शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
विपक्ष के विरोध के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी ने नये संसद भवन का लोकार्पण कर ही दिया। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के साथ ही राज्यसभा के सभापति तथा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को आमंत्रित ही नहीं किया…? अरे भाजपा के पितृ पुरुष तथा 2 लोकसभा सदस्यों से पूर्ण बहुमत की देश में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को भी आमंत्रित नहीं किया… वैसे अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के भूमि पूजन मेंbभी आडवाणी को आमंत्रित नहीं किया था जबकि रामजन्म भूमि रथयात्रा में मोदी,
आडवाणी के सारथी थे।खैर आडवाणी को उम्रदराज होने पर लोस टिकट से वंचित कर भाजपा मार्गदर्शन मंडल में भेजकर एक तरह से राजनीति से जबरिया सन्यास दिलवा ही दिया वहीं, 20मई 2014 को पहली बार संसद पहुंचे मोदी ने सीढ़ियों पर माथा टेक कर जिस ऐतिहासिक संसद भवन में प्रवेश किया, उसे ही 9 साल बाद नया संसद भवन बनाकर गुमनामी के अँधेरे में तनहा छोड़ दिया,वैसे इसे यथास्थिति छोड़ दिया यह भी कम नहीं है।मोदी ने संसद की सीढ़ियों पर माथा टेका…संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में एक सांसद यानी नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढ़ियों पर माथा टेका। मोदी भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक में भाग लेने गुजरात भवन से संसद भवन पहुंचे गेट नंबर चार पर मीडिया के भारी जमावड़े के बीच मोदी अपनी स्कार्पियो गाड़ी से उतरे और हरे कालीन से जड़ी सीढ़ियों पर झुके एवं दोनों हाथ जोड़कर नीचे माथा टेक दिया। संसद भवन में प्रवेश करने से पहले उसके मुख्य द्वार पर माथा टेककर प्रणाम करके अपनी इस भावना का इजहार किया था।कितनी दिलचस्प बात है कि वर्ष 2003 में गुजरात दंगों के बाद ‘राजधर्म’ नहीं निभा पाने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,नरेंद्र मोदी से इस्तीफा लेने पर अड़े थे। उस वक्त उनके सबसे बड़ी ढाल बने लालकृष्ण आडवाणी ने उनसे कहा था..ऐसा मत कीजिए, बवाल हो जाएगा।10 साल बाद 2013 में वही लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी और आरएसएस से मिन्नतें कर रहे थे कि वो अभी मोदी को पीएम कैंडिडेट नहीं बनवाएं।तब आडवाणी को जवाब मिला था..अब और देरी की तो बवाल हो जाएगा..?अविभाजित पाकिस्तान के कराची शहर में 1927 में जन्मे आडवाणी कम उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए और बाद में जनसंघ के लिए काम किया जहां उन्होंने अपनी संगठनात्मक क्षमताओं के साथ अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की. वह 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में रहे और कई दशकों तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ पार्टी का मुख्य चेहरा बने रहे. वाजपेयी सरकार में आडवाणी देश के गृह मंत्री रहे और बाद में उन्हें उपप्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।एक प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में भाजपा को स्थापित करने के लिए उन्होंने 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर रथ यात्रा की।इस घटना को राष्ट्रीय राजनीति में एक युगांतकारी मोड़ के रूप में देखा जाता है जिसके बाद से भाजपा लगातार मजबूत होती चली गई।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति
का अपमान……?
देश में पहले राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति बनते थे तो उनके अनुभवों और योग्यता की चर्चा होती थी पर भाजपा ने तो इन सर्वोच्च पदों को जाति,वर्ग से जोड़ना शुरू कर दिया है। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाने पर भाजपा ने जमकर प्रचार किया कि वे अनुसूचित जाति वर्ग के हैं, ज़ब उनके कार्यकाल में नये संसद भवन का भूमिपूजन किया गया तो उन्हें ही आमंत्रित ही नहीं किया गया,उनके बाद द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया गया तो भाजपा ने जमकर प्रचार किया कि भारत में पहली बार एक आदिवासी वर्ग की महिला को राष्ट्रपति भाजपा बना रही है। खैर राष्ट्रपति मुर्मू को भी नई संसद के लोकार्पण पर आमंत्रित ही नहीं किया गया… अब यदि विपक्ष इसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति सहित आदिवासी का अपमान ठहरा रहा है तो गलत क्या क़ह रहा है?
छ्ग विस भवन में नेता
प्रतिपक्ष का भी नाम….
संसद के नये भवन के लोकार्पण में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करने पर भाजपा छ्ग के नये विस भवन में तत्कालीन राज्यपाल अनसुईया उइके को नहीं बुलाने का मामला उठा रही है,पर इस कार्यक्रम में सोनिया, राहुल गाँधी के साथ सीएम भूपेश बघेल, विस अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत के साथ, विस उपाध्यक्ष मनोज मंडावी और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को भी आमंत्रित किया था,पर नये संसद भवन की लोकार्पण पट्टीका में केवल पीएम मोदी और लोस अध्यक्ष ओमप्रकाश बिड़ला का ही नाम है..?
भाजपा की पिच पर
भूपेश की बल्लेबाजी ….?
छ्ग में चंदखुरी में माता कौशल्या के मंदिर का जीर्णोद्धार,राम वनपथ गमन मार्ग को विकसित करने की योजना, फिर कुछ स्थानों पर श्रीराम की भव्य मूर्ति लगाना, गाँवो की राम मंडलियोँ कोप्रोत्साहित करने के बाद अब रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन करके निश्चित ही छ्ग के सीएम भूपेश बघेल ने भाजपा की पिच पर उन्हें मात देने की भरपूर तैयारी शुरू कर दी है,अब श्रीराम के नाम पर 2सांसद से देश में स्पष्ट बहुमत की सरकार तथा कुछ राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने वाले छग में ‘कुछ’ करने की स्थिति में नहीं हैं,श्रीराम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा कांग्रेस के श्रीराम के आयोजनों का न तो विरोध कर पा रही है न खुलकर समर्थन….?कुलमिलाकर भाजपा की पिच पर अच्छी बल्लेबाजी करने में फिलहाल तो भूपेश बघेल कामयाब होते दिख रहे हैं।
टुटेजा चूके, अलोक की
हुई सेवावृद्धि….?
भारतीय प्रशासनिक सेवा के चर्चित अफसर अनिल टुटेजा 31 मई को रिटायर हो गए, जाँच एजेंसियों की जाँच के चलते उनकी सेवावृद्धि नहीं हो सकी।टुटेजा मूल रूप से बिलासपुर के निवासी हैं।मप्र पीएससी से चयन के बाद डिप्टी कलेक्टर के रूप में कई जिलों में अपनी सेवा दी।टुटेजा को आईएएस अवॉर्ड होने के बाद नागरिक आपूर्ति निगम का एमडी बनाया गया, इस दौरान यहां एक शिकायत के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी की छापेमारी ने राजनीतिक रंग ले लिया।उन पर संस्थान को करोड़ों का नुकसान पहुंचाने का आरोप लगे।तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला के साथ आरोपी बना चालान पेश कर दिया गया,इसके बाद से अब तक वो कानूनी झमेले में पड़े रहे…..?छत्तीसगढ़ में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), इनकम टैक्स और पूर्ववर्ती शासन में ईओडब्ल्यू की जांच के घेरे में रहे चर्चित आईएएस अनिल टुटेजा 31 मई को रिटायर हो गए। नान घोटाले में नाम आने के कारण प्रमोशन से वंचित रहे…ऐसे समय में जब उनके बैचमैट सेक्रेटरी हो गए उन्हें जॉइंट सेक्रेटरी पद से रिटायर होना पड़ा।उनके खिलाफ आरोप और जाँच के चलते ही उनकी सेवावृद्धि नहीं हो सकी…?वहीं डॉ आलोक शुक्ला को 3साल के बाद एक साल की और सेवा वृद्धि मिल गईं है।
और अब बस
0 विस चुनाव 2003, 2008, 2013,2018 में जिसने बस्तर जीता उसकी ही सरकार बनी इसलिये कॉंग्रेस,भाजपा बस्तर में जोर लगा रही है?
0छग शराब घोटाले के आरोपियों ने ईडी की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद वापस ले ली है।
0बस्तर आईजी पी.सुन्दरराज और सरगुजा के कार्यवाहक आईजी रामगोपाल गर्ग का तबादला भी तय है।