विशाल यादव माँ अहिल्या की नगरी है ही ऐसी कि यहां रहने वाले हर शख्स को माँ नर्मदा के घूंट घूंट का कर्ज उतारने के लिए बल देती रहती है। जब जब इंदौर में किसी तरह की परेशानी आई हर तरफ से आवाज उठी और एक मिसाल बन गई । शांति के इस टापू ने राजनीति और भाई चारे के बिगड़े दौर को भी बाखूबी देखा। हालात बिगड़े लेकिन इंदौर की फिजा को यहां के लोगों ने नहीं बिगड़ने दिया। 1984 का वह मंजर भी मेरी आंखों में कैद है जब तो मै बचपन के अधकचरे होंश में था। लोगों को भागते हुए भी देखा और आपसी समझ से एक होते भी देखा। बात अब कांग्रेस की करते हैं जो इस गंभीर समय में इंदौर को बचाने में लगी है। कोरोना जैसी महामारी जो इंदौर के चौथे- पांचवे व्यक्ति को घात लगाए बैठी है। कांग्रेस में हमेशा ऐसे समय एकता दिखाई है जब शहर पर संकट छाया है। आज विधायक संजय शुक्ला जैसे नेता जिस तरह से आगे आये और इस गंभीर बीमारी से बचाव के लिए बीजेपी सरकार को आईना दिखा रहे हैं। ये शुक्ला का ही साहस है कि उन्होंने व्यवस्था को चुनौती देते हुए आत्मदाह जैसा संकल्प कर डाला। कुछ विरोधी इसे राजनीतिक कारण भी मान लें तो मुझे गुरेज नहीं। पर अगर इस तरह की राजनीति को विरोधी दाग माने तो ये दाग अच्छे हैं… । राजनीति में दम भरना और दम दिखाना दो अलग अलग बाते हैं। मैंने इन दोनों ही स्तिथि को बहुत करीब से बीते 30 सालों में पूरे होंशोहवास में देखा है। संजय शुक्ला को तो मैं उस दौर से जनता हूं जब वो एनएसयूआई की इंदौर में कमान संभाले हुए थे। मैं तो उन दिनों स्कूल की सीढ़ियों पर ही था। उन दिनों अभय दुबे, देवेंद्र यादव , जीतू पटवारी, जीतू दिवान जैसे नेता स्कूलों तक संगठन की छाप हुआ करते थे। इसी बीच संजय शुक्ला की एंट्री हुई । एक नामी परिवार से तालुख रखने वाले संजय शुक्ला ने स्कूल और कॉलेज के छात्रों को जोड़ने के लिए मैराथन दौड़ का आयोजन किया था। इस आयोजन के माध्यम से वो हर किसी को साथ लाना चाहते थे। शुक्ला आज भी वैसे ही हैं। सबको साथ लेकर कोरोना जैसी गंभीर बीमारी से लोगों को बचाने की कोशिश में यहां तक आ गए। इसमें कांग्रेस के उन नेताओं की भी भूमिका है जिन्होंने विधायक शुक्ला के साथ कदमताल करने में कोई गुरेज नहीं किया। गुटीय राजनीति से ऊपर उठाकर जीतू पटवारी, राजेश चौकसे , विनय बाकलीवाल , विशाल पटेल , अनिल यादव , संजय बाकलीवाल जैसे नेता शुक्ला के पीछे हैं। कॉग्रेस की नई रोशनी बने विधायक संजय शुक्ला इंदौर बचाव की इस लड़ाई में अगर बीजेपी से साथ मांग रहे हैं तो क्या गलत है। इंदौर रहेगा तो राजनीति होती रहेगी फिर सब देखा जाएगा । “ सांस चलती रही तो संमा भी बंधेगा.. मिलके गले फिर हर शिकवे गिले भी दूर करेंगे “