कचहरी से बना था थाना कोतवाली,अब ढहा कर बनी नई बिल्डिंग..

 (किश्त 86)

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कई इमारतें आज भी अंग्रेजों से जंग की गवाही देती हैं।इन इमारतों पर कभी अंग्रेजों के कामकाज और रहने का ठिकाना हुआ करता था।इन्हीं में पुरानी कोतवाली भी थी,जहां की दीवारें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की वीरता की गाथा कहती थीं।अंग्रेजों के जुल्म को बयां करती थीं,आजादी के दीवानों को कोतवाली में रखा जाता था,स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को यहां यातनाएं भी दी जाती थी
हालांकि स्मार्ट सिटी,नगर निगम ने ट्रैफिक व्यवस्था को सुगम करने के लिए इसे ढहा दिया..!नई बिल्डिंग में कोतवाली संचालित कर दी गई है, रायपुर की सिटी कोतवाली थाने को लेकर इतिहासकार डॉ रमेंद्र नाथ मिश्रा ने बताया कि “1802 में अंग्रेजों ने कचहरी केतौर पर इस बिल्डिंग को बनाया था।इसके निर्माण के लिए रायपुर के पुराने किले मेंलगे सफलिश पत्थरों का इस्ते माल किया गया था।कोत वाली ब्रिटिशकालीन कला का बेहतरीन नमूना था।100 साल बाद 1903 में इसे पुलिस विभाग के सुपुर्द कर दिया गया।तब से लेकर यहां कोतवाली संचालित हो रही थी।रायपुर अंग्रेजों के समय नागपुर कमिश्नरेट के अंतर्गत आता था।उस दौरान बिंद्रानवागढ़ और भखारा में भी दो पुलिस चौकियां थीं,आजादी के इतिहासकारों की मानें तो जब देश में आजादी की आग धधकी तो उसकी लपटें रायपुर तक भी पहुंची थी,यहां लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया।आंदोलन में शामिल कई सेनानियों को पुलिस ने कोतवाली थाने में ही बंदी बनाकर रखा था।यहां यातनाएं भी दी जाती थी।उस दौरान पं. रविशंकर शुक्ल,वामनराव लाखे, माधवराव सप्रे,सुंदरलाल शर्मा,खूबचंद बघेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी कोतवाली के हवालात में कई दिन गुजारे।बंदियों को रखने के लिए बंदी गृह भी बनाया गया,असहयोग आंदोलन के दौरान सेनानी यहीं बंद रहे थे।सन1900 से पहले जब यह कचहरी भवन था,तब 1857 क्रांति की सुनवाई यहीं होती थी, वर्तमान में इस इमारत को ढहा दिया गया है।थाने की पुरानी इमारत को पहले ट्रैफिक की समस्या को देखते हुए गिरा दिया गया।अब नई इमारत है,सिटी कोतवाली पुराने जमाने से ही शहर का प्रमुख चौराहा रहा है।धार्मिक,राजनैतिक श्रमिक,छात्र गतिविधियों के कारण कोई भी जुलूस निकले, इसी चौक से होकर जाता है।पुरानी इमारत के तौर पर 15 अगस्त 1998 से सिटी कोतवाली थाना को पुरातात्विक महत्व का भवन घोषित किया गया था इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्र नाथ मिश्रने भी ऐतिहासिक भवन को तोड़े जाने का विरोध किया था।उन्होंने कहा था कि इन धरोहरों को संरक्षित करना चाहिए,ये हमारे आजादी के परवानों की मुख्य धरोहरों में से एक थी।

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