{किश्त 92}
छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर में कलेक्टर और कमिश्नर बड़े योग्य आफिसर तैनात रहे,जो बाद में राज्यपाल,सीएस, एसीएस भी बने फिर भी हालात बिगड़ते ही रहे,कुछ बड़े विवाद भी चर्चा में रहे।आदिवासियों का शोषण, गरीबी,नक्सलवाद आदि बढ़ता ही रहा,इस पर शोध होना ही चाहिये…?बस्तर संभाग के बतौर प्रभारी कमिश्नर,रायपुर में तब के कमिश्नर,बाद में राज्यपाल शेखर दत्त ने सम्हाला था, छग के मुख्यसचिव सुनील कुमार ने तो अपनी सेवा की शुरूवात ही बस्तर से की थी,अबूझमाढ़ का दौरा भी उस समय किया था।नक्सलियों के हितैषी(?) ब्रम्हदेव शर्मा भीकलेक्टर रह चुके हैँ तो मप्र के मुख्य सचिव रहे आर.परशुराम भी 16 जून 86 से 20 मई 88 तक बस्तर कलेक्टर रहे है।सवाल यह उठ रहा है फिर भी बस्तर की हालत दिनोदिन क्यों बिगड़ती जा रही है?बस्तर में ही कुछ कलेक्टरों की तैनाती में बड़ी घटनाएं भी हुई है। जो नक्सली घटनाएं नहीं थी, बस्तर में कलेक्टरों के कार्य काल,उपलब्धियां,विवादों पर एक नजर डालते हैँ।सीपी एण्ड बरार स्टेट के समय बस्तर की भी पृथक पहचान थी।आजादी केबाद पहले कलेक्टर एसपी मुश्रान रहे,6जनवरी1949 से 21जनवरी 55तक यानि 6 साल का लम्बा समय गुजारने वाले आरसीव्हीपी नरोन्हा ने तो रिकार्ड बनाया है।वहीं मात्र 24 दिन का कलेक्टर बनने का रिकार्ड हर्षमंदर का है।हर्षमंदर ने बस्तर के 25 वें कलेक्टर के रूप में 25मार्च 1993 को कार्य सम्हाला था,बस्तर से जल्दी हटने वाले कलेक्टर के रूप में उनका रिकार्ड है।वैसे बस्तर के कलेक्टरों का कार्यकाल कुछ उनसे जुडे मामले भी चर्चित है।नरोन्हा ने 25 दिन तक उस समय अबूझमाढ़ का दौरा कर पहली बार उसे बूझने का प्रयास किया था वैसे वे शिकार के शौकीन थे।उनके कार्यकाल में बस्तर का काफी विकास हुआ।उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भानुप्रतापपुर के पास आज उनके नाम पर ‘नरोन्हा गांव’ स्थापित है।बस्तर के 7वें कलेक्टर अकबर ने 62 से 66 यानि 4 साल बस्तर की कलेक्टरी की थी।1मई 62 से 1 जून 66 तक उनकी तैनाती के दौरान ही बस्तर के मसीहा के नाम से चर्चित बस्तर में पूज्यनीय प्रवीरचंद भंजदेव की संदिग्ध परिस्थितियों में पुलिस की गोली से मौत हो गई थी।डीपी मिश्र केसीएम काल में छग की घटना की गूंज मप्र विधानसभा ही नहीं देश की संसद में भी सुनाई दी थी।कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम पडाव में अकबर मानसिक रूप से परेशान भी रहे,लोग कारण प्रवीर हत्याकांड से भी जोड़ते हैँ..?एनजीओ से जुडे तथा समाजसेवी के रूप में नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानेवाले डा. ब्रम्हदेव शर्मा भी बस्तर के कलेक्टर रह चुके हैँ।24 अगस्त 69 से 3 नवम्बर 71तक बस्तर के कलेक्टर रहे शर्मा के कार्यकाल में दैहिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई तो बस्तर की पुरातात्विक सामग्रियों की रक्षा के लिये भी कई कदम उठाये।10 अक्टूबर 1977 से एक अगस्त 80 तक बस्तर के कलेक्टर रहे नन्हे सिंह का कार्यकाल काफी चर्चित ही रहा।कार्यकाल में यशोदा कांड,बैलाडीला गोलीकांड हुआ,जिसके कई आदिवासियों,श्रमिकों की मौत हुई थी।औद्योगिक क्षेत्र किरंदुल (बैलाडीला की पहाड़ियों से लगा)में छटनी का विरोध करने वाले कुछ मजदूरों, पुलिस के बीच झडप के बाद गोली चली और कई मजदूर असमय ही काल के गाल में समा गये,मजदूरों की सिलसिले वार जली झोपड़ियां,बैला डीला की उस वक़्त रक्त रँजित पहाड़ियाँ इस बात की गवाह बनी कि आजादी के करीब 35 साल बाद भी पुलिस का आचरण वैसा ही था जैसाआजादी के समय? बस्तर के 27 वें कलेक्टर के रूप में 15 जुलाई 96 को बी.राजगोपाल नायडू ने कार्य भार सम्हाला,25 फरवरी 97 को कार्यमुक्त हो गये।इनके कार्यकाल में तब के कमिश्नरऔर इनके बीच उपजा विवाद सीएम तक पहुंचा था।मालिक मक बूजा वृक्ष,आदिवासियों की भूमि पर इमारती लकड़ियों के वृक्ष को कहा जाता है।टिम्बर व्यापारी वृक्षों को कम कीमत में खरीदकर उससे अधिक लाभ कमाते थे।करीब 55 करोड़ रूपये के 75 हजार वृक्ष टिम्बर माफिया द्वारा काटे गये,तब जांच कर आदेश देने वाले कमिश्नर,कलेक्टर का ही तबादला कर दिया गया तब पदस्थ नायडू की निगाह में एक बड़े अधिकारी,एक राजनेता के लिप्त होकर करोडों के वृक्षों को काटने की योजना बनाई थी।उसने सबूत इकट्ठा करने शासन को कार्यवाही के लिये पत्र लिखा।तब वरिष्ठ अधिकारी ने तो सीआर बिगाड़ने की धमकी दी…जांच तो क्या हुई अफसर का तबादला कर दिया गया।बस्तर में 28वें कलेक्टर के रूप में 25 फरवरी 97 को प्रवीर कृष्ण कलेक्टर बने। ‘इमली आंदोलन’ के लिये उनका कार्यकाल चर्चित रहा।बस्तर की वनोपज ‘इमली’ का सही मुल्य वनवासियों को दिलाने में उन्होंने महत्व पूर्ण भूमिका अदा की थी।1988 में बस्तर को संभाग का दर्जा मिला था।3 जून 88 से 17 मार्च 89 तक नारायण सिंह(बाद में छ्ग में एसीएस)कलेक्टर रहे इनका कार्यकाल मालिक मकबूजा के लिये चर्चित रहा।संभाग का दर्जा मिलने पर ये प्रथम आयुक्त भीबने।इसी तरह छग राज्य बनने के बाद गणेशशंकर मिश्रा कलेक्टर,बाद में कमिश्नर भी बने थे। वहाँ औद्योगिकी करण,शहरी विकास करने के नाम पर इनका कार्य काल जाना जाता है।बस्तर में विरोध के बाद जमीन देने के मामले में भी ये चर्चा में रहे।बाद में कमिश्नर,अमृत खलको भी बने,राज्यपाल के सचिव भी रहे।सवाल यही उठता है कि इतने योग्य अफसरों की तैनाती के बाद भी बस्तर की लगा तार बिगड़ती स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है?इस पर शोध तो होना ही चाहिये?