ये विष्णु का सुशासन है, भरोसा बनाये रखिये

राष्ट्रविरोधी ताकतों से अच्छी तरह निपटना जानते हैं विष्णुदेव साय

प्रियंका कौशल
(लेखिका भारत एक्सप्रेस नेशनल न्यूज़ चैनल की छत्तीसगढ़ की स्थानीय संपादक हैं)

त्तीसगढ़ में एक तरफ नक्सलवाद का समूल नाश किया जा रहा है। बस्तर का एक नया सुनहरा भविष्य गढ़ने की तैयारी की जा रही है। अपने हाथ से बस्तर को फिसलता देखकर कुछ राष्ट्र विरोधी शक्तियां पुनः सक्रिय हो गयी हैं। अब वे बस्तर को नए संघर्ष में झोंकना चाहते हैं। संविधान की गलत व्याख्या कर संविधान से ही खिलवाड़ करना चाहते हैं। भोले भाले बस्तरवासियों को एक नए द्वंद में धकेलना चाहते हैं।

लेकिन जो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को कम आँक रहे हैं, वे शायद भूल रहे हैं कि पहले भी उन्होंने ही राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ वनवासी भाइयों को एकजुट खड़ा कर दिया था।

उनको स्मरण करवा दिया जाए कि 2018-19 में पत्थरगढ़ी की घटनाओं के बीच तत्कालीन केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री विष्णुदेव साय ने ही अनुसूचित जनजाति समाज के बीच पहुंचकर उन्हें जागृत किया था। साय ने सद्भावना पदयात्रा निकालकर वनवासी समाज को राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ एकजुट कर दिया था। तब भी विष्णु देव ने इस मामले को संभाला था अब मुख्यमंत्री के रूप में निश्चित ही समाज और देश तोड़ने वाली शक्तियों का नाश करने में सफल होंगे।

छत्तीसगढ़ में रुचि रखने वाले पाठकों को याद होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल के अंतिम दिनों में सरगुजा/जशपुर के इलाके में गांवों की सीमा पर बड़े-बड़े पत्थरों पर ग्रामसभा के अधिकार दर्ज कर गाड़े जा रहे थे। इसे जिन्हें पत्थरगढ़ी या पत्थलगढ़ी का नाम दिया गया था। संविधान के नाम पर भ्रम फैलाकर भोले भाले आदिवासियों को उकसाया गया था।

अब एक बार फिर पत्थरगढ़ी के नाम पर एक नया षड्यंत्र शुरू हो चुका है। पहले टारगेट सरगुजा था पर अब बस्तर है। हम सब जानते ही हैं कि बस्तर समेत पूरे देश में नक्सलवाद का अंत आ गया है। मार्च 2026 के बाद से बस्तर अमन चैन की सांस लेगा। वहां का युवा अपने सतरंगी स्वप्न पूरे करेगा। किसी के इंजीनियर बनने की राह खुलेगी तो कोई डॉक्टर बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा। कोई राजनीति में भाग्य आजमाएगा तो कोई अभिनय में अपनी चमक बिखेरेगा। लेकिन कुछ कालनेमियों के गले से यह बात नहीं उतर रही है। वह नहीं चाहते कि बस्तर के युवा भी पंख लगाकर विश्व गगन को नाप लें। इसलिए अब पत्थरगढ़ी के बहाने माहौल को बिगाड़ने की तैयारी है।

बस्तर के बास्तनार, दरभा और तोकापाल जैसे इलाकों में गांवों की सीमाओं पर बड़े-बड़े पत्थरों पर चेतावनी लिखकर गाढ़ा जा रहा है। ग्रामसभा के अधिकार के नाम पर भ्रम पैदा किया जा रहा है। लोकतंत्र को चुनौती दी जा रही है। देश के कानून को नकारने की कोशिश की जा रही है। बस्तर के किलेपाल में लगे बोर्ड में लिखा गया है कि यह क्षेत्र आदिवासी समुदाय की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के तहत आता है।

जिस पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून का हवाला दिया जा रहा है, उसकी आड़ नक्सली भी लेते रहे हैं। वास्तव में, अब नक्सलियाें के कमजाेर हाेने के बाद पत्थरगढ़ी का सामने आना बस्तर के विकास में अवराेध का नया पैंतरा है।

इस पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा है कि हमें इसकी जानकारी मिली है और इस पर बातचीत की जाएगी। संविधान की व्यवस्था सबसे ऊपर है, हर चीज संविधान के तहत होगी।

वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस इस आग भड़का रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का कहना है कि बस्तर की जनता अपने अधिकारों, अपने खनिज संसाधनों और अपनी जमीन को बचाने के लिए लड़ रही है। लेकिन बैज यह कहते वक़्त भूल जाते हैं कि यही दलीलें नक्सली भी दिया करते थे। इससे यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस पार्टी नक्सलियों की भाषा बोल रही है?

दरअसल वनवासी बहुल क्षेत्रों में पहले भी माओवादी,मिशनरी, अर्बन नक्सली और मादक पदार्थों के तस्करों का गठजोड़ पत्थरगढ़ी का दुरुपयोग राज्य के खिलाफ हथियार के रूप में करते रहे हैं। अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में चर्च-वामपंथी उग्रवाद इसके द्वारा स्थानीय लोगों को राज्य के खिलाफ भड़काना, समाज में वैमनस्य फैलाना और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को आड़ देता रहा है।

इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि वर्ष 2018-19 में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के ठीक पहले नफरत को भड़काने के लिए पत्थरगढ़ी का सहारा लिया गया था। फिर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नक्सलियों के खिलाफ सारे एक्शन रोक दिए गए थे। नक्सली और मादक पदार्थों के तस्कर सुरक्षित हो गए थे। इसलिए कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कोई पत्थरगढ़ी नहीं हुई। इससे ये साफ हो जाता है कि पत्थरगढ़ी के पीछे आमजनता नहीं बल्कि नक्सल समर्थक मिशनरीज़ की लॉबी है, जिनके संबंध अंतरराष्ट्रीय भारत विरोधी शक्तियों से हैं।

पत्थरगढ़ी के मामले में वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हरमन किंडो और सेवानिवृत्त ओएनजीसी अधिकारी जोसेफ टिग्गा सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया था। ये दोनों अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति के बाद ईसाई मिशनरियों के साथ काम कर रहे थे और झारखंड व ओडिशा में पत्थरगढ़ी अभियान में भी शामिल थे। अन्य गिरफ्तार लोग भी ईसाई थे, जो मिशनरीज़ के लिए काम करते थे और पत्थरगढ़ी करवा रहे थे। इनका एक साथी विजय कुजूर अनुसूचित जनजाति के नागरिकों को सरकारी योजनाओं के बहिष्कार के लिए उकसा रहा था, जबकि खुद एक सरकारी कम्पनी शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कर्मचारी था और सारी सरकारी सुविधाओं और योजनाओं का लाभ ले रहा था।

वर्तमान में बस्तर में भी संविधान के बारे में जो सिद्धांत उन्हें बताए जा रहे हैं, वे झूठे हैं। राष्ट्र-विरोधी ताकतें विद्रोह भड़काने की कोशिश कर रही हैं। इस अभियान के पीछे मुख्य दिमाग अर्बन नक्सलियों का है, जिन्हें ईसाई मिशनरियों का समर्थन प्राप्त है।

तथाकथित पत्थरगढ़ी विकास संबंधी मुद्दों पर प्रशासन के खिलाफ गुस्से की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है। इसमें चर्च, नक्सली, माओवादी, अफीम माफिया और कुछ अन्य भारत विरोधी तत्व एक साथ शामिल हैं। इनका उद्देश्य झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र आदि राज्यों के अनुसूचित जनजाति जिलों में गंभीर अशांति व अस्थिरता उत्पन्न करना है।

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