शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
करीब एक दशक बाद यह साफ हो गया है कि बीजापुर के एडसमेटा में हुई कथित मुठभेड़ फर्जी थी। सुरक्षाबलों ने बीज पंडुम का त्योहार मना रहे आदिवासियों पर घबराहट में गोली चलाई थी। इसमें 8 ग्रामीणों की मौत हुई थी। यह सच एडसमेटा विशेष न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में सामने आया है।क्या इस मामले को दबाने वाले अफसरों पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए…? जबकि तब की रमन सरकार ने मृतकों को मुआवजा देने की घोषणा की थी पर अफसरों को बचा लिया गया था…!
दक्षिण बस्तर के एडसमेटा गांव के पास 17-18 मई 2013 की रात को सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच गोलीबारी में तीन बच्चों और सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के एक जवान समेत आठ ग्रामीणों की जान चली गई थी। ग्रामीणों का कहना था कि वे सभी देवगुडी में बीज त्यौहार मनाने के लिए इकठ्ठा हुए थे इसी दौरान पुलिस मौके पर पहुंची और ग्रामीणों को दौड़ा दौड़ा कर मारा।कर्मा पाडू ,कर्मा गुड्डू ,कर्मा जोगा ,कर्मा बदरू ,कर्मा शम्भू ,कर्मा मासा ,पूनम लाकु ,पूनम सोलू की मौत हो गई। इसमें तीन बेहद कम उम्र के बच्चे थे इसकेअलावा ,छोटू ,कर्मा छन्नू , पूनम शम्भु और करा मायलु घायल हो गए। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले से ठीक 8 दिन पहले घटी इस घटना को मानवाधिकार उल्लंघन की गंभीर घटनाओं में गिना जाता हैं।मृतकों के परिवार को दिया गया मुआवाजा
घटना के बाद राज्य सरकार ने ग्रामीणों के लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद घटना की जांच के लिए न्यायमूर्ति वी.के. अग्रवाल की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया था, लेकिन नतीजा सिफर रहा ।इस घटना के बाद तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच पांच लाख का मुआवजा देने का भी ऐलान किया था ।जिस पर तब पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा था कि अगर सरकार मृतकों के परिजनों को मुआवजा दे रही है तो उन्हें माओवादी कैसे माना जा सकता है ।
उप्र में कांग्रेस के 2 विधायक बनाम भाजपा के देश में 2 सांसद…
मप्र के एक बडबोले नेता तथा गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने उप्र विस चुनाव में कांग्रेस को 2सीट मिलने पर कहा कि प्रियंका गाँधी उप्र में कांग्रेस में जान फूँकने आई थी और कांग्रेस को केवल 2विस सीटों से संतोष करना पड़ा….उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए है कि 1984 के लोस चुनाव में पूरे भारत में भाजपा के 2सांसद ही चुने गये थे.. भाजपा के पितृ पुरुष अटलजी भी चुनाव हार गये थे।1984में ( नरोत्तम मिश्र का जन्मदिन 16अप्रेल 1960) ..?वोट डालने का अधिकार तो पा ही चुके थे। वैसे यह मोदी मैजिक ही है जिसके जरिए भाजपा 2 से 303 सीटों तक पहुंच गई।पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार पूर्ण बहुमत से दोबारा सत्ता में आने का यह पहला मौका है।भाजपा को यहां तक पहुंचने में कई उतार -चढ़ाव देखने पड़े।1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से देश में सहानुभूति की लहर चल रही थी तो उसमें बीजेपी के दो नेता संसद पहुंच पाए थे।1984 में बीजेपी को मिली 2 सीटें ये थीं हनामकोड़ा (आंध्रप्रदेश) 1984 के आम चुनाव में देशभर में इंदिरा सहानूभूति लहर के बावजूद यहां बीजेपी के चंदूपाटिया रेड्डी ने जीत का परचम लहराया था।
1984 के आम चुनाव में बीजेपी के चंदू पाटिया ने कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को पटखनी दी थी।1984 की इंदिरा सहानूभूति लहर के बावजूद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीवी नरसिम्हा राव को 209564 जबकि पाटिया को 263762 वोट मिले थे और नरसिम्हाराव चुनाव हार गए थे.हालांकि इसके सात साल बाद 1991 में हुए आम चुनावों में नरसिम्हाराव नांदियाल सीट से रिकॉर्ड मतों से जीते थे.1984 के बाद हुए चुनावों में भाजपा कभी भी इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई।भारत यूं ही नहीं लोकतंत्र का सिरमौर है. यहां जनता कब किसको दिल्ली की गद्दी सौंप दे तो कब उतार दे कुछ नहीं कहा जा सकता….अपने वोट के हथियार से हिन्दुस्तान की जनता जब चाहे जिसकी सरकार बना दे या बदल दे. पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता के शीर्ष पर सबसे ज्यादा सीटें लेकर बैठने वाली भाजपा को यहां तक आने में 30 साल लग गए.
एसपी शहीद, आईजी की भूमिका पर सवाल?
मदनवाड़ा नक्सली वारदात में राजनांदगांव के तत्कालीन एसपी विनोद चौबे सहित 29लोग शहीद हो गये वहीं बाद में तत्कालीन आई जी मुकेश गुप्ता को सरकार ने गेलेट्री अवार्ड भी दिया ..? अब जबकि न्यायिक आयोग ने आईजी की भूमिका पर सवाल उठाए हैँ तो क्या मुकेश के खिलाफ कार्यवाही होंगी…. वैसे एफआईआर करने तथा पुरस्कार वापस लेने की कार्यवाही संभव है।
छत्तीसगढ़ के चर्चित मदनवाड़ा कांड में न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रिपोर्ट पर सरकार की तरफ से की गई कार्यवाही से सदन को अवगत कराया। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक आईपीएस मुकेश गुप्ता घटना के दौरान अगर बुद्धिमता दिखाई होती तो शायद नतीजा कुछ और ही होता। इतना ही नहीं आयोग ने जांच रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया है कि आईपीएस तथा तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए एसपी विनोद चौबे को आगे भेज दिया और खुद अपनी बुलेटप्रूफ कार में बैठे रहे । उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया जैसा कि उसके पुरस्कार के उद्धरण में लिखा गया है।
रिपोर्ट में तत्कालीन एडीजी नक्सल ऑपरेशन गिरधारी नायक के बयान का भी ज़िक्र है इस बयान में गिरधारी नायक ने कहा है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने युद्ध क्षेत्र के नियमों का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से 29पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर शहादत हो गई. गिरधारी नायक ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपने जाँच प्रतिवेदन में आईजी मुकेश गुप्ता को आउट आफ़ टर्न प्रमोशन की अनुशंसा नहीं की थी. जबकि उन्होंने सलाह दी थी कि जब एक भी नक्सली नहीं मारा गया, एक भी शस्त्र ढूंढा नहीं गया ऐसे में पुलिस कर्मियों को पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए…..?
फ़िल्म ‘ द कश्मीर फाइल्स’और सियासत….
बालीवुड फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बहाने एक बार फिर कश्मीर पंडितों का मामला सुर्खियों में है। अब यह मामला सियासी तूल पकड़ता जा रहा है। फिल्म में अनुच्छेद 370 और कांग्रेस का जिक्र होने से इसका सियासी फलक बड़ा हो गया है। इस फिल्म को लेकर कांग्रेस और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने तो क़ह दिया कि कई कश्मीरियों को अपना घर छोड़ना पड़ा, इसके लिए जवाहर लाल नेहरू की नीतियां ज़िम्मेदार हैं. दूसरी ओर कांग्रेस का पलटवार करते हुए कहना है कि इसके लिये भाजपा ज़िम्मेदार है. कांग्रेस का कहना है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र सरकार, जिसे भाजपा समर्थन कर रही थी, दिसंबर 1989 में आई और कश्मीरी पंडितों का पलायन जनवरी 1990 से शुरू हो गया. तत्कालीन गवर्नर जगमोहन ने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. केरल कांग्रेस के हैंडल से ट्वीट में ये भी कहा गया कि पलायन के दौरान भाजपा अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में हिंदू-मुस्लिम विभाजन की योजना बना रही थी. बहरहाल इस फ़िल्म को भाजपा शासित राज्यों में “कर मुक्त ” करना भी मुद्दा बन रहा है। अब यह केवल फ़िल्म ही नहीं सियासत का कारण बन चुका है।छ्ग के सीएम भूपेश बघेल ने फ़िल्म देखने के बाद कहा कि इसमें आधा सच ही दिखाया गया है। पिछले 7सालों मे मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए आखिर किया क्या है…?
बाहरी /स्थानीय का
नया तोड़…..
1972 के रायपुर शहर विधानसभा के चुनाव में सुधीर मुकर्जी निर्दलीय (कांग्रेस समर्थित )से जनसंघ के मनसुख लाल चंदेल पराजित हुए थे। हालांकि चंदेल उस समय काफ़ी प्रसिद्ध वकील थे पर उस समय कांग्रेस का एक नारा काफ़ी चर्चा में था….. ” दिया के बाती टेडगा… मनसुख लाल लेडगा ” ….खैर कृषि विवि में छत्तीसगढ़िया को कुलपति बनाने का दबाव सरकार ने राजभवन पर बनाया और स्व. मनसुख लाल चंदेल के बेटे गिरीश चंदेल देश के बड़े इंदिरा गांधी कृषि विवि के कुलपति बनने में कामयाब रहे । अगर उन्हें एक्सीडेंटल कुलपति कहा जाए, तो कोई गलत नहीं होगा ।ऐसा नहीं कि चंदेल की योग्यता में कोई कमी है । बल्कि वे इस पद के लिए पूरी काबिलियत रखते हैं । दर असल, चंदेल का परिवार आरएसएस से जुड़ा रहा है । मगर भाजपा ने प्रदेश में सत्ता में रहते इस परिवार की कभी खोज खबर नहीं ली और अब प्रदेश में स्थानीय वाद की मुहिम चली, तो कई नाम सामने आए थे।सरकार की अनुशंसा राज्यपाल को पसंद नहीं थी ऐसे में स्थानीय गिरीश चंदेल (सोनी) को मौका मिल गया । इसके लिए राज्यपाल और सीएम, दोनों को ही धन्यवाद देना चाहिए कि विवादों के बावजूद चंदेल के नाम पर एकमत हो गए।वैसे पत्रकारिता विवि का बलदेव शर्मा को कुलपति बनाया गया था तब भी दल विशेष तथा बाहरी होने की चर्चा हुई थी।
और अब बस…..
0सीसीएफ 15वीं वाहिनी के सीईओ सुजीत कुमार तथा उनके मातहतों का मार्गदर्शन और मेहनत रंग लाई है। नक्सलगढ़ के कुछ बच्चे अब नवोदय के साथ सैनिक स्कूल में पढ़ेंगे।
0तालमेटला आगजनी और स्वामी अग्निवेश पर हमला मामले में न्यायिक आयोग ने तत्कालीन आईपीएस कल्लूरी को क्लीन चिट दे दी है।
0भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भाजपा के बड़े नेताओं के बिना बस्तर का दौरा करना चर्चा में है।
0खैरागढ़ विस उप चुनाव के बाद कुछ कलेक्टर, एसपी के बदलने की संभावना है।