बासी के गुण कहुं कहां तक, इसे न टालो हांसी में…. गजब विटामिन भरे हुए हे छत्तीसगढ़ के बासी में….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )        

बासी के ऊपर छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल ने बहुत पहले उपरोक्त कविता लिखी थी….

वहीं छ्ग की एक और कविता भी अविभाजित मप्र के समय से चर्चा में है…..

हे-बटकी में बासी..
अउ चुटकी में नून….
में गावतथव…ददरिया
तें कान दे के सुन
वो चना के दार….
हे बागे बगीचा दिखे ला हरियर…..
मोटरवाला नई दिखे,
बदे हव नरियर, हो चना के दार……
हाय चना के दार राजा, चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो…..
टुरा परबुधिया…होटल में भजिया, झड़कत हे वो …

यह छत्तीसगढ़िया गीत बचपन से सुन रहे हैँ…. बासी भी कई बार खा चुके हैँ…..दरअसल छत्‍तीसगढ धान का कटोरा है, धान इसके गीतों में भी रचा-बसा है….क्‍योंकि धान से ही छत्‍तीसगढ का जीवन है। हम पके चावल को छोटे पात्र (बटकी) में पानी में डुबो कर ‘बासी’ बनाते हैं और एक हांथ के चुटकी में नमक लेकर दोनों का स्‍वाद ले के खाते हैं यही हमारा प्रिय भोजन है साथ ही घर की बाडी में उपलब्‍ध पटसन के छोटे छोटे पौधे ‘अमारी’ के कोमल-कोमल पत्‍तों से बनी सब्‍जी भी खाते हैं, साथ ही लाईबड़ी, बिजोरी, आमा के चटनी और गोंदली (प्याज़)खाते हैँ और उल्‍लास से ददरिया गाते हैं । उपरोक्त पंक्तियाँ छत्‍तीसगढ के फक्‍कडपन की झलक है अपनी सादगी को प्रदर्शित करने की एक सहज प्रस्‍तुति है।खैर एक मई को छत्तीसगढ़िया सीएम भूपेश बघेल ने श्रमिक दिवस पर किसान और मजदूरों के सम्मान में आव्हान किया इस पर आम लोगों के साथ खास लोग, संत्री से मंत्री कलेक्टर, एसपी से लेकर सीएस सभी ने व्यंजन बोरे बासी का आनंद लिया….. आम लोगों को जरूर गर्व करने का मौका सीएम भूपेश बघेल के कारण मिला… कि हमारा प्राचीनतम दैनिक खाना बड़े बड़े लोगों ने खाया…. कितना अच्छा हो किआम छत्तीसगढ़िया की तरह निर्मल व्यवहार करना भी कुछ बाहरी अफसर सीख जाएँ…..?बहरहाल भूपेश ने नरुआ, गरुआ, घुरुवा और बाड़ी योजना के बाद बोरे बासी को पुन:लांच करके फिर आम छत्तीसगढ़िया होना साबित किया है। वैसे जनमानस में सालों से बसे ‘बोरे बासी’ पर अमेरिका में भी शोध हो चुका है …. शोध में पाया गया की इसे खाने से डि-हाइड्रेशन और बीपी नियंत्रण में रहता है. इसमें पोषक तत्व पाए जाते हैं जिससे इसे खाने से थकान दूर हो जाती है. यह व्यंजन छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में खाया जाता है. इन दिनों गर्मी और लू ने प्रचंड रुप ले लिया है. छत्तीसगढ़िया व्यंजन बोरे और बासी जो न सिर्फ गर्मी और लू से राहत देता है, बल्कि यह खाने में जायकेदार होता है. इसे खाने से डि-हाइड्रेशन और बीपी जैसी समस्या नहींहोती है छत्तीसगढ़िया व्यंजन बोरे और बासी की विशेषता बताते हुए सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर 1 मई को मजदूर दिवस के दिन प्रदेशवासियों और देश-विदेश के लोगों से बोरे-बासी खाकर किसान और श्रमिकों के सम्मान का आग्रह किया था और उनके आव्हान छ्ग में ही नहीं विदेशों में रहने वाले छ्ग मूल के लोगों ने भी बोरे बासी का आनंद लिया और यह बड़ी सफलता भी है।बासी के खाने की चर्चा चल ही रही थी कि आक्ति तिहार और माटी पूजन कर खेती किसानी की शुरुआत कर ट्रेक्टर चलाकर बीज बोने की छ्ग की प्राचीन परम्परा को सार्वजनिक करने के बाद विपक्ष कुछ समझ पाता इसके पहले ही छत्तीसगढ़िया सीएम हेलीकाप्टर से छ्ग के सभी विधानसभा के अपने दौरे करने निकल गये…. वे सभी से भेंट मुलाक़ात कर रहे हैं यही नहीं लापरवाही की शिकायत पर कुछ अफसरों पर कार्यवाही भी कर रहे हैं।जानकर बताते हैँ कि वे आगामी विस चुनाव के पहले सरकारी नीतियों की जमीनी हकीकत, अफसरशाही की भूमिका और मौजूदा विधायकों की स्थिति पर निगाह रखने ही निकले हैं…?

बिलासपुर, गुरुदेव, छल और ‘फांकी’ का जन्म ….   

भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के रचयिता, प्रसिद्ध कवि, साहित्यकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के प्रेम और विरह में पिरोयी हुई कुछ यादों का रिश्ता छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर से भी रहा है … यहां गुरुदेव ने अपनी पत्नी के वियोग में एक मार्मिक कविता ‘फांकी’ की रचना की थी…..
बात वर्ष 1918 की है जब टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे .गुरुदेव को वर्तमान में बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रारोड जाना था. इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे और चन्द घंटों के बाद वो गाड़ी बदलकर पेंड्रा रोड गये थे।वो तकरीबन 5 से 6 घंटे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे. टैगोर अपनी पत्नी का टीबी का इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम ले जा रहे थे.उन दिनों पेंड्रारोड़ सेनिटोरियम टीबी के इलाज और विशेष आबोहवा के लिए देशभर में मशहूर था.’फांकी’ लिखने की कहानी…..बिलासपुर रेल्वे स्टेशन के प्रतीक्षाघर में बैठे टैगोरजी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली एक महिला पर पड़ी. बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया और पूछा तुम्हारा नाम क्या है…. और तुम यह काम क्यों कर रही हो….?महिला ने अपना नाम रुक्मणी बताया और कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है…..इसलिए मजदूरी कर पैसा जोड़ रही है ….यह पूछने पर कि कितने में काम चल जाएगा….रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी.तब रविन्द्र नाथ टैगोर की पत्नी ने उसे 20 रुपये देने का आग्रह गुरुदेव से किया.गुरुदेव ने कहा कि ठीक है, मैं इसे पैसे दे दूंगा, लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए इसे मेरे साथ स्टेशन से बाहर चलना होगा.रुक्मणी को लेकर गुरुदेव बाहर गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो, मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या ? इतना सुनते ही रुक्मणी वहां से चली गई.
जब गुरुदेव बाद में प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से रुक्मणी को पैसा दे देने की बात की…इसके बाद पति पत्नी रेल से पेंड्रारोड स्थित सेनेटोरियम पहुंचे, जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला, लेकिन वो बच नहीं पाईं…..इस तरह गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा (रुक्मणी को 20रूपये देने की) पूरी नहीं की बाद में अकेले गुरुदेव जब दोबारा फिर से बिलासपुर लौटे तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे, लेकिन रुक्मणी उन्हें कहीं नहीं मिली….. पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने के दुख में गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए।यहीं से एक महान कवि के हृदय में “फांकी” कविता जन्म लेती है, जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर ही लौटते वक्त लिखा था.फांकी एक बंग्ला शब्द है, जिसका अर्थ ‘छलना’ होता है.गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी को झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता फांकी ने जन्म लिया।बहरहाल बिलासपुर रेलवे स्टेशन में फांकी अभी भी पढ़ी जा सकती है.(7मई गुरुदेव के जन्मदिन पर विशेष )

भांजे राम, शबरी और छत्तीसगढ़ की माटी… 

छत्तीसगढ़ को श्रीराम की माता कौशिल्या का मायका माना जाता है, राम,लक्षमण, सीता ने 14साल के वनवास का बड़ा समय छ्ग में गुजारा है…. माता शबरी के बेर भी शबरीनारायण(शिवरीनारायण)में ही खाया था…..एक प्रसंग का उल्लेख…….
शबरी ने शंका की कि ” राम! यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम यहाँ क्यों आते….?”
राम गंभीर हुए…… उत्तर दिया “भ्रम में न पड़ो माँ! राम,क्या रावण का वध करने आया है? अरे रावण का वध तो मेरा लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है…। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल और केवल तुमसे मिलने आया है माता!, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था। जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है। राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का ‘इतिहास’ लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह ‘रामराज्य’ है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि सच्ची प्रतिक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं।
शबरी एकटक अपने राम को निहारती रहीं। राम ने फिर कहा- “राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए। राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है l राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाय… और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं……।”
शबरी की आँखों में जल भर आया था।उसने बात बदलकर कहा – “कन्द खाओगे राम….?”
राम मुस्कुराए, “बिना खाये जाऊंगा भी नहीं अम्मा..”( साभार, वर्तमान राजनीति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है )

‘निजात’ अभियान
की प्रशंसा……

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआर एंड डी), गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने देश भर के विभिन्न राज्यों की पुलिस एवं अन्य पुलिस संगठनों द्वारा नवाचार कर किए जा रहे अच्छे कार्यों पर एक किताब “स्मार्ट पुलिसिंग की उत्तम कार्यप्रणालियां प्रकाशित किया है। जिसमें छत्तीसगढ़ के कोरिया पुलिस के निजात अभियान पर विस्तृत आलेख (पेज 81- 90) प्रकाशित हुआ है। उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने अवैध नशे के खिलाफ कार्यवाहियां तेज कर दी है। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कोरिया, संतोष सिंह द्वारा ड्रग्स, नारकोटिक्स व अवैध नशे के खिलाफ कार्यवाही और जागरुकता अभियान, “निजात” की शुरुआत किया गया था, जो इस लड़ाई में कारगर अभियान साबित हुआ। इसने अवैध नशे के सौदागरों में दहशत पैदा किया है, साथ ही व्यापक जनजागरूकता व नशे के आदी युवाओं की काउंसलिंग आदि में मदद कर बड़ी संख्या में लोगों विशेषकर युवाओं को नशे से दूर करने में सफल हुआ है। वर्तमान में राजनादगांव पुलिस द्वारा भी यह अभियान चलाया जा रहा है।पुलिस मुख्यालय द्वारा भी राज्य के अन्य जिलों को कोरिया/राजनांदगांव पुलिस के निजात अभियान के अनुरूप कार्यवाही करने हेतु लिखा गया है।

और अब बस…

0छ्ग में कई यात्री रेल रद्द हुई है,पर भाजपा के किसी सांसद का बयान नहीं आया…..
0छ्ग में क्या भाजपा नेतृत्व में बदलाव होगा….?
0समारू – ते काबर उदास हस यार ?
तोर तो काली बिहाव हें?
मंगलू-का बताव यार…
ससुराल वाला मन बोले हें कि बराती कम लाबे…..समझ नई आत हे मोर बाबू मोला लेगही के नई…..?

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