शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
आईडीएफसी नामक एक इंस्टिट्यूट ने 2015 में एक रिपोर्ट दी थी,यदि एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते हैं तो 77%लोग एक ही पार्टी को वोट देते है,यदि दोनों चुनावों में अंतर 6माहया अधिक होता है तो यह अंतर 61% तक गिर जाता है। भाजपा का मानना है कि हो सकता है कि 2019से 2023 तक लोकसभा सहित 40 विधानसभा चुनाव हुए हैँ और भाजपा को वह लाभ नहीं मिल पाया जो एक साथ चुनाव कराने में मिलता..? पर उन्हें यह भी सोचना चाहिये कि 2014 में लोस के साथ हीओड़िशा के विस चुनाव भी हुए थे पर ओड़िशा में बीजू जनता दल को भाजपा से साढ़े 7%अधिक वोट मिले थे?
खैर लोकतंत्र के लिए वन नेशन,वन इलेक्शन बहुत सराहनीय कदम होगा,पीएम मोदी ने कुछ साल पहले अपनी इच्छा जाहिर की थी कि ग्राम पंचायत से लेकर, विधानसभा और आम चुनाव एक साथ हों…18 से 22 सितंबर को संसद के विशेष सत्र का मुद्दा वन नेशन,वन इलेक्शन रहेगा,ऐसा लगता तो नहीं है।अभी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी गठन हुआ है। वैसे इस पर एक कमीशन भी बन सकता था पर कमीशन बनने पर पूर्व राष्ट्रपति शामिल नहीं हो सकते थे।इधर कमेटी गठन के बाद भी छह-आठ महीने से लेकर एक साल का वक्त लगेगा। कमेटी का कार्यकाल क्या होगा, उसको कब तक रिपोर्ट देनी है।बहुत सारी चीजें तय होनी है।चुनाव आयोग की भी इसमें बड़ी भूमिका रहेगी। ऐसे में अभी सब कुछ तुरंत नहीं होने जा रहा है।एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे।इनमें संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83,राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधितअनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित अनुच्छेद 356 शामिल हैं। इसके साथ ही संविधान की संघीय विशेषता को ध्यान में रखते हुए सभी दलों की सहमति जरूरी होगी। वहीं यह भी अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त की जाए।इसके लिये 14 राज्यों की मंज़ूरी की ज़रूरत होगी और ये मुश्किल नहीं है,भाजपा या उसके सहयोगी दलों की 12 राज्यों में सरकारें हैं। दो तीन राज्य तो आने को तैयार हैं।ओडिशा और आंध्र प्रदेश के लिए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वहां लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव होते हैं। सबसे बड़ी समस्या राज्यसभा में हो सकती है। कांग्रेस इसका समर्थन नहीं करती है तो राज्यसभा में इसको पास कराना मुश्किल होगा।लेकिन कांग्रेस के लिए भी इस विधेयक को गिराकर चुनाव में जाना मुश्किल होगा।अगर इतनी शर्तें सरकार पूरी भी कर ले जाती है तो एक सवाल फिर भी रहेगा कि क्या सभी राज्यों की विधानसभाओं को भंग किया जाएगा….?वैसे “पहले भी इस बारे में दो प्रस्ताव थे..(1) इसे दो चरण में किया जाए,लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले और बाद के विधानसभा चुनावों को जोड़ दिया जाए।(2)भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारें विधानसभा खुद भंग कर दें और बाकी राज्यों की सरकारें भंग कर दी जाएं….लेकिन इसमें फिर क़ानूनी उलझाव है।
इंडिया……भारत को
लेकर भी राजनीति…
नामकरण की सियासत भारतीय राजनीति का लंबे समय से हिस्सा रही है। इतिहास,राजनीति और पुरातत्व,इतिहास की दुनिया के विवादित, लोकप्रिय और अक्सर किसी सभ्यता विशेष को इंगित करने वाले नाम राजनीतिक विवादों का कारण बने हैं। बात चाहे फिर इलाहाबाद के प्रयागराज हो जाने की हो या फिरऔरंगाबाद के छत्रपति संभाजीनगर हो जाने की या फिर आज भारत के संविधान में इंडिया शब्द को हटा दिए जाने की….? दरअसल, किसी भी राष्ट्र का नाम उस देश की अस्मिता और ऐतिहासिक धरोहरों के गौरव को अप्रत्यक्ष रूप से संजोता है। वहां के नागरिकों को उसके इतिहास,संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की याद दिलाता है। जाहिर है राष्ट्रों के नाम वहां के जनमानस की धारा में बहते इतिहास का अभिमान ही रहे हैं और इसके साथ किसी भी तरह का बदलाव अक्सर सियासी दंगल का कारण बना है। बहरहाल, इस समय भारतीय राजनीति राष्ट्र के नाम को लेकर विवादों के केंद्र में है। यह हिंदुस्तान के रूप में जाना जाता है.. इंडिया, भारत के नाम से भी पहचाना जाता है।पर अब राजनीतिक गलियारों में कहा यही जा रहा है कि आने वाले संसद के विशेष सत्र में देश कोअधिकारिक तौर पर ‘रिपब्लिक ऑफ भारत’ कहे जाने वाले प्रस्ताव को पास कराया जा सकता है। लेकिन संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि देश के संविधान में ‘इंडिया, दैट इज भारत’ का पहले से ही जिक्र है। इसलिए इंडिया और भारत यह दोनों नाम संविधान में दर्ज हैं और एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक फिलहाल संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर में बदलाव तकरीबन नामुमकिन जैसा ही है। वहीं देश के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि इंडिया को अधिकारिक तौर पर भारत पुकारे जाने से क्या भारतीय जनता पार्टी को कोई बड़ा सियासी लाभ मिल सकता है या नहीं।2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए अस्तित्व में आया विपक्ष का नया गठबंधन “I.N.D.I.A” इस समय जहां पहले ही अपने नाम को लेकर ही निशाने पर है वहीं अब भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने भारतीय संविधान में लिखे इंडिया शब्द का ही विरोध कर दिया है। जबकि देश की सर्वोच्च अदालत में तो एक याचिका भी इंडिया शब्द हटाने को लेकर लगाई गई है।पीएम मोदी ने इंडिया शब्द पर चुटकी लेते हुए पहले कहा था कि ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन अंग्रेजों द्वारा किया गया है। खास बात यह है कि हाल ही में जी 20 की बैठक में भारत सरकार की ओर से जो न्यौता भेजा जा रहा है उसमें प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है।
जनक पाठक की नई
नियुक्ति और चर्चा….
छ्ग में संभागीय कमिश्नर दुर्ग पद पर प्रमोटी आईएएस जनक पाठक की नियुक्ति के बाद चर्चा तेज है। कलेक्टर के पद पर गंभीर आरोप लगने से उन्हें न केवल जिले से हटाया गया बल्कि निलंबित भी किया गया,किसी तरह कोर्ट और कैट का चक्कर लगाकर निलंबन समाप्त हुआ, 2007 बैच के प्रमोटी आईएएस जनक प्रसाद पाठक को इसी साल अप्रेल में ही एक्साइज कमिश्नर बनाया गया था साथ ही पर्यावरण विभाग का भी विशेष सचिव बनाया गया था,फिर उन्हें हटाकर दुर्ग का संभागीय कमिश्नर बनाया जाना चर्चा में है उनके स्थान पर दुर्ग के कमिश्नर महादेव कावरे को एक्साइज की जिम्मेदारी दी गई है। यहां यह बताना जरुरी है कि छ्ग में 2007 बैच के बाकी (जनक पाठक को छोड़कर) अफसर सचिव बन चुके हैं।
कुलपति की नियुक्ति
की जाँच के निर्देश……
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में बल्देव भाई शर्मा द्वारा कुछ दस्तावेजों के आधार पर कुलपति के पद पर हुई नियुक्ति के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश यूजीसी ने दिया है। विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ शाहिद अली ने पत्रकारिता विवि में कुलपति के पद पर बल्देव भाई शर्मा की नियुक्ति पर गंभीर आपत्तियां दर्ज कराई हैं।डॉ अली ने राज्यपाल एवं यूजीसी को प्रेषित शिकायत में कहा था कि विवि में कुलपति का पद हथियाने के लिए बल्देव भाई शर्मा ने अपने आवेदन पत्र में छद्म रूप से स्वयं को प्रोफेसर बताया तथा डाक्ट्रेट की मानद उपाधि का दुरुपयोग शैक्षणिक योग्यता के रूप में दर्शित किया है।छग राज्यपाल सचिवालय में कुलपति पद के आवेदन में बिना किसी सत्यापन के बल्देव भाई शर्मा ने पत्रकारिता विश्वविद्यालय में राजनीतिक संरक्षण से नियुक्ति प्राप्त कर ली है।
जनसम्पर्क विभाग की
एक परिभाषा ऐसी भी…..
किसी भी राज्य में जनसम्पर्क विभाग को जनता और सरकार के बीच एक तरह से सेतु का नाम दिया गया है,इस विभाग का प्रमुख कार्य ही सरकार की योजनाओं को मिडिया या पत्रकारों के माध्यम से जनता तक पहुंचना है और कहा जाता है कि यह विभाग जितना पत्रकारों के करीब रहेगा उतना ही सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार होगा और सरकार की लोकप्रियता भी बढ़ेगी। बहरहाल एक पुरानी घटना याद आ रही है… अविभाजित मप्र के समय कलेक्टर परिसर में एक पूर्व मंत्री और एक जनसंपर्क अफसर मिल गये,हमने पूर्व मंत्री से अफसर का परिचय कराया कि ये पीआरओ हैं… तब मंत्री ने कहा कि ‘तुम उस विभाग से हो न.. जो हम मंत्रियों का भाषण नोट करके पेपरों में छपवाता है और कटिंग हमको भेजता है …'(उस समय न्यूज़ चैनल शुरू नहीं हुए थे)सीनियर पूर्व मंत्री की बात सुनकर पीआरओ की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है..?खैर नया छ्ग बना,सीनियर अफसरों को इसका मुखिया बनाया गया और जनसम्पर्क विभाग को और भी अधिक मजबूत बनाया गया है।
और अब बस
0ईडी का एक अस्पताल में छापे के पीछे एक दो बड़े पुलिस अफसरों से क्यों जोड़ा जा रहा है…?
0क्या ईडी अब आईएएस के बदले आईपीएस के पीछे पड़ गई है?
0कुछ आईपीएस और नॉन आईपीएस के तबादले की चर्चा तेज है?