{किश्त66}
हिन्दी सिनेमा का पूर्वाद्ध जिन अभिनेत्रियों के कारण आज भी गाहे- बगाहे चर्चा का विषय बनता है,जिसमें नरगिस की चर्चा आज भी प्रासंगिक है।छत्तीसगढ़ से नरगिस का सीधा संबंध तो नहीं था पर खैरागढ़की एक राजकुमारी सेअभिन्नमित्रता थी।यह संयोग है या दोनों ने मिलकर तय किया थायह तो नहीं कहा जा सकता पर दोनों के पुत्रों का नामसंजय है।जाहिर है कि संजयदत्त और संजयसिंह के बीच अच्छे रिश्ते हैं।यही नहीं राजकुमारी के पुत्र संजय की सुसराल भी छत्तीसगढ़ में ही है।संजयदत्त की बायो ग्राफी फिल्म ‘संजू’ के कारण यह हकीकत सामने आई है।नरगिस की मां जद्दनबाई प्रतापगढ़(उप्र) के चिलबिला की रहनेवाली थी,वह राज परिवारोंमें नाच गाना कर अपनी कला का प्रदर्शन करती थी।बाद में कोलकाता होकर जद्दन बाईने मुंबई का रूख किया 1जून 1929 को कलकत्ता में ही नरगिस उर्फ फातिमा का जन्म हुआ था ‘तलाशे हक’ नाम की फिल्म जो 1935 में बनी थी उसमें संगीत निर्देशक बतौर अपना संगीत दिया तथा सिनेमा के इतिहास मेंपहली भारतीय संगीत निर्देशक के रूप मेंअपना नाम दर्ज किया, फिल्म में फातिमा (नरगिस के बचपन का नाम)के नाम से नहीं ‘बेबी रानी’जैसे नाम से बाल कलाकार के रूप में अपने फिल्म कैरियर का आगाज किया था।आगे चलकर 40-50 के दशक में संवेदन शील अभिनेत्री नरगिस के रूप में सामने आई।बहर हाल खैरागढ़ राज के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह का विवाह प्रतापगढ़ (उप्र) की राजकुमारी पदमावती से हुआ था।बाम्बे में नरगिस कीअंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाई हुई,संभवत: वहीं रानी पदमावती की बेटी शारदादेवी से नरगिस की जान पहचान हुई जो बाद में मित्रता में बदलगई,दोस्ती इतनी गहरी हुई कि दोनोंके बेटों का जन्म बाम्बेअस्प ताल में हुआ और दोनों का नाम संजय रखा गया।शारदादेवी का विवाह 5 फरवरी1955 को विसऊ (राजस्थान) के रावलचक्र पाणि सिंह केसाथ हुआ था बाद में उनके पुत्र संजय सिंह का विवाह भी कवर्धा राज्य(छग)की रानी शशि प्रभा देवी की बेटी के साथ हुआ।इस तरह शारदा का मायका खैरागढ़ था,उनके पुत्र की ससुराल कवर्धा है। अपने संगीतकला प्रेम के कारण ही रानी पदमावती ने खैरागढ़ में इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना कर छत्तीसगढ को एशिया में प्रसिद्ध कर दिया।रानी पदमावती सांसद रही,दत्त नरगिस भी राज्यसभा सदस्य रहीं इसलिए भी शारदादेवी,नरगिस का सम्बन्ध और मधुर हो गया होगा।बालीवुड के इतिहास में फिल्म ‘मदर इंडिया’ की अदाकारा नरगिस ने सुनील दत्त से11मार्च 1958 को विवाह कर हिन्दु-मुस्लिम एकता का संदेश दिया था। तब के तस्कर हाजी मस्तान ने भी यह विवाह नहीं करने सुनीलदत्त को धमकी भी दी थी।वैसे नरगिस की मां ठुमरी गायिका जद्दनबाई ने भी एक हिन्दू रईस मोहन चंद्रउर्फमोहनबाबू से विवाह किया,यही नहीं हिन्दु मोहन बाबू को देश के पहले शिक्षा मंत्री,राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख मौलाना अब्बुल कलाम आजाद ने इस्लाम ग्रहण कराया था। वैसे नरगिस की तो लगभग सभी फिल्में सफल रही,पर ‘मदर इंडिया’की चर्चाजरूरी है क्योंकि यह दर्शकों तथा फिल्म समीक्षकों की निगाह में भारतीय सिनेमा का आदर्श उदाहरण बन गई है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नेहरूयुग के स्वर्णिम काल में भी अधिकांश भार तीय समाज जिस वर्ग से द्वेष एवं गरीबी की अपरि हार्यता को जीने को विवश था,जिसकी तल्ख सच्चाई यह भी थी,विरासत मेंमिला स्वाधीन भारत डेढ़ सौ साल की गुलामी एवं राजवंशों के जुल्मों-ज्यादतियों के बाद हासिल हुआ था,एक विपन्न मगर एकजुट राष्ट्र का हृदय दरअसल वे गांव थे। गांवों की आत्मा को किसानों के संघर्ष की विवेचना और तब के जमींदारों की प्रताडऩा के परंपरागत रवैये को महबूब खान ने अपनी फिल्म मदर इंडिया का कथानक बनाया था।प्रेम चंद युगीन,महाजनीसभ्यता स्त्री के संघर्ष और उसके असीमित कष्टों का संकट, साथ ही गरीब और सर्वहारा वर्ग की पहचान के विद्रुप की जमीनी सच्चाई केचलते ‘मदर इंडिया’ एक महा काव्यात्मक आख्यान रचती हुई हिन्दी ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति निधि सिनेमा का तो अप्रतिम उदाहरण बनकर स्थापित हो गई।मदरइंडिया दरअसल एकतरह से कला व्यवसायिक सिनेमा केबीच का पुल बनने में सफलरही मदर इंडिया का सबसे सशक्त पक्ष नरगिस का किर दार था।मदर इंडिया अपनेअर्थमयगीतों,अकाल और बाढ़ के कारूणिक दृश्यों,अनाज पैदा करने वाली मिट्टी एवं वात्सलता से भरी स्त्री की मार्मिक प्रतीक नरगिस की असाधा रण उपस्थिति,महाजनी सभ्यता के विरोध मेंअपने प्रगतिशील विचारों की स्थापना के चलते दुर्लभ सामाजिक दस्तावेज के रूप में स्थापित हो चुकी है।फिल्मी चकाचौंध से परे नरगिस प्रेम का जीवंत प्रतीक थी।उन्हें प्रेम करने वाले दो लोग राजकपूर (अधिकांश फिल्मों में सहनायक)एवं पति सुनील दत्त के साथ उनके रिश्ते परिकथा से कम नहीं रहे।यह तय कर पाना कठिन है कि दोनों के प्रेम की जड़ें कितनी गहरी थीँ। दोनों ने अपने अपने तरीकों से नरगिस के साथ अपने रिश्तों को कितनी उदारता से जिया था।सुनील दत्त ने नरगिसदत्त के अंतिम समय के दिनों में की गई सेवा से अभिभूत होकर न जाने कितने लोगों ने महान प्रेम कीऊंचाई को महसूस किया इधर आर.के का बैनर नरगिस-राजकपूर के प्रेम का प्रतीक लिये है।नरगिस को भारतीय सिनेमा के लिये याद करने से अलग एक कारण से भी याद किया जाएगा,उन्होंने बलात्कार की शिकार महिलाओं के लिए राज्य सभा के अपने कार्यकाल में कानून में संशोधन करवाने और अपराधियों को दण्डित करने के प्रावधान को सख्त बनाने के लिए लड़ाई लड़ी, समाजसेवा के कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।उन्हें राष्ट्रपति ने 1980में राज्यसभा के लिये मनोनीत किया था।3 मई 81को पैंक्रियाटिक कैंसर से नरगिस दत्त की मृत्यु हो गई। विषय को समाप्त करते समय,सुनील दत्ता,नरगिस के छग से संबंध के बहाने याद करते हुए हम मीर अनीस को याद करते हैं,जिनके शेर के पाठ के साथ नरगिस के प्रति हजारों प्रशंसकों के जज्बात को कुछ यूं बयां कर सकते हैं….
अफसोस है कि नरगिस की तरह बाग-ए-जहां में….,
कुछ हमने वजूज हसरतें दीदार न पाया…