नोएडा : सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण गांव भूड़ा में रहने वाले सुनील शर्मा व उनके परिजनों की राखी की त्योहारी खुशियों पर ग्रहण लग गया। उनके ढाई माह के बच्चे के गले में टॉफी फंसने से वे उसे लेकर भटकते रहे। आरोप है कि सेक्टर-82 के निजी अस्पताल में करीब आधा घंटे तक 108 एंबुलेंस के इंतजार में खड़े रहे।
एंबुलेंस नहीं आई और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ बढ़ने लगी। आनन-फानन में परिजन किराये पर टैंपो को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां 20 मिनट इलाज के बाद बच्चे को मृत घोषित कर दिया।
मूलरूप से फिरोजाबाद निवासी सुनील शर्मा सेक्टर-81 स्थित गांव भूड़ा में किराये पर रहते हैं। वह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। वह ड्यूटी पर गए थे। घर पर पत्नी सुषमा, ढाई माह का मासूम गोपाल और तीन वर्षीय बेटी आरती मौजूद थे।
सुनील ने बताया कि सुबह करीब साढ़े 9 बजे बच्चा रो रहा था। पत्नी बाहर बर्तन धोने के लिए चली गई। बच्चे को रोता देख पत्नी ने बेटी को आवाज देकर कहा कि टॉफी खिलाकर चुप करा दे। इस पर उसने अपने भाई को टॉफी खिला दी। थोड़ी देर बाद सुषमा घर में घुसी तो बच्चे को तड़पता देख सकते में आ गई। वह रोने लगी। यह देख परिजन तत्काल बच्चे को नजदीकी क्लीनिक लेकर पहुंचे, लेकिन हालत गंभीर बताते हुए बड़े अस्पताल जाने को कहा।
अस्पताल और एंबुलेंस सेवा की लापरवाही ने ली बच्चे की जान…
सुनील ने बताया कि परिजन करीब 10 बजे सेक्टर- 82 के निजी अस्पताल पहुंचे। बेटे के गले में टॉफी अटकने की जानकारी मिलते ही वह अस्पताल पहुंच गए। आरोप है कि अस्पताल में मास्क को लेकर एतराज जताया। बाद में स्थिति गंभीर बताते हुए बच्चे को दूसरे अस्पताल जाने को कह दिया।
बाहर आकर 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल किया। वहां से जल्दी एंबुलेंस भेजने का दावा किया। आरोप है कि आधा घंटा तक एंबुलेंस न आने पर बच्चे की सांसे थमने लगी। उसके तुरंत बाद ही टेंपो में लेकर सेक्टर- 30 के जिला अस्पताल पहुंचे।
वहां बच्चे को भर्ती कर लिया, लेकिन करीब 20 मिनट बाद बच्चे को मृत घोषित कर दिया। सुनील का आरोप है कि समय से एंबुलेंस मिल जाती तो बच्चे की जान बच जाती। परिजनों का कहना है कि शव को घर ले जाते समय सरकारी एंबुलेंस मिल गई।
पीठ थपथपाने से निकल जाता है अटका पदार्थ
जिला अस्पताल के फिजिशयन डॉक्टर संतराम ने बताया कि गले में खाने और श्वास की नली होती है। श्वास नली को वैज्ञानिक भाषा में ट्रैकिया कहा जाता है। जब कोई ठोस पदार्थ खाने के बजाय ट्रैकिया में फंस जाए तो जान जा सकती है।
उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में उलटा कर बच्चे की पीठ थपथपाने से ट्रैकिया में फंसा पदार्थ निकल जाता है, लेकिन यह बेहद तेजी से करना पड़ता है वरना ब्रेन या कार्डिएक अरेस्ट हो जाता है। इसमें मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। अक्सर यह अटैक जानलेवा होता है। पानी पीने के दौरान खांसी आना भी ट्रैकिया में खाद्य पदार्थ फंसने का परिणाम होता है।
मैं आज अवकाश पर हूं। ऐसा संभव नहीं है कि कॉल जाए और एंबुलेंस समय पर ना पहुंचे। मैंने जो जानकारी जुटाई है। उसके मुताबिक, सुनील ने फोन किया, लेकिन उसका नंबर नहीं लगा। बाद में पता चला कि जिला अस्पताल से बच्चा दिल्ली के लिए रेफर हुआ है, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। परिजनों ने जिला अस्पताल आने से पहले 108 पर कॉल की या नहीं। इसकी जानकारी जुटा ली जाएगी। 108 का मौके पर पहुंचने का समय 15 मिनट का है। – संदीप कुमार, प्रोग्राम मैनेजर, 102-108 एंबुलेंस सेवा