसगढ़ियों का शोषण किया,आदिवासियों को जेल में ठूंस दिया था। खैर जैसे-जैसे विस चुनाव निकट आता जा रहा है इस तरह के कई मसले उभारने के प्रयास तो होंगे ही यह तय है।

छग में आरक्षण विवाद,
राजभवन का विकल्प..

छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विवाद गहराता ही जा रहा है।विस में सर्व सम्मति से 76%आरक्षण संशोधन विधेयक पारितकर राजभवन भेजा है। पर वहाँ से 10बिंदुओं पर राजभवन से सवाल पूछ लिया है। दरअसल प्रावधान है कि या तो राजभवन अपनीआपत्ति के साथ विधेयक वापस कर सकता है,पर राजभवन ने विधेयक वापस नहीं भेजा है,दूसरा विकल्प होता है कि राजभवन हस्ताक्षर करता है, तीसरा विकल्प होता है कि राजभवन विधेयक को राष्ट्रपति को सीधे भेज सकता है,ताकि वे सुप्रीमकोर्ट से राय ले सकें…। वैसे राजभवन में विधेयक लंबित भी रखा जा सकता है?इस विधेयक के अनिर्णय की स्थिति में बेरोजगारों को सरकारी नौकरी सहित छात्र छात्राओं को प्रवेश आदि में काफ़ी नुकसान होगा क्योंकि अभी छ्ग में आरक्षण शून्य ही है?

महिला, पुरुष जेल के
सेल में हैं ईडी के आरोपी    

ईडी के बाद न्यायालय के आदेश पर सेन्ट्रल जेल रायपुर में बंद सीएम सचिवालय की डिप्टी सेक्रेटरी सौम्या चौरसिया महिला जेल के सेल में हैं,तो आईएएस समीर विश्नोई, सूर्यकान्त तिवारी आदि पुरुष जेल के सेल में हैं सभी सुरक्षा नियमों के तहत अलग-अलग सेल में हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनसे मिलना भी कुछ बड़े लोग चाहते हैं पर जेल मेन्युअल में कुछ दिक्क़तों के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।इधर यह भी चर्चा तेज है कि आईएएस अफसर ईडी की तरफ से गवाह भी बनने तैयार हो गए हैं क्योंकि जो 121पेज का चालान स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया है उसमे आईएएस का कहीं कोई उल्लेख भी नहीं है…?

और अब बस….

0मप्र में विदेश से चीते मंगवाए गये हैं तो छ्ग में मप्र से बाघ मगवाने की योजना है।
0छग सरकार ने पत्रकार रूचिर गर्ग, विनोद वर्मा को समायोजित किया तो अख़बारों में संवाददाता रहे गिरीश देवांगन, राजेश तिवारी को भी महत्वपूर्ण पद दिया वहीं मिडिया कर्मी मनोज त्रिवेदी, धनवेन्द्र जायसवाल को सूचना आयोग में आयुक्त बनाया है।
0ईडी जाँच के बाद आईएएस अफसरों के सरकारी गवाह बनने की चर्चा तेज है?
0कुछ कलेक्टर /एसपी की तबादला सूची कभी भी आ सकती है?

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