8 साल की कठिन यात्रा के बाद बने एशिया में सिरमौर
प्रदीप जोशी, इंदौर।
इंदौर के जिस ट्रैंचिंग ग्राउड में एशिया का सबसे बड़ा सीएनजी प्लांट स्थापित किया गया है कभी यह स्थान शहर के लिए सिरदर्द बन गया था। दस बरस पहले तक पूरे शहर का कचरा इस ग्राउंड पर डम्प होता था और एक बड़ी आबादी दुर्गंध, बिमारियों आदि का संताप भोगने पर विवश थी। कचरे के सौ सौ फिट उंचे पहाड़ यहां की पहचान बन चुके थे और कई दफा कचरे के इन पहाड़ों में आग भी लग जाती थी। उन परिस्थितियों में पूरा इलाका दुर्गंध भरे धुंए की चपेट में आ जाता था। सैकड़ों आंदोलन ट्रेंचिग ग्राउंड को हटाने के लिए हो गए। खास बात यह थी कि इस गंदगी ने शहर के प्राचिन तीर्थ देवगुराडिया मंदिर से श्रध्दालुओं को दूर करने का काम कर दिया था। आज तस्वीर इससे एक दम उलट है, गंदगी की आलम के स्थान पर एक सुरम्य पर्यटन स्थल और परेशानी का सबब बना कचरा आमदानी का जरिया बन चुका है। इंदौर को यह मुकाम प्राप्त करने करने में 8 साल की कठिन यात्रा करना पड़ी है। यह भी कह सकते है कि यह हमारी जिद और जुनून की मिसाल है। जिसने शहर को ना सिर्फ वैश्विक पहचान दी बल्कि एक आदर्श भी पेश किया है। इंदौर 2017 से 2021 तक लगातार पांच बार स्वच्छता में नंबर एक पायदान पर बना हुआ है। स्वच्छता अब इंदौर की आदत में शुमार है और नंबर वन बने रहना उसकी जिद है।
*दो साल पिछड़े, फिर की नई शुरूआत*
साल 2014 में केंद्र सरकार ने स्वच्छता मिशन की घोषणा की थी। इस अभियान में देश के विभिन्न शहरों का स्वच्छता सर्वेक्षण करवाया गया। 2016 में हुए सबसे पहले सर्वेक्षण में सबसे स्वच्छ शहर का पुरस्कार मैसूर को मिला और इंदौर सूची में 25 वे नंबर पर ठहर गया। तमाम कोशिशों के बाद भी सफाई का ठोस मॉडल तय नहीं हो पा रहा था। उस दौर में शहर की सफाई की जिम्मेदारी निजी कंपनी के हाथ में थी जिसके काम से तात्कालिन महापौर मालिनी गौड़ और निगमायुक्त मनीष सिंह खुश नहीं थे। नगर निगम में नई परिषद का गठन हो चुका था। निजी कंपनी को हटा कर निगम प्रशासन ने सफाई व्यवस्था अपने हाथ में ले ली।
*समझाईश और सख्ती से सुधारे हालात*
सफाई व्यवस्था हाथ में लेने की चुनौती बड़ी थी क्योकि ना तो निगम के पास संसाधन थे और ना ही लोग थे। जो कर्मचारी थे उन पर भी कोई अंकुश नहीं था। सैकड़ों कर्मचारी ऐसे थे जो घर बैठे वेतन पा रहे थे। निगम में युनियनों का बोलबाला था जिनसे उलझना कोई नहीं चाहता था। जोन कार्यालयों के तो हाल और भी बुरे थे। निगमायुक्त सिंह ने सख्त रवैया अख्तियार किया और काम पर नहीं आने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के नौकरी से बेदखल कर दिया। सैकड़ों केस में तो वेतन की रिकवरी तक के नोटिस दिए गए। यह सीधा संदेश था कि काम करेंगे तो ही नौकरी में रह पाएंगे। इस सख्ती का असर भी गहरा हुआ और कर्मचारी नियमित काम पर आने लगे।
*खुद को बनाया आत्मनिर्भर*
अब साधन संसाधन जुटाने की बारी थी। किराए की गाड़ियों को छोड़ निगम ने अपने वाहन बढ़ाना शुरू किए। सबसे पहले घर घर से कचरा कलेक्शन करने वाले छोटे वाहन खरीदे गए। व्यवस्था में गड़बड़ ना हो इसके लिए इन वाहनों को जीपीएस सिस्टम से जोड़ा गया। निगमायुक्त अल सुबह मैदान में डट जाते थे जिससे पूरा अमला मुस्तेद रहता। निगम के वाहनों से आज इंदौर के 85 वार्डो में रोज डोर टू डोर कचरा कलेक्शन होने लगा। हर दिन 11 सौ टन गीला सूखा कचरा कलेक्टर करने वाले इन वाहनों के मेंटेनेंस के लिए नगर निगम ने एक अत्याधुनिक वर्कशाप भी बनाई गई। देश में अपने तरह की यह आधुनिक वर्कशाप आईएसओ सर्टिफायड वर्कशॉप है।
*लोगों का साथ और कर्मचारियों की मेहनत*
स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन करने वाले नागरिकों पर भी निगम प्रशासन ने सख्ती की। इंदौर देश का संभवतया पहला शहर है जहां थूकने पर जुर्माना लगाया जाता है। गंदगी फैलाने अथवा सड़क पर कचरा फैकने पर स्पॉट फाइन का भी प्रावधान किया गया। जनता ने भी अपनी आदते सुधारी और भरपूर साथ दिया।
शहरवासियों का साथ और सफाई कर्मचारियों की कड़ी मेहनत थी तो मंजिल मिल ही गई। स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 में इन्दौर देश के तमाम बड़े शहरों को पछाड़ कर नंबर एक का खिताब हांसिल कर लिया। जिस जीवटता के साथ मनीष सिंह ने अभियान शुरू किया वो अभियान तत्कालीन निगमायुक्त आशीष सिंह और वर्तमान निगमायुक्त प्रतिभा पाल के नेतृत्व में भी उसी अंदाज में संचालित हो रहा है।
*इन कामों से इंदौर ने की शुरूआत*
– शहर के विभिन्न मार्गों पर 15 हजार से भी ज्यादा कचरा संग्रहण के लिए डस्टबिन लगाए
– कचरा कलेक्शन के लिए निगम ने शहर के 10 स्थानों पर कचरा ट्रांसफर स्टेशन स्थापित किए
– शहर के स्कूलों में 1662 स्वच्छता समितियां बनी
– शहर के व्यवसायिक क्षेत्रों में रात्रिकालीन सफाई व्यवस्था शुरू हुई
– सफाई अभियान के दौरान शहर के सभी सार्वजनिक स्थलों से अवैध होर्डिंग्स हटाएं
– शहर में निगम ने चार सौ से ज्यादा सार्वजनिक और 15 हजार निजी शौचालय बनाए
– शहर के 450 गार्डनों में कचरे से खाद बनाने के छोटे प्लांट लगाए
– 100 से ज्यादा रहवासी संघों ने भी प्लांट लगाए
– अनाज मंडियों में अपशिष्ट प्लांट स्थापित किये गए