नक्सल आंतक से कभी उजड़ चुका गांव अब फिर गुलजार होने लगा..गांव में थाना,बीएसएफ कैम्प खुलने से ग्रामीणों का जगा विश्वास

बिप्लब् कुण्डू ,पखांजूर : नक्सल आंतक से कभी उजड़ चुका गांव अब फिर गुलजार होने लगा है। गांव में बड़े बुजुर्ग लौट आऐ है। वर्ष 2009 में नक्सली आंतक के चलते पूरा गांव उजड़ गया था। पर वर्ष 2018 में कैम्प लगने के बाद गांव वालो का भरोषा जगा और अब तो यह गांव सड़क मार्ग से भी जुड़ चुका है। गांव में विकास और कैम्प खुलने से सुरक्षा का विश्वास जगा तो ग्रामीण अपने गांव वापस लौटने लगे है। अब तक 25 से अधिक परिवार के बड़े बुजुर्ग गांव वापस आ गऐ है लोगों का विश्वास जगा तो गांव में एक दशक से बंद पड़ा महला का साप्ताहिक बाजार भी भरने लगा है।

वर्ष 2009 में जब क्षेत्र में नक्सली आंतक चरम पर था…

विकासखंड कोयलीबेड़ा का वन ग्राम महला वर्ष 2009 में अचानक उस समय चर्चा में आ गया जब पूरा का पूरा गांव उजड़ कर पखांजूर में शरण ले लिया। विकासखंड कोयलीबेड़ा में कई गांव महला से कही अधिक संवेदनशील है पर महला की पहला गांव था जहां के लोगों ने गांव छोड़ने का फैसला ले लिया और पूरा गांव के लोग ही गांव खेती बाड़ी अपने जानवर को छोड़ पखांजूर में शरण ले ली। वर्ष 2009 में जब क्षेत्र में नक्सली आंतक चरम पर था इसी दौरान 10 दिनों के अंदर ही महला गांव के चार लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी इस घटना का गांव में ऐसा आंतक छाया की पूरा का पूरा गांव पखांजूर में आ शरण ले ली।

सोचा नहीं था की कभी वे अपने गांव वापस लौट पाऐगे?

इस दौरान अधिकांश ग्रामीण तो अपना सारा सामान ही गांव में छोड़ आऐ थे जिसके बाद पुलिस बल की सुरक्षा में कई ग्रामीणों का सामान लाया गया। और इन ग्रामीणों को पखांजूर में सुरक्षा की दृष्टी से थाने के पास ही बसाया गया जो आज महला पारा के नाम से जाना जाता है। इस गंाव के ग्रामीणों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की कभी वे अपने गांव वापस लौट पाऐगे पर एक दशक बाद यह चमत्कार हो गया और ग्रामीण अपने गांव वापस लौटने लगे है।

अब तक गांव में 25 परिवार के बड़े बुजुर्ग वापस गांव लौट आऐ है और अपने पुराने खेती बाड़ी के काम में भी जुट गऐ है। इस वर्ष लगभग सभी लौटे परिवार ने अपनी खेती भी की और धान की फसल भी ली। अब अर्से से बंद पड़ा महला का बाजार भी भरने लगा है। गांव उजड़ने के बाद यह बाजार बंद हो गया था पर जैसे गांव के लोग लौटे तो दुकानदारों का विश्वास भी लौटा और पूर्व की तरह तो नहीं पर बाजार लगने की शुरूआत हो गई है।

वर्ष 2018 में इस उजड़ चुके गांव महला में ही बीएसएफ कैम्प खुला

कभी ग्रामीणों ने सपने में भी नहीं सोचा था की वे अपने गांव वापस लौट पाऐगे, पर यह चमत्कार हो ही गया। पहले परतापुर में थाना और कैम्प खुला इसके बाद वर्ष 2018 में इस उजड़ चुके गांव महला में ही बीएसएफ कैम्प खुला जिसके बाद ग्रामीणों का विश्वास जगा और कुछ ग्रामणों का गांव आना जाना शुरू हुआ।

वर्ष 2020 में महला गांव सड़क मार्ग से जुड़ गया

इसी दौरान शासन की ओर से इस क्षेत्र के विकास की ओर शासन ने /यान दिया पहले कोटरी नदी में पुल बना और सड़क निर्माण का कार्य शुरू हुआ वर्ष 2020 में महला गांव सड़क मार्ग से जुड़ गया जिसके बाद ग्रामीणों का विश्वास और पक्का हो गया और लगभग सभी घरों में बड़े बुजुर्ग अब अपने गांव वापस लौट आऐ है। और अपने पुराने खेती बाड़ी के काम में भी लग गऐ है।

इस वर्ष लगभग सभी परिवार के लोगों ने गांव में खेती की है। एक और बड़े बुजुर्ग गांव वापस लौट रहे है वहीं गांव का स्कूल और आंगनबाड़ी बंद है क्योंकी बच्चें आज भी पखांजूर में ही रह रहे है। गांव छोड़ पखांजूर पहुंचे अधिकांश परिवार के युवाओं को पुलिस ने सहायक आरक्षक बना दिया है यही कारण है की युवा जो अब पुलिस में है इस कारण गांव नहीं लौट रहे। पर उनके माता पिता गांव जरूर लौट चुके है।

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