यह धुंआ भर नहीं, छूकर इसे देखा है कभी? इसमें चीखें भी हैं, आंसू भी हैं , फरियाद भी है…

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )        

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपनी कुर्सी बचाने एक संकट में फंस गये हैं। बिना किसी (विधानसभा-विधान परिषद) का सदस्य होने के बावजूद मुख्यमंत्री बने ठाकरे को 28 मई तक किसी सदन का सदस्य होना है पर कोरोना महामारी के चलते देश में उपचुनाव टाल दिये गये हैं। ऐसे में या तो राज्यपाल उन्हें अपने कोटे से नामित विधान परिषद के सदस्य के तौर पर नियुक्त करें या मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल सहित इस्तीफा दे फिर मुख्यमंत्री बने तथा सदन में पुन: बहुमत साबित करें यही विकल्प ही बचा है। वैसे राजनीति में सीधे मुख्यमंत्री बनने वाले नरेन्द्र मोदी (गुजरात) तथा राबड़ी देवी (बिहार) भी मुख्यमंत्री बनने के पहले कभी भी कोई चुनाव नहीं लड़े थेl बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे भी इसी सूची में शामिल हो गये हैं… राजनीति में उतरकर सीधे मुख्यमंत्री बनने वालों में बिहार की मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी लालू प्रसाद यादव का नाम चर्चा में रहा। मार्च 1997 में राबड़ी देवी जब बिहार की मुख्यमंत्री बनी तो उस समय किसी भी सदन विधानसभा- विधान परिषद की सदस्य नहीं थी। वे इसके पहले न तो कभी चुनाव लड़ी थीं और न ही सरकार में किसी पद पर रही थीं। दरअसल 1997 में बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव को चारा घोटाला के मामले में जेल जाना पड़ा और उनकी राजनीतिक विरासत राबड़ी देवी ने सम्हालकर मुख्यमंत्री बनी बाद में विधान परिषद की सदस्य बनी थी।
देश के चर्चित प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी 2001में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। नरेन्द्र मोदी इसके पहले न तो कोई चुनाव लड़ा था और न ही सरकार में किसी पद पर रहे थे। हालांकि भाजपा संगठन में जरूर सक्रिय रहे थे। दरअसल 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर नरेन्द्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था। बाद में राजकोट विधानसभा से विधायक चुने गये थे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सन 2000 से पहले राजनीति से दूर रहे, वे शिवसेना के मुखपत्र-अखबार सामना का काम देखते थे। अपने पिता बाल ठाकरे के बाद कौन… के नाम पर उनका अपने चचेरे भाई राज ठाकरे से विवाद हुआ और 2003 में उद्धव ठाकरे, शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बने उसके बाद 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली। उद्धव ठाकरे अपने पिता की तर्ज पर सियासत करते रहे, वे न तो चुनावी मैदान में उतरे, न हीं कोई चुनाव लड़ा 2019 में पहली बार उनका बेटा आदित्य ठाकरे चुनावी समर में उतराऔर बाद में उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम बने। उद्धव ठाकरे का कार्यकाल का 6 माह 28 मई को पूरा हो रहा है और 28 मई तक उन्हें विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना होगा। कोरोना संक्रमण के चलते उपचुनाव होना फिलहाल संभव नहीं है ऐसे में राज्यपाल द्वारा विधान परिषद में नामित सदस्य के रूप में नामित करने महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने राज्यपाल के पास प्रस्ताव भेजा है। राजभवन की खामोशी के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से भी गुहार लगाई गई है। यदि उपचुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं होती, राज्यपाल उन्हें विधान परिषद में नामित नहीं करते तो उद्धव ठाकरे को अपने पद से इस्तीफा देना होगा, मंत्रिमंडल को भी इस्तीफा देना होगा, एक दिन बाद वे पुन: शपथ ले सकते हैँ , पर उन्हें बहुमत साबित करना होगा और 6 माह के भीतर उन्हें विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना पड़ेगा पर शह और मात की राजनीति में ये आसान तो नहीं लग रहा है।

यह कैसा निर्देश           

जब भारत में 300 करोना पाजीटिव्ह थे तब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक ही सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर लॉक डाऊन करने की घोषणा कर दी और 3 मई को उसके 40 दिन भी हो जाएंगे। काम की,तलाश में या आदतन बड़े शहरों में काम करने गये लाखों मजदूर और उनके परिजन फंसे हुए हैं तब केंद्र सरकार ने निर्देश दिया है कि राज्य सरकारें सड़क मार्ग से अपने दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को वापस ला सकते हैं उनकी स्वास्थ्य जांच कर 14 दिन कोरोन्टाईन में रखकर कोरोना पाजिटिव्ह पाने पर इलाज करें… क्या यह संभव है। यदि यही आदेश देना था तो 24 मार्च को यह दिया जा सकता था जब 300 पाजीटिव्ह थे आज तो कोरोना प्रभावित की भारत में ही संख्या35हजार पार हो गई है। छग में महाराष्ट्र से झारखंड जा रहे कुछ मजदूरों को सरगुजा में रखा गया था उनमें से 2 पाजीटिव्ह मिले हैं। छग के मुख्यमंत्री ने 30 हजार करोड़ की सहायता केंद्र से मांगी है पर उस पर विचार ही नहीं हुआ। छग जैसे राज्य में 100 बसें भेजकर करीब 2200 छात्र-छात्राओं को कोटा से लाने में 3 दिन लग गये तो अप्रवासी मजदूर जो जम्मू कश्मीर, बिहार, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हिमाचल, महाराष्ट्र, गोवा आदि में फंसे हैं ऐसे करीब डेढ़ से दो लाख मजदूरों को बस से लाना संभव नहीं लग रहा है, फिर उन्हें लाकर उनका कोरोना टेस्ट करना भी असंभव सा है। यहां अभी इतनी बड़ी कोरोना टेस्ट की सुविधा नहीं है। क्या केंद्र सरकार इन अप्रवासी मजदूरों का कोरोंना टेस्ट करके विशेष ट्रेन से इन्हें गृहराज्य में भेजने की व्यवस्था नहीं कर सकती है…? छग छोटा सा राज्य है, उसके सीमित साधन हैं, लाकडाऊन में आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है ऐसे में इतने अधिक मजदूरों की वापसी के बाद यदि स्थिति बिगड़ी तो कौन जिम्मेदार होगा क्या केंद्र की कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं बनती है…।
महज भाषण और कागजी फरमान के लिए नहीं होता है केंद्र… प्र वासी मजदूरों की अपने घरों में वापसी का रास्ता केंद्र सरकार ने खोल दिया, लेकिन घरों तक पहुंचने के लिए उनके रास्ते में आने वाले संकट के बारे में उसने कुछ नहीं कहा है। सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर ही छोड़ दी है, वैसे भी राज्यों की हालात बेहद नाजुक है और कोरोना की मार ने उन्हें बिलकुल घुटनों के बल ला दिया है…. l

हीरो मेजेस्टिक वाली दीदी….        

कभी समाज सेवा फिर विधायक बनकर अविभाजित म.प्र. में राज्यमंत्री, बाद में अनुसूचित जनजाति आयोग में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर छत्तीसगढ़ में गवर्नर बनने वाली सुश्री,अनसुइया उइके का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। काम कर साथ-साथ पढ़ाई फिर, कालेज यूनियन में पदाधिकारी, फिर उसी कालेज में लेक्चरर बनकर समाज सेवा को ही अपना उद्देश्य बनाकर चलने वाली अनसूइया उइके को उनके विधानसभा क्षेत्र सहित छिंदवाड़ा मुख्यालय के लोग हीरो मेजेस्टिक वाली दीदी कहते थे। अपने क्षेत्र के गरीब-गुरबा, आदिवासी महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने वे हमेशा प्रयत्नशील रही, गांव, ग्राम पंचायत स्तर पर प्रयास करने पर किसी भी समस्या देखकर वह प्रार्थी को अपनी हीरोमेजेस्टिक में न केवल बिठालकर तहसील, ब्लाक मुख्यालय लेकर जाती थी वरन उसकी समस्या का समाधान भी कराती थी। उस समय छिंदवाड़ा के पुलिस कप्तान होते थे डीएम अवस्थी (छग के वर्तमान डीजीपी) अनुसुइयाजी उस समय अवस्थी को एसपी साहब कहती थीं और आज भले ही डीएम अवस्थी, डीजीपी हो गये हैं पर राज्यपाल उन्हें एसपी साहब कहकर ही संबोधित करती हैं। लोगों की तकलीफ दूर करना उनकी आदत में शुमार हो गया है तभी तो बतौर गवर्नर उन्होंने सुपेबेड़ा जाकर वहां के लोगों की हालत का जाएजा लिया, उन्हें राहत पहुंचाने प्रयास किया, नक्सलवाद की धारा छोड़कर आये लोगों से कांकेर में मुलाकात की तो कोण्डागांव के सल्फीपदर गांव को गोद ले लिया है जहां 70 वर्षीय हरि सिंह सिदार के नेतृत्व में काली मिर्च की खेती की जा रही है l वैसे गवर्नर को आम ग्रामीण ‘लाट साहब’ कहते हैं पर यह पहली महिला गवर्नर है जिनके दरवाजे आम-खास के लिए हमेशा खुले रहते हैं। कोरोना संक्रमण के समय भी राज्यपाल अनसूइया उइके की सक्रिय भूमिका की प्रदेश नहीं देश में भी जमकर चर्चा है। उनके निर्देशों को बखूबी अंजाम भी दे रहे हैं उनके सचिव सोनमणी वोरा…. जो खुद सामान्य परिवार से आते हैं और बतौर आईएएस वे छग के लोगों की सेवा कर रहे हैँ.

और अब बस…

0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अति निकटता देखकर एक एसीएस को अभी से भावी मुख्य सचिव के रूप में देखा जा रहा है।
0 तीन एडीजी की डीजी के रूप में पदोन्नति का मुहूर्त कब आएगा….? ज्ञात रहे कि एक अफसर को तो डीजी पदोन्नत होने में 2 साल का विलंब हो गया है।
0 भूपेश सरकार के काफी करीबी रहे एक अफसर की सचिवालय से छुट्टी के पीछे क्या कारण है… कुछ लोग केन्द्र के छापे से इसका संबंध जोड़ रहे हैं।
0 लाकडाऊन 3 को छग में आशिंक हो सकता है पर इसके बाद फील्ड से मंत्रालय तथा पुलिस मुख्यालय में बड़े फेरबदल के भी संकेत मिल रहे हैं।

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