जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं… कितने हिस्से में बट गया हूं मैं मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )      

पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केंद्र सरकार, राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बेनर्जी तथा नौकरशाही के बीच चल रहा विवाद पूरे देश में चर्चा का कारण बना हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुलाई गई बैठक में ममता बनर्जी का देर से पहुंचने,दस्तावेज सौंपने के बाद कथिततौर पर उनके तुरंत निकल जाने, प्रधानमंत्री की बैठक में राज्यपाल,नेता प्रतिपक्ष को बुलाने, प्रदेश के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय का शामिल नही होना, बाद में केंद्र द्वारा मुख्य सचिव को दिल्ली में अपनी आमद देनेका आदेश , मुख्य सचिव का इस्तीफा और राज्य सरकार द्वारा उन्हें मुख्य सलाहकार बनाने को लेकर कई तर्क-कुतर्क दिये जा रहे हैं। पहले ममता बनर्जी के बैठक में शामिल नहीं होने की बात करें तो उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर ज्ञापन तो सौंप ही दिया था, अधिकृत बैठक में चूंकि राज्यपाल,नेता प्रतिपक्ष शुभेन्द्र अधिकारी को बुलवाने के कारण संभवत: ममता नहीं गई इसके पीछे यह तर्क भी तो सटीक है कि जब प्रधानमंत्री ओडिसा तथा गुजरात गये थे तब तो वहां की बैठक में राज्यपाल और नेता प्रतिपक्ष को नहीं बुलाया था फिर पश्चिम बंगाल में ऐसा क्यों…? जहां तक देर से पहुंचने और प्रधानमंत्री के इंतजार का मामला है तो ‘दीदी’ की सफाई है कि एटीसी से सुरक्षा के नाम पर 20 मिनट हेलीकाप्टर देर से आने कहा….वहीं पहुंचने पर प्रधानमंत्री से काफी इंतजार के बाद मुलाकात की अनुमति दी गई….।
अब आते हैं भाजपा के इस आरोप पर है मुख्यमंत्री ममता, प्रधानमंत्री की बैठक में शामिल नही हुई इससे एक तरह से पीएम का अपमान किया है। पर उन्हें शायद यह जानकारी नहीं है कि बतौर मुख्यमंत्री (गुजरात) नरेन्द्र मोदी तथा छग के मुख्यमंत्री बतौर डॉ. रमन सिंह भी तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ बैठक में गैरहाजिर रह चुके हैं?
साल 2013 में मुजफ्फरपुर दंगों के बाद मनमोहन सिंह ने नेशनल इंटीग्रेशन काऊंसिल की बैठक बुलवाई थी, बिना किसी ठोस कारण के तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था। भाजपा की छग सरकार के तब के मुखिया डॉ. रमन सिंह भी उस बैठक में नहीं गये थे तब नरेन्द्र मोदी को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। यही नहीं 2013 में लालकिला में दिये गये डॉ. मनमोहन सिंह के भाषण के बाद गुजरात के कच्छ में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने उनके भाषण की आलोचना की थी कहा था कि- टीवी चैनल, मीडिया बता रहे हैं कि ये पीएम मनमोहन सिंह का आखरी भाषण है… वो, ( मनमोहन सिंह )कह रहे हैं बहुत दूर जाना है… तो वो किस राकेट में बैठकर यह दूरी तय करना चाहते हैं….? इधर लाल किले में किसान आंदोलन को लेकर किसी नेता द्वारा तिरंगे के बगल में एक झंडा फहराने पर पानी पी- पी कर, भाजपा के लोग राष्ट्रद्रोह की बात कर रहे हैं उन्हें शायद याद नहीं है कि सरगुजा (छत्तीसगढ़) में लाल किले की तर्ज पर बनायी गई प्रतिकृति में नरेन्द्र मोदी ने भाषण दिया था क्या यह प्रधानमंत्री या लालकिले का अपमान नहीं था….?

मंडल के मित्र और बैचमेट है अलपन बँधोपाध्याय…..        

पश्चिम बंगाल के चर्चित मुख्य सचिव (अब सेवानिवृत्त तथा राज्य सरकार के मुख्य सलाहकार) अलपन बँधोपाध्याय और छग के पूर्व मुख्य सचिव आर.पी. मंडल न केवल बैचमेंट है बल्कि अच्छे मित्र भी हैं। 87 बैच के दोनों आईएएस रहे हैं। अनपन असल में कम उम्र में आईएएस सेवा में आ गये थे। इसलिये वे इस 31मई को रिटायर हो रहे थे…बंगाल में प्रधानमंत्री की बैठक में मुख्य सचिव के शामिल नहीं होने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया गया और उन्हें 28 मई को एकपत्र भेजकर 31 मई को दिल्ली में पदभार सम्हालने कहा गया पर उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली और मुख्यमंत्री ने उन्हें प्रमुख सलाहकार बना दिया अब उन्हें केंद्र द्वारा नोटिस दिया गया है….।
दरअसल प्रदेश का प्रशासनिक अमला मुख्य सचिव से लेकर सभी बड़े अफसर सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन रहते हैँ और इसके मुखिया मुख्यमंत्री ही होते हैँ इसलिए उनकी अनुमति के बिना कोई अफसर राज्य नहीं छोड़ सकता….फिर प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार की अनुमति जरूरी होती है….अखिल भारतीय सेवा के नियोक्ता भले ही केंद्र होता है पर वे कॉडर के मामले में राज्य सरकार के प्रति भी जवाबदेह होते हैं। कितना आश्चर्य है कि 10 मई को ही ममता ने कोरोना महामारी के चलते केंद्र को पत्र लिखकर मुख्य सचिव को 3 महीने की सेवा वृद्धि बढ़ाने का अनुरोध किया था और 24 मई को केंद्र ने सेवा विस्तार की अनुमति दे दी थी फिर अचानक उन्हें केंद्र में प्रतिनियुक्ति के पीछे का राजनीतिक कारण समझा जा सकता है……? वैसे भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम 1954 के नियम 6(1) के तहत किसी राज्य के कैडर के अधिकारी की प्रतिनियुक्ति केंद्र दूसरे राज्यों या सार्वजनिक उपक्रम में संबंधित राज्य की सहमति से की जा सकती है पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम 1954 के तहत इस मुद्दे पर केंद्र -राज्य की सहमति नहीं होने की स्थिति में केंद्र का फैसला ही लागू होता है लेकिन अलपन के इस मामले में तो पश्चिम बंगाल से सलाह मशविरा किये बिना ही एक तरफा आदेश जारी कर दिया गया….?

प्रशासनिक फेरबदल
होना ही है जल्दी….    

छत्तीसगढ़ के मंत्रालय,पुलिस मुख्यालय,जिलाधीश तथा पुलिस अधीक्षकों की एक सूची जल्दी निकलेगी यह तय है। वहीं वन विभाग में भी एक बड़ी पदोन्नति होना है।
मंत्रालय के हालात यह है कि मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बाद केवल 2 एडीशनल चीफ सेक्ट्ररी है श्रीमती रेणु पिल्ले तथा सुब्रत साहू, एक एसीएस चितरंजन खेतान इसी माह सेवानिवृत्त हो जाएंगे तथा एक अन्य एसीएस व्ही बी आर सुब्रमणियम केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर है। 93 बैच के अमित अग्रवाल, 94 बैच की ऋचा शर्मा, 94 बैच की ही निधि छिब्बर प्रतिनियुक्ति पर हैँ तो इसके बाद 95 बैच की मनिंदर कौर द्विवेदी, गौरव द्विवेदी का नंबर आता है। फिर 97 बैच के सुबोध कुमार सिंह आते हैं तो प्रतिनियुक्ति पर है। तभी तो सेवानिवृत्त डॉ. आलोक शुक्ला से काम चलाया जा रहा है।
पुलिस विभाग का हाल ही कुछ ठीक,-ठाक नहीं है। 86 बैच के आईपीएस डीएम अवस्थी पुलिस महानिदेशक हैं तो संजय पिल्ले (88 बैच) जेल महानिदेशक हैं तो 88 बैच के ही आर .के विज अगले माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं। एक अन्य एडीजी मुकेश गुप्ता निलंबित हैं तो अशोक जुनेजा (89 बैच) नक्सल डीजी है। उनके बाद सीधे 92 बेच के पवन देव को पुलिस हाऊसिंग मण्डल की जिम्मेदारी दी गई है 94 बैच के जीपी सिंह, एसआरपी कल्लुरी अटैच की स्थिति में हैँ तो 1996 बैच के विवेकानंद की एडीजी पदोन्नति कभी भी हो सकती है। दीपांशु काबरा 97 बैच पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग के मुखिया बनाये गये हैं। 2001 बैच के आनंद छाबड़ा रायपुर आईजी के साथ ही गुप्तचर शाखा के मुखिया की दोहरी जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। डीआई जी आर.पी. पाल कभी भी आईजी बनाये जा सकते हैं। वहीं कुछ पुलिस कप्तान, डीआईजी बनाये जाने वाले हैं। शेख आरिफ हुसैन 2005 बैच को एसीबी का मुखिया बनाया गया है जबकि यह पद डीजी, एडीजी स्तर का है।
इधर रायपुर के कलेक्टर भारती दासन को मंत्रालय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है, राजनांदगांव के कलेक्टर टीपी वर्मा के बैचमेंट सेक्रेटरी हो गये हैं पर वे अभी भी राजनांदगांव के कलेक्टर हैं इसी तरह कुछ कलेक्टरों तथा एसपी के भी बदलने की चर्चा तेज है पर कब सूची जारी होगी यह देखना है।
अब वन विभाग की बात कर लेँ तो यहां भी पदोन्नति की राह अफसर तक रहे हैं। सीनियर एपीसीसीएफ जेईसी राव, उमादेवी (पत्नी व्ही. बीआर सुब्रमणियम) और के. मरुगन पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नत होने वाले हैं। वहीं एसीपीसीएफ के एक रिक्त पद पर सीनियर सीसीएफ, एसएसडी बडगैया को पदोन्नति मिलना तय माना जा रहा है। वहं सीसीएफ के तीन रिक्त पद पर अनुराग श्रीवास्तव, पी. टोप्पो, जावेद शुजाउद्दीन को पदोन्नत किया जा सकता है। 10 सीनियर डीएफओ को पदोन्नत कर सीएफ बनाया जा सकता है। जिनमें विश्वेश कुमार, एम. मर्सीबेला, आलोक तिवारी, प्रभात मिश्रा, मनोज पांडे आदि शामिल हैं।

और अब बस…

0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छग के 10 हजार गांव कोरोना मुक्त होने की खबर है।
0 छत्तीसगढ़ के बस्तर की बेटी नैना धाकड़ के माऊंट एवरेस्ट फतह कर प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही बन गई है।
0 किस चर्चित पुलिस अफसर के पुलिस मुख्यालय में अटैच होने की चर्चा तेज है।
0 कोरोना दिवंगत हुए मीडिया कर्मी के आश्रितों को छग सरकार 5 लाख की आर्थिक सहायता देगी।
0 एडीशनल एसपी की पात्रता रखने के बावजूद बिना पदोन्नति के डी एस पी सत्येंद्र पांडे, अजीत यादव,रामनारायण यादव तथा बलवीर सिंह रावत आखिर सेवानिवृत्त हो ही गये।

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