न इलाज है, न ही दवाई है… ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी आई है….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )    

धर्म की राजनीति का ध्वजारोहण देश देख रहा है, गांव, मोहल्ले, शहर के अस्पतालों से लेकर शमशान घाट तक की हालात किसी से छिपी नहीं है। अस्पतालों में ‘नो बेड’की तख्ती है, यदि किसी तरह अस्पताल में भर्ती हो गये तो वेटिंलेटर नहीं है, यदि उसकी भी व्यवस्था हो गई तो आक्सीजन नहीं है, यदि वह भी मिल गया तो दवाई, इंजेक्शन नहीं है… यदि मौत हो गई तो शमशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए लंबी प्रतीक्षा सूची है…। देश के अस्पतालों में सारे बिस्तर कोविड के मरीजों के लिए रिजर्व कर दिये गये हैं। कोविड के गंभीर मरीजों के लिए अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं। कोविड के अलावा दूसरे गंभीर बीमारियों से पीडि़तों का इलाज नहीं हो रहा है, अस्पताल के बाहर एम्बुलेंसों की कतारें हैं मरीजों को एम्बुलेंस में ही अपने भर्ती होने का इंतजार है, भर्ती को लेकर अनिश्चितता की स्थिति है। कुछ तो एम्बुलेंस में ही दम तोड़ रहे हैं, जिन्हें आईसीयू की जरूरत है. उन्हें जनरल बेड भी नहीं मिल पा रहा है, शवों को शमशान ले जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल रही है, शमशान घाटों में शवों के ढेर है… कहीं-कहीं तो शवों को जलाने लकडिय़ां कम पड़ रही है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रदेश गुजरात में शहर सूरत की खबर है कि वहां के एक विद्युत शवदाह गृह में इतने शव जले कि उसकी चिमनी पिघल गई, लोहे का प्लेट फार्म गल गया…। कोविड है या नहीं इसका सेम्पल लेने भी 2/3 दिन कोई घर नहीं आ रहा है कुछ जगह कोविड जांच सेम्पल किट की कमी की भी बात सामने आ रही है… जहां कोविड जांच की सुविधा है वहां लंबी लाईनें है… यदि भाग्यवश जांच भी हो गई तो रिपोर्ट कब तक मिलेगी इसकी गारंटी कोई नहीं ले रहा है…. हालात यह है कि म.प्र. के मुख्यमंत्री रहे राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह को देश के प्रसिद्ध राम मनोहर लोहिया अस्पताल से कोविड टेस्ट की रिपोर्ट एकत्रित करने कहा गया जबकि उन्होंने तो कोविड का सेम्पल ही नहीं दिया था..हालांकि बाद मे वे कोरोना पजिटिव्ह हो गये हैँ….    
देश धन्य हो गया है। मई 2014 के बाद से देश में केवल जुमलेबाजी चल रही है, केंद्र सरकार के पास न तो विजन है, न योजना…. बस जवानी जमा खर्च ही दिख रहा है केवल ‘मास्टर्स स्ट्रोक’ है वह भी हर बार का पिछले के मुकाबले घातक होता है। 2016 तक तो सिर्फ बातें होती रही वही अचानक नवंबर 2016 में पहला मास्टर्स स्ट्रोक ‘नोटबंदी’ आया…. लोग बैंकों के सामने लाईन लगाकर महिनों खड़े रहे 100 लोग लाईन में ही मर गये…। फिर जुलाई 2017 में आधी रात को जीएसटी लागू हुआ और एक महीने के भीतर लाखों बेरोजगार हो गये,हजारों कंपनियां बंद हो गई, फिर एक दिन अचानक ही ट्रंप साहब के जाने के बाद जनता कर्फ्यू , लॉकडाउन की देश व्यापी घोषणा हो गई, ट्रेन, बस बंद हो गईं और लाखों मजदूर देश में पलायन करने मजबूर रहे कुछ तो रास्ते में ही मर खप गये… फिर कोरोना की महामारी में वैक्सीन की चर्चा हुई, वैक्सीन पहले हेल्थ वर्कर तथा कोरोना वेरियर को लगाया गया फिर 60 साल के बुर्जुग तथा 45 साल के गंभीर मरीजों का वैक्सीनेशन शुरू हुआ,बाद में 45साल की उम्र वालों क़ो भी वेक्सीन देने की शुरुआत हुई…18 साल के लोगों को वैक्सीनेशन की मांग उठी पर बताया गया कि वैक्सीन की उपलब्धता तो होनी चाहिए…. अरे साहब पाकिस्तान, बंगलादेश में वेक्सीन भेजकर विश्व का नेता बनने की चाह में क्या भारत के नवजवानों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है…?
वैसे कोरोना के चलते भारत सरकार के पास एक साल का वक्त था अपनी कमजोरियों को दूर करने का… उन्हे पता ही होगा कि कोविड की लहर फिर लौटेगी लेकिन उसे प्रोपगैंडा में मजा आता है, दुनिया में नाम कमाने की बीमारी हो गई है…। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा 5 राज्यों में होने वाले चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं, नेहरू, राहुल गांधी, कांग्रेस, ममता बेनजी को कोसने में लगे है। कोरोना से मचे कोहराम के बीच वित्तमंत्री सीतारमण फिर राहत पैकेज की बात कर रही है, पिछले 20 लाख करोड़ का पैकेज कहां है, किसके पास गया कोई पूछने वाला नहीं है न ही कोई बताने की स्थिति में….।
आम जनता लाचार है, उसकी संवेदना शून्य हो गई है, उसे समझ में ही नहीं आ रहा है कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह तो बस अपनोँ को लेकर अस्पताल जा रही है और लाश लेकर श्मशान घाट जा रही है, जनता ने जनता होने का धर्म छोड़ दिया है और सरकार ने सरकार होने का धर्म… कुंभ मेला, श्रीराम मंदिर का शिलान्यास हो गया है, करोड़ो की मूर्ति बनी है, स्टेडियम बन रहा है, क्या अस्पताल नहीं बन सकता था, कांग्रेस की पिछली सरकार को कोसने वाले यह तो बताएं कि उनके कार्यकाल में कितने अस्पताल बने..। खैर आप तो, कुम्भ मेला,राम मंदिर, 370, तीन तलाक में ही फंसे रहिये और हिन्दु होने की अपनी भीतरी इच्छा को मन में पनपने देते – देते दुनिया को अलविदा कहते रहिये…।

कोरोना, छग और राजनीति….।    

छत्तीसगढ़ के 20 जिलों में कोरोना लॉकडाउन की हालात है, यहां की हालात भी सोचनीय है रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव की हालात ज्यादा खराब है, भाजपा के सांसद, सुनील सोनी, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक तो भूपेश सरकार पर छत्तीसगढ़ की कोरोना के कारण बिगड़ी स्थिति के लिए आरोप मढ़ रहे हैं… राज्यपाल के पास ज्ञापन देने जा रहे हैं, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, कभी क्रिकेट मैच कराने से कोरोना बढऩे का आरोप लगाते हैं तो कभी ‘सेस’ के पैसों का हिसाब मांगते हैं…। अरे भाई 15 साल आपकी भी छग में सरकार रही स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाने के कितने प्रयास हुए….? लोगों के अंधे होने, बच्चेदानी निकालने, नसबंदी से मौत की बात भूल गये…?चलो क्रिकेट मैच कराने से कोरोना फैला तो मुंबई सहित महाराष्ट्र, दिल्ली, पड़ोसी राज्य म.प्र. में इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर,गुजरात के अहमदाबाद,सूरत उत्तर प्रदेश के लखनऊ, प्रयागराज सहित बैंगलोर, हैदराबाद में कैसे कोरोना की नई लहर भारी पड़ रही है? एक आरोप यह भी है कि भूपेश बघेल और उनके कुछ सहयोगी असम प्रवास में व्यस्त रहे इसलिए कोरोना पर नियंत्रण नहीं लगाया जा सका… अरे म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा तो कोरोना में कई बार प्रचार करने बंगाल गये, देश तथा भाजपा के दो शक्तिशाली नेता नरेन्द्र मोदी, अमित शाह तो चुनाव प्रचार में ही लगे रहे तो देश में कोरोना विस्तार के लिये समय पर योजना बनाने वह दोषी नहीं है? रही बात छग के ‘सेस’ के हिसाब-किताब की तो यह तो सरकारी फंड में जमा हो रहा है इसका हिसाब किताब तो देर सबेर मिल ही जाएगा…प्रधानमंत्री केयर फंड का हिसाब तो आप लोग पूछ नहीं सकते..। कोरोना में प्रदेश के 9 सांसदों, 2 राज्यसभा सदस्यों ने प्रधानमंत्री फंड में पैसा दिया है, प्रदेश का जीएसटी का पैसा केंद्र सरकार ने रोक रखा है, धान खरीदी में करोड़ों खर्च हुआ है, राज्य सरकार के पास स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाने पैसों की भी कमी है फिर ढाई साल के कार्यकाल में लोकसभा चुनाव, नगरीय निकाय चुनाव, कोरोना की दस्तक से प्रदेश की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी है फिर भी भूपेश सरकार ने आपने सीमित संसाधनों से अस्थायी कोविड सेंटर, दवाइयों की उपलब्धता, निजी अस्पतालों में बेड सुरक्षित रखने, इलाज तथा कोविड जांच की दर तय करने, सरकारी खर्च में खूबचंद बघेल योजना में इलाज कराने की घोषणा की है। इसके बाद भी यदि भाजपा के नेताओं के पास कोई सुझाव हैं तो उसे सार्वजनिक करना चाहिए… आपात महामारी के समय राजनीति छोड़कर केंद्र पर 12 सांसद (9 लोस, 2 रास) दबाव बनाकर आर्थिक मदद प्रदेश सरकार को दिलाना चाहिए केवल राजनीति करने का यह समय नहीं है यह……न तो भाजपा के पास और न ही कांग्रेस के पास…।

और अब बस….

0 कोरोना के काल में ही 73 रुपये लीटर पेट्रोल 100 रुपये पार गया।
0 350 रुपये वाली रसोई गैस 900 रुपये के करीब हो गई।
0 देश की पांचवी अर्थ व्यवस्था से फिसलकर 164 वीं पायदान पर पहुंच गई।
0 मास्क लगायें, डिस्टेंसिंग का पालन करें, समय पर वैक्सीन लगवाएं क्योंकि यही बचाव का आधार है।

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