{किश्त44}
अविभाजित मप्र से छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 54 साल बाद फिर एक आदिवासी को सीएम बनाया गया है। सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र सिंह 1969 में मप्र के सीएम बने थे वहीं 2023 में दूसरे आदिवासी विष्णु देव साय भी सीएम बन रहे हैं(शपथ ग्रहण अभी नहीं हुआ है)4दिसम्बर को ज़ब विष्णु देव साय से मुलाक़ात हुई थी और उनसे भावी सीएम बनने पर सवाल किया था तो उन्होंने कहा था कि वे एक छोटे से भाजपा कार्यकर्त्ता हैं, ज़ब भी उन्हें भाजपा नेतृत्व ने जो भी जिम्मेदारी सौँपी है मैंने उसे पूरा करने का प्रयास किया। वैसे एक बात जरूर महसूस हुई थी कि सीएम बनने कम से कम उनकी तरफ से कोई लाबिंग तो नहीं की जा रहीं है… वैसे सरल, सौम्य,शांत,सहनशील और गंभीर राजनेता के रूप में वे जाने जाते हैं,उन्हें आदिवासी दिवस के दिन भाजपा अध्यक्ष पद से हटाया गया, देश-प्रदेश में काफ़ी चर्चा हुई पर विष्णुदेव साय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि हाईकमान के निर्णय को शिरोधार्य मानकर पद छोड़ दिया।
वैसे अजीत जोगी को आदिवासी मानकर छ्ग राज्य का पहला सीएम बनाया गया था परन्तु असली-नकली आदिवासी की चर्चा चलती रहीं।एक बात और भी बताना जरुरी है कि अजीत जोगी आईपीएस,आईएएस के साथ राज्य सभा,लोक सभा के सदस्य रहे थे किसी राज्य या केंद्र में मंत्री नहीं रहे थे तो डॉ रमन सिँह सीएम बनने के पहले विधायक, सांसद अटलजी के मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके थे।वहीं कॉंग्रेस के सीएम भूपेश बघेल जरूर दिग्विजय और अजीत जोगी के मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके थे। छत्तीसगढ़ के चौथे सीएम विष्णु देव साय भी पहले विधायक सांसद तथा नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके हैं। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।गांव बगिया से1989 में पंच,1990 में निर्विरोध सरपंच बनने वाले विष्णुदेव साय तपकरा से 90से 98 तक विधायक रहे तो रायगढ़ से (1999-2014)सांसद चुने गए। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में साय ने केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया।लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें बीजेपी ने मैदान में नहीं उतारा था, क्योंकि बीजेपी ने छग में 2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव हारने के बाद अपने किसी भी मौजूदा सांसद को नहीं दोहराने का फैसला किया था। इसके साथ ही विष्णुदेव साय प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी हैं.जून 2020 में भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था।वह अगस्त 2022 तक प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के पद पर रहे।मप्र में 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण की सरकार गिरी तो 13 मार्च 1969 को विधायकों के समर्थन मिलने पर मध्य प्रदेश के 13 दिन के मुख्यमंत्री छ्ग के पहले आदिवासी नरेशचंद्र बनाए गए थे।सरल स्वभाव के राजा साहब ने तत्कालीन राजनैतिक दांव-पेंच के खेल महसूस नहीं कर पाए और न केवल मुख्यमंत्री पद से ही बल्कि विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया और सारंगढ़ वापस आ गये। बाद में पुसौर विधानसभा क्षेत्र मे हुए उपचुनाव मे जनता ने उनकी पत्नी रानी ललिता देवी को निर्विरोध चुन कर विधानसभा मे भेजा।
सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र द्वारा राजनीतिक और शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्य किए गए हैं।सारंगढ़ राजपरिवार के सदस्य कांग्रेस पार्टी से सांसद और विधायक चुने जाते रहे हैं। दिवंगत राजा नरेशचंद्र सिंह संयुक्त मध्यप्रदेश के छठवें मुख्यमंत्री थे। हालांकि उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा है और वो महज 13 दिन मुख्यमंत्री के पद पर रहे। अपने राज्य का विलय करने के बाद नरेश चंद्र ने 1952 में पहला चुनाव जीता।प्रथम सीएम पं रविशंकर शुक्ल के मंत्रिमंडल में वह कैबिनेट मंत्री थे। वर्ष 1967 में नरेश चंद्र की बेटी रजनीगंधा देवी लोकसभा चुनाव जीती। कमला देवी विधानसभा की सदस्य थी। वहीं,पुष्पा देवी सिंह तीन बार लोकसभा चुनाव जीतीं थी ।