हो गया बागे सियासत, पतझड़ी अंदाज का…. शाख से पत्ते गिरेंगे, और हवा हो जाएंगे….

शंकर पांडे  ( वरिष्ठ पत्रकार )   

छत्तीसगढ़ में राजभवन और सरकार के बीच तनाव तो नहीं कह सकते हैं पर दोनों के संबंध ठीक-ठाक नहीं चल रहे हैं और इसके पीछे राज्यपाल अनुसूइया उइके तथा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच सीधा संवाद नहीं होना एक कारण हो सकता है तो राजभवन और मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों के बीच भी तालमेल की कमी ही परिलक्षित हो रही है। वैसे राजभवन और सरकार के बीच पहले कुछ बीच के अफसर, पत्रकार तालमेल बैठाए रखते थे पर लगता है उस परंपरा का भी हास होता जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में जब पहली सरकार अजीत जोगी की बनी थी तब देश में भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और पहले राज्यपाल बने थे जार्ज फर्नांडीज की समता पार्टी से जुड़े दिनेश नंदन सहाय, बिहार के पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस थे तो अजीत जोगी पूर्व नौकरशाह थे कांग्रेस, भाजपा तथा समता पार्टी के होते भी तालमेल अच्छा रहा। बाद में भाजपा के डॉ. रमनसिंह मुख्यमंत्री बने तो केंद्र में 10 साल कांग्रेस नीत सरकार थी और उसके मुखिया थे डॉ. मनमोहन सिंह … उस समय सेना से जुड़े लेफ्टिनेट जनरल के एम सेठ, आईबी के पूर्व संचालक नौकरशाह ईएसएल नरसिम्हन तथा रायपुर में ही कभी कमिश्नर रहे शेखर दत्त राज्यपाल रहे पर भाजपा के तब के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तथा तब के राज्यपालों के बीच संबंध अच्छे ही रहे। बाद में केंद्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार 14 में बनी तो भाजपा की पृष्ठभूमि के राजनेता बलरामदास टंडन राज्यपाल बने तो वर्तमान में पूर्व कांग्रेसी रही तथा बाद में भाजपा की तरफ से राज्यसभा सदस्य बनी अनुसूइया उइके राज्यपाल हैं। म.प्र. के छिंदवाड़ा के एक गांव की मूल निवासी अनुसूईया उइके अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री रही उस समय वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत भी राज्यमंत्री थे। जाहिर है कि अनुसूइया उइके छत्तीसगढ़ के लिए कोई नया नाम नहीं है फिर वर्तमान में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्यों के राजनीतिक गुरू अर्जुन सिंह/दिग्विजय सिंह रहे हैं। ऐसे में तो राज्यपाल से तालमेल और बेहतर होने की संभावना थी।
बहरहाल छग की संवैधानिक प्रमुख तथा सरकार के बीच कुछ मामलों को लेकर विरोधाभास की चर्चा की जाए, गरियाबंद जिले के सूपेबेड़ा में अज्ञात बीमारी के चलते कई ग्रामीणों की मौत के मामले में पहली बार गवर्नर ने कहा था कि हेलीकाप्टर सरकार मुहैया नहीं कराएगी तो वे सड़क मार्ग से जाएंगी, बाद मेंराज्य सरकार ने न केवल हेलीकाप्टर मुहैया कराया बल्कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी महामहिम के साथ सुपेबेड़ा गये, उसके बाद पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति बलदेव भाई शर्मा की राज्यपाल ने नियुक्ति की और विवाद उभरा….। बाद में राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक राज्यपाल के पास भेजा वह अभी भी अहस्ताक्षरित है। मरवाही पेण्ड्रा को जिला बनाने के बाद मरवाही को नगर पंचायत घोषित करने के निर्णय पर भी महामहिम ने आपत्ति प्रकट की, उनका मानना है कि ऐसा करने से आदिवासी वर्ग का आरक्षण कम होता है खैर बाद में सरकार ने नगर पंचायत की जगह नगर पालिका का दर्जा देने की घोषणा कर दी। हाल फिलहाल प्रदेश की कानून व्यवस्था खासकर बलात्कार, हत्या और नक्सली मामले को लेकर गवर्नर द्वारा बुलाई गई बैठक में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू द्वारा कोरोन्टाईन होने के कारण नहीं आने की राजभवन में सूचना भेजने के बाद बैठक स्थगित हो गई वहीं गृहमंत्री उसी दिन मुख्यमंत्री द्वारा आहूत कानून व्यवस्था की बैठक में शामिल होने से फिर विवाद उभरा है। इसी बीच राजभवन के सचिव सोनमणी वोरा की जगह अमृत खलखो की नियुक्ति, एक अन्य महिला अफसर रोक्तिमा यादव को हटाने की खबर के बाद राजभवन द्वारा राज्य सरकार के मुखिया को पत्र लिखना भी चर्चा में है। सवाल यह है कि गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, राजभवन की बैठक में नहीं गये, यह उनका निर्णय होगा इसमे मुख्यमंत्री कहां दोषी है? राजभवन का सचिव बदलने के पीछे सोनमणी वोरा का प्रतिनियुक्ति में केंद्र में जाना भी हो सकता है… फिर किसी मत्री का सचिव कौन बने यह मुख्यमंत्री भूपेश की रूचि हो सकती है पर राज्यपल के सचिवालय नियुक्ति के पीछ मुख्यमंत्री की रूचि होगी ऐसा लगता नहीं है। दरअसल मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री सचिवालय तथा राजभवन सचिवालय के बीच का यह मामला लगता है। यदि राजभवन को विश्वास में रखकर सचिव बदला जाता तो कौन सी कयामत आ जाती, आखिर राज्यपाल के सचिव की सीआर तो मुख्य सचिव ही लिखते हैं… । दरअसल बीच के लोगों के निर्णय में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनाव की खबरें उछाली जा रही है, अच्छा हो कि प्रदेश के संवैधानिक मुखिया और सत्ता प्रमुख के बीच सीधे संवाद होते रहना चाहिए इससे दोनों के अनुभवों का लाभ छत्तीसगढ़ के लोगों को हो सकेगा तथा बीच के लोगों की भूमिका पर भी रोक लगाई जा सकेगी।

अमित, ऋचा का नामांकन निरस्त… .   

छत्तीसगढ़ की एकमात्र मरवाही विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है। कांग्रेस, भाजपा के प्रत्याशी तय है पर जोगी कांग्रेस से अजीत जोगी के पुत्र अमित तथा बहु ऋचा जोगी (साधु) ने नामांकन दाखिल किया था ।निर्वाचन अधिकारी ने लम्बी बहस के बाद दोनों का नामांकन पत्र निरस्त कर दिया है l दोनों वैसे दोनों के जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद चरम पर था ।अमित जोगी के 31अक्टूबर 2013में बने जाति प्रमाण पत्र को राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने 15 अक्टूबर को निरस्त कर दिया है इससे उनके चुनाव लड़ने को लेकर अब संभावना नहीं के बराबर ही मानी जा रही थीl
मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही अजीत जोगी की जाति को लेकर विवाद शुरू हुआ जो अभी भी उनके निधन के बाद भी जारी है। जाहिर है जोगी की जाति का सीधा असर अमित पर पडा …। इधर अमित की पत्नी ऋचा जोगी (साधु) के परिजन भी गोड़ आदिवासी थे। इस हिसाब से मुंगेली जिले से ऋचा को भी हाल ही में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र मिल गया है और संतराम नेताम की शिकायत पर मुंगेली जिला स्तरीय छानबीन समिति ने ऋचा के जाति प्रमाण पत्र को निलंबित कर दिया है साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि जब तक मामले में हाई पावर कमेटी का फैसला नहीं आता तब तक इस प्रमाण पत्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इस हिसाब से तो उनका मरवाही से चुनाव लडऩा मुश्किल लग रहा था । बहरहाल अमित-ऋचा के चुनाव नहीं लडऩे का निर्णय अब निर्वाचन अधिकारीने ले लिया है ज्ञात रहे कि अजीत जोगी परिवार का मरवाही में 19 साल से कब्जा रहा है।पहली बार छग बनने के बाद मरवाही चुनाव में जोगी परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं होगा l

और अब बस….
0 म.प्र. की मुख्य चुनाव अधिकारी श्रीमती वीरा राणा, अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर में एडीशनल कलेक्टर रह चुकी हैं तो उनके पति संजय राणा उस समय एस.पी. रायपुर थे।
0 मोदी सरकार आने के पहले बैंकों में फिक्स डिपाजिट पर 9.5 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है आजकल 5.5 प्रतिशत हो गया है। बुजुर्ग परेशान हैं… अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ा है क्या यह बयान सही है?
0 रायपुर पुलिस की ड्रग माफियाओं के खिलाफ मुहिम का स्वागत किया जा रहा है।
0 आदिवासी बाहुल्य मरवाही विधानसभा उपचुनाव की जिम्मेदारी 2 अग्रवाल…. अमर अग्रवाल (भाजपा), जय सिंह अग्रवाल (कांग्रेस) को सौंपी गई है। क्या दोनों पार्टियों में कोई बड़ा आदिवासी नेता इस योग्य नहीं समझा गया।
0 छत्तीसगढ़ में पुलिस अधीक्षकों एक तबादला सूची कुछ समय से लंबित है। समझा जा रहा है कि नवरात्री में यह निकलेगी।

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