शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
देश जिसने 100 करोड़ मुफ्त वैक्सीन सबसे पहले लगाने के जश्न की सच्चाई जानना जरूरी है।
विश्व में 100 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले केवल दो ही देश हैं भारत और चीन। अब इनका मुकाबला देखो तो भारत ने 100 करोड़ कुछ लाख वैक्सीन के टीके लगाये हैं तो चीन ने अब तक 212 करोड़ टीके लगाये हैं। तो भारत को अभी बहुत लंबी रेस लगानी होगी जीतने के लिये…..!
100करोड़ वैक्सीन तो ठीक थी ,पर साथ में वैक्सीन सर्टिफिकेट में पीएम की फोटो लगाने का क्या औचित्य है….? यह बताया जा रहा है कि यही वह बंदा है जिसने ताली /थाली बजा कर नौटंकी करवाई और बाद में हजारों लोग बिना ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तरों , जरूरी दवाइयों की कमी से मर गए और अब यह उत्सव मनाया रहा है ….।
यह जो ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि 100 करोड़ का मुफ़्त वेक्सिनेशन किया गया है पर यह नही बताया गया है कितने लोगों ने निजी अस्पतालों में पैसा देकर वैक्सीन लगाई है….? पर सच्चाई यह है कि भारत के हर गरीब अमीर से वसूले “टैक्स” के पैसे से ही वैक्सीन लगाई गई है …ना की भाजपा के पार्टी फंड़ या पीएम केयर फंड से…..? भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद पेट्रोल, डीजल और एलपीजी पर कितनी एक्साइज ड्यूटी, , टैक्स के माध्यम से आम जनता को लूटा गया है उसका हिसाब कौन देगा ….
भारत में 18साल और उससे ऊपर की आयु वालों की जनसंख्या103 करोड़ के करीब हैं।
▪️ वेक्सिन की 2खुराक की कीमत @ ₹200 प्रति व्यक्ति के हिसाब से कुल ₹20,600 करोड़।0पेट्रोल/ डीजल की कीमतों में वृद्धि से कर वसूली के रूप में ही (2020-21 में) ₹3,35,000 करोड़ इकट्ठा हुआ।0₹3,35,000 करोड़ में यदि ₹20,600 (करोड़ वैक्सीन लगाने का खर्च) काटने के बाद ₹3,14,400 करोड़ बचता है। इसमें पीएम केयर फंड शमिल नही है। यह है मुफ्त वैक्सीन का राज……? वैसे कोरोना से बचाव के लिए छग में अभी तक दो करोड़ 26 लाख से अधिक टीके लगाए गए हैं। प्रदेश के एक करोड़ 57 लाख 53 हजार से अधिक लोगों को इसका पहला टीका और 69 लाख से अधिक लोगों को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं।
पेगासस और आरवेलियन चिंता….
सुप्रीम कोर्ट ने इजरायली स्पायवेयर ‘पेगासस’ के जरिये भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया है । कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में निजता का हनन नहीं हो सकता है.उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसका प्रयास ‘राजनीतिक बयानबाजी’ में शामिल हुए बिना संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून के शासन को बनाए रखना है, लेकिन उसने साथ ही कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं ‘सुप्रीम कोर्ट ने इजरायली स्पायवेयर ‘पेगासस’ के जरिये भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया.उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसका प्रयास ‘राजनीतिक बयानबाजी’ में शामिल हुए बिना संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून के शासन को बनाए रखना है, लेकिन उसने साथ ही कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं ‘ऑरवेलियन चिंता’ पैदा करती हैं.‘ऑरवेलियन’ उस अन्यायपूर्ण एवं अधिनायकवादी स्थिति, विचार या सामाजिक स्थिति को कहते हैं, जो एक स्वतंत्र और खुले समाज के कल्याण के लिए विनाशकारी हो.मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने अंग्रेजी उपन्यासकार ऑरवेल के हवाले से कहा, ‘यदि आप कोई बात गुप्त रखना चाहते हैं, तो आपको उसे स्वयं से भी छिपाना…. जॉर्ज ऑरवेल अपने दौर के उन चुनिंदा लोगों में से थे जो फासीवाद, नाजीवाद और स्टालिनवाद की समान रूप से आलोचना करते थे और दोनों को ही मानवता का संकट मानते थे. वो किसी भी तरह के अधिनायकत्व के खिलाफ थे.उनकी दूसरी महत्वपूर्ण किताब 1984 है. यह किताब उन्होंने लिखी थी 1948 में लेकिन इसका शीर्षक उन्होंने रखा था-1984. क्योंकि वो इसमें अपने समय से आगे जाकर एक समय की कल्पना करते हैं जिसमें राज सत्ता अपने नागरिकों पर नजर रखती है और उन्हें बुनियादी आजादी देने के पक्ष में भी नहीं है.वो सत्ता के खिलाफ सवाल उठाने वाली आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देना चाहता है. वो विद्रोहियों का नामोनिशान मिटा देना चाहता है. वो इस किताब में तकनीक से घिरे उस दुनिया की बात करते हैं जहां आदमी के निजता के कोई मायने नहीं है.जहां निजता मानवाधिकार ना रहकर सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोगों का ही विशेषाधिकार हो चुका है. ऑरवेल अपनी इस किताब में ‘बिग ब्रदर इज वाचिंग यू’ जैसी अवधारणाओं की बात करते हैं जो आज वाकई में तकनीक और गैजेट से घिरी हुई इस दुनिया में अस्तित्व में है.इस किताब में जॉर्ज ऑरवेल की कल्पना शक्ति अद्भुत है. ऐसा लगता है कि कोई 1948 में बैठकर इस वक्त की भविष्यवाणी लिख गया हो. 21 जनवरी 1950 को अपनी मृत्यु से पहले सिर्फ 47 साल की जिंदगी में जॉर्ज ऑरवेल ने अपने वक्त के साथ-साथ अपने आगे के वक्त को भी बखूबी देख लिया था. इसलिए वो इस दौर में और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं.’ …
45आने के समान की चोरी और पहली एफआईआर…
आख़िरकार भारत में 6 अक्टूबर, 1860 में ‘ताज-ए-रात-ए हिंद’ यानी इंडियन पीनल कोड (आई पी सी) की शुरुआत हुई. साल 2021 में इस सिस्टम को अपनाये पूरे 160 साल हो चुके हैं. भारत में आज भी आईपीसी की बहुत सी धाराएं वहीं हैं, जो 160 साल पहले हुआ करती थीं. इस दौरान अंग्रेज़ों ने आईपीसी बनाने के साथ ही दिल्ली में 5 थाने भी बनाये थे. इनमें कोतवाली, सदर बाज़ार, सब्जी मंडी, महरौली और मुंडका (नांगलोई) शामिल थे.भारतीय पुलिस विभाग के पुराने रिकार्ड के मुताबिक़, ‘इंडियन पीनल कोड’ सिस्टम के तहत देश की पहली एफ़आईआर 18 अक्टूबर, 1861 को दिल्ली के ‘सब्जी मंडी थाने’ में दर्ज की गई थी. इस दौरान कटरा शीशमहल निवासी मयुद्दीन, पुत्र मुहम्मद यार ख़ान ने चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई थी.इसके मुताबिक़,17 अक्टूबर की रात मयुद्दीन के घर से 3 डेगचे, 3 डेगची, 1 कटोरा, 1 कुल्फी बनाने का फ्रेम, 1 हुक्का और घर की औरतों के कपड़े चोरी हो गये थे. इस दौरान चोरी हुए सामान की क़ीमत उस समय 45 आने थी. 16 आने का 1 रुपया होता है. इस हिसाब से ये क़रीब 2 रुपये 13आने कुल चोरी हुई थी।साल 2017 में दिल्ली पुलिस ने ‘खास है इतिहास’ टैगलाइन के साथ अपने ट्विटर हैंडल से इस रोचक जानकारी को साझा किया था. इस दौरान पुलिस विभाग ने तारीख के साथ-साथ उस पहली एफआईआर की फ़ोटो भी शेयर की थी. 18 अक्टूबर, 1861 को दर्ज की गई यह रिपोर्ट उर्दू में लिखी गई थी।
बिखरे कला संस्कृति के रंग…. ( छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य स्थल पर मेरे साथ खुद सेल्फी ली….)
नृत्य भारत की स्वदेशी आबादी द्वारा नृत्य हैं। आदिवासी के रूप में पहचाने जाने वाले इन लोगों के रीति-रिवाज हैं, जो कि बड़े भारतीय निवासियों से बहुत विविध हैं। भारत अपनी विशाल विविधता के साथ महान सांस्कृतिक विरासत का देश है। इसने नृत्य के विभिन्न रूपों को परिभाषित किया है। भारतीय लोक नृत्य का एक पुराना रिवाज है। लोक परंपरा में, नृत्य लोगों के दैनिक जीवन का पोषण है। प्रत्येक लोक नृत्य में जीवन और अर्थ के कुछ स्वरूप को दर्शाया गया है। एक लोक नृत्य में भावना का प्रतिनिधित्व करने का विचार सामान्य और अभिनव है। भारतीय लोक नृत्य मुख्य रूप से खुशी व्यक्त करने के लिए किया जाता है। लोग पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता या दादा-दादी से नृत्य सीखते थे, जिनका जीवन वास्तव में रीति-रिवाजों और परंपराओं से प्रभावित रहा है। भारतीय लोक, आदिवासी और रीति-रिवाज नृत्य परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकांश का दैनिक जीवन के कार्यों से घनिष्ठ संबंध है। ग्राम भारत का किसान समुदाय लोक नृत्यों, कर्मकांड, खेती और बहती को बनाने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए लोक नृत्य में आम लोग शामिल हैं, जो गांवों और ग्रामीण इलाकों में बसे हुए हैं, और यह एक सामान्य आदमी की कला है।7 देश, 27 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेशों के 59 आदिवासी नर्तक दल ने कला-संस्कृति के रंग छग की राजधानी में 3दिन बिखेरे हैं।राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन छग सरकार करने में सफल रही दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं इसे लेकर रुचि ले रहे थे। यह महोत्सव राजधानी के साइंस कॉलेज मैदान में तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव ने छग का माहौल ही बदल दिया। इनमें लगभग 1000 कलाकार शामिल हुए जिनमें 63 से अधिक विदेशी कलाकार शमिल थे। प्रतिदिन 20-20 आदिवासी नर्तक दलों द्वारा अपनी प्रस्तुति दी । वैसे भूपेश की सरकार बनने के बाद राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की शुरुवात हुईं पर पिछले साल कोरोना महामारी के चलते यह अयोजन स्थगित रहा था। छग जैसे आदिवासी बहुल इलाके में इस आयोजन की अन्य राज्यों सहित विदेशी कलाकारों ने भी सराहा है।
और अब बस
0छग के सीएम ने हुक्का बार बंद , गांजा तस्करी पर नियंत्रण करने कहा है पर सट्टा, जुआ पर कुछ नही कहा… कुछ एसपी इससे खुश हैं…?
0 नए ज़िलों सहित 2/3जिलों के एसपी बदलने की चर्चा तेज है।
0छग में तीसरे बड़े राजनीतिक दल के बनने की संभावना से भाजपा खुश है तो कांग्रेस चिंतित है….?