दुनिया अब आर्थिक वैश्वीकरण’ से ‘स्वास्थ्य वैश्वीकरण’ की दिशा में आगे बढ़ेगीः राष्ट्रपति कोविंद

नई दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का मानना है कि कोरोना के सर्वव्यापक असर के कारण पूरा विश्व समुदाय समझ चुका है कि यदि दुनिया के किसी भी कोने में लोगों के स्वास्थ्य पर संकट आता है तो उसकी चपेट में पूरा विश्व आ सकता है।

इस वैश्विक महामारी के बाद हम ‘आर्थिक वैश्वीकरण’ से ‘स्वास्थ्य वैश्वीकरण’ की दिशा में आगे बढ़ेंगे। राष्ट्रपति कोविन्द कहते हैं, महामारियों के व्यापक दुष्प्रभावों के मूल में इंसान-इंसान के बीच की पूरकता की कमी और सबक न सीखने की नासमझी रही है।

एक आपदा से निपटे और उसका सबक भूल आगे बढ़ लिए, फिर अगली आपदा पर जब अटके तब फिर से विचार करना शुरू किया। 1918 में आए स्पैनिश फ्लू के उदाहरण से उन्होंने कहा कि लाखों-करोड़ों जानें गंवा कर भी मानवता ने सबक नहीं सीखा और भौतिक विकास की एकांगी दौड़ में बढ़ती रही। राष्ट्रपति ने कोरोना संकट से जूझने में लोकतांत्रिक व्यवस्था के फायदे को भी स्पष्ट किया।

कहा, लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी प्रतिपक्ष की मौजूदगी होती है। इस महामारी ने हमारी लोकतांत्रिक मजबूती कई तरह से दिखाई है।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी होती है विपक्ष की मौजूदगी। कोरोना काल ने हमारी लोकतांत्रिक जड़ों की मजबूती की उपयोगिता कई तरह से दिखाई है। अधिनायकवादी (अथॉरिटेरियन) राज्य और लोकतांत्रिक राज्य की पारदर्शिता का फर्क आपने भी इस दौरान महसूस किया होगा।

भारत में विपक्ष सरकार का सहयोग करने के साथ ही, जहां उसे कमी दिखाई देती है, उसकी ओर भी बिना चूके इशारा करता है। अपने देश में यह हो पा रहा है। प्रधानमंत्री ने सभी मुख्यमंत्रियों से कई बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर सुझाव मांगे और ग्राम पंचायतों तक से विचार-विमर्श किया। इस जनभागीदारी ने लोगों के विश्वास को और मजबूत बनाया है। कोरोना जैसी अन-पहचानी महामारी में पारदर्शी काम की व्यवस्था व्यापक समाज के लिए बेहद लाभदायी साबित होती है।

कोरोना से दुनिया कितना सबक सीखेगी?

इस महामारी ने दुनिया के सभी देशों, संस्थानों व व्यक्तियों के जीवन और सोच को प्रभावित किया है। मैंने अपने जीवन में हर शख्स को इतने बड़े स्तर पर प्रभावित करने वाली और कोई चुनौती नहीं देखी। इससे पहले आपदाएं आईं-गईं, दुनिया उन्हें भुलाकर तात्कालिक प्राथमिकताओं की दिशा में ही आगे बढ़ी थी, लगता है, इस बार दुनिया को बदलना पड़ेगा।

कुछ लोगों ने कोरोना को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जबकि सरकार पूरे देश को एकजुट करके ये लड़ाई लड़ रही है। सरकार और समाज दोनों एकजुट होकर यह लड़ाई लड़ रहे हैं। किसी भी समुदाय विशेष को लक्ष्य करके जिम्मेदार ठहराना अनुचित है। अपवाद स्वरूप कुछ लोगों ने असावधानी का परिचय दिया है। ऐसी असावधानी के उदाहरण केवल किसी समुदाय विशेष से जुड़े नहीं हैं। सभी देशवासियों को मिल-जुलकर यह सुनिश्चित करना है कि एक भी अपवाद न रहे और वे इस दिशा में प्रयासरत हैं।

 

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