शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
उत्तरप्रदेश में तो कांग्रेस, भाजपा, बसपा तथा समाजवादी पार्टी ब्राम्हणों को रिझाने में लगी है।विधानसभा चुनाव में ब्राम्हणों को साथ लेकर चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत कर रही है। पर अविभाजित मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में तो ब्राम्हणों की उपेक्षा का दौर चल रहा है। म.प्र. में तो मंत्रिमंडल में कुछ ब्राम्हणों को शामिल भी किया गया है। पर छत्तीसगढ़ के मौजूदा भूपेश मंत्रिमंडल में तो केवल एक रविन्द्र चौबे को प्रतिनिधित्व मिला है, वैसे तो विकास उपाध्याय को भी संसदीय सचिव बनाया गया है। आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग की बाहुल्यता के छत्तीसगढ़ में ब्राम्हणों की संख्या अन्य समाज के मुकाबले कम है पर क्या राजनीति में इस समाज को संरक्षण की जरूरत नहीं है….?
अविभाजित म.प्र. में राजनीति में ब्राम्हणों का वर्चस्व हुआ करता था। पर आज की राजनीति में उनकी संख्या और रसूख में कमी आई है। एक नवम्बर 1956 को नये म.प्र. के गठन के बाद 1990 तक 5 ब्राम्हण मुख्यमंत्रियों ने लगभग 20 सालों तक शासन किया। उसके बाद के 2 दशकों के बीच म.प्र. का विभाजन हुआ, एक नवम्बर 2000 को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बना। कोई मुख्यमंत्री ब्राम्हण तो नहीं बना सका , म.प्र. के शिवराज मंत्रिमंडल में केवल पांच ब्राम्हण मंत्री रहे तो छत्तीसगढ़ के डा. रमनसिंह मंत्रिमंडल में आखरी कार्यकाल में तो एक भी ब्राम्हण मंत्री शामिल ही नहीं था……!
पुराने म.प्र.में जब महाकौशल ,छत्तीसगढ़, विंधप्रदेश तथा भोपाल को मिलाकर नये म.प्र. का गठन किया गया। तब विंधप्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ल, भोपाल के मुख्यमंत्री पं. शंकरदयाल शर्मा, मध्यभारत के मुख्यमंत्री तखतमल तथा महाकौशल विंधप्रदेश की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कप्तान अवधेश प्रताप सिंह ने पं. रविशंकर शुक्ल का नेतृत्व स्वीकार किया और वे 1956 में प्रथम मुख्यमंत्री बने। वही म.प्र. के आखरी ब्राम्हण मुख्यमंत्री 1990 में पं. श्यामाचरण शुक्ल बने। बीच के वर्षों में पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र भी मुख्यमंत्री रहे तो मोतीलाल वोरा ने भी मुख्यमंत्री पद का दायित्व सम्हाला। 1977 में जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो ब्राम्हण समाज के ही कैलाश जोशी ने भी यह दायित्व सम्हाला था। पं. रविशंकर शुक्ल ने 1 नवम्बर 1956 में 31 दिसम्बर 56 (करीब 61 दिन) पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र 30 सितंबर 63 से 29 जुलाई 67 (1339दिन) पं. श्यामाचरण शुक्ल 26 मार्च 69 से 28 जनवरी 72 (1092 दिन) दूसरी बार 23 सितंबर 75 से 29 अप्रैल 77 (494 दिन) तीसरी बार 1 दिसम्बर 89 से 1 मार्च 90 (86 दिन), मोतीलाल वोरा 13 मार्च 85 से 13 फरवरी 88 (1068 दिन) दूसरी बार 25 जनवरी 89 से 9 दिसम्बर 89 (318 दिन) तक यह दायित्व सम्हाला।
वहीं अविभाजित मप्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार आपातकाल के बाद बनी तो ब्राम्हण समाज के कैलाश जोशी मुख्यमंत्री बने। 26 जून 77 से 17 जनवरी 78 (206 दिन) तक वे मुख्यमंत्री रहे।
एक जनवरी 2000 को मध्यप्रदेश से विभाजित होकर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बना तब से म.प्र. और छत्तीसगढ़ में किसी भी ब्राम्हण को मुख्यमंत्री बनने का अवसर नहीं मिला है। वैसे कहा जाता है कि अविभाजित म.प्र. में ब्राम्हणों का राजनीति में वर्चस्व का कारण स्वतंत्रता संग्राम में विशेष भूमिका का होना था। 1957 से 1967 तक कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक उच्च जाति के होते थे। उनमें से भी 25 फीसदी ब्राम्हण होते थे। श्यामाचरण शुक्ल जब 1969 में मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रीमंडल के 40 मंत्रियों में 23 ब्राम्हण थे। इधर 1980 के दशक में शुक्ल बंधुओं (श्यामाचरण-विद्याचरण शुक्ल) के राजनीति वर्चस्व से मोतीलाल वोरा, म.प्र. से सुरेश पचौरी जैसे ब्राम्हण नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की। बाद में मोतीलाल वोरा म.प्र. के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, उ.प्र. के राज्यपाल बने तथा बाद में अ.भा. कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी कई सालों तक रहे। वहीं सुरेश पचौरी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। वैसे अर्जुन सिंह ने भी ब्राम्हण समाज की उपेक्षा नहीं की यह तय है। 1980 में जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने तो उस समय की 320विधायकों की विधानसभा में 50 ब्राम्हण विधायक थे। 1980 की विधानसभा टिकट वितरण में अर्जुन सिंह की बड़ी भूमिका थी।
छत्तीसगढ़ में अविभाजित म.प्र. के समय से मुख्यमंत्री तो ब्राम्हण समाज के बनते रहे वहीं मंत्रिमंडल में भी ब्राम्हणों का अच्छा खासा प्रतिनिधित्व रहा। मथुरा प्रसाद दुबे, रामेश्वर शर्मा, रामगोपाल तिवारी, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, किशोरीलाल शुक्ला, शारदाचरण तिवारी, मनहरण लाल पांडे, श्रीधर मिश्र, पवन दीवान, वीरेन्द्र पांडे, डा. कन्हैयालाल शर्मा, प्रेमप्रकाश पांडे, रविन्द्र चौबे, सत्यनारायण शर्मा, अमितेष शुक्ल, विधान मिश्रा आदि म.प्र. से छत्तीसगढ़ राज्य में मंत्रिमंडल में शामिल रहे।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पं. रविशंकर शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, द्वारिका प्रसाद मिश्र (कसडोल से उपचुनाव विजयी होकर) मुख्यमंत्री बने तो मथुराप्रसाद दुबे को लगातार 7 बार विधानसभा चुनाव में विजयी होने पर विधानपुरूष का दर्जा मिला। कई सालों तक मंत्रिमंडल के सदस्य रहे मथुरा प्रसाद दुबे, श्रीधर मिश्र के साथ ही स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, मंत्रिमंडल के सदस्य रहने के साथ अविभाजित म.प्र. से छत्तीसगढ़ प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष रहे, छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ब्राम्हण समाज से ही प्रेमप्रकाश पांडे विधानसभा अध्यक्ष रहे तो बद्रीधर दीवान ने विस उपाध्यक्ष का पदभार सम्हाला। वही रविन्द्र चौबे भी कई मंत्रिमंडल में मंत्री रहे तो वर्तमान में छग मंत्रीमंडल में शामिल हैं। वैसे वे छग में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
वहीं डा. रमनसिंह के मंत्रिमंडल में आखरी पारी में तो एक भी ब्राम्हण को स्थान नहीं दिया गया है। वैसे एक बात तो तय है कभी राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों में सक्रिय ब्राम्हण समुदाय उपेक्षा आजकल तेजी पर है। अन्य समाज या जातिवर्ग के लोग तो सक्रिय, एकजुट होकर अपना अधिकार मांगने प्रयत्नशील है पर ब्राम्हण समाज में एकजुटता की कमी परिलक्षित हो रही है।
किशोरीलाल शुक्ला, शारदाचरण तिवारी, डा. कन्हैयालाल शर्मा अभी भी अपने कार्यों के कारण पहचाने जाते थे। तो सहकारिता के क्षेत्र में रामगोपाल तिवारी, सत्यनारायण शर्मा, राधेश्याम शर्मा, आदि का भी अपना स्थान रहा।
जहां तक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले अविभाजित म.प्र. की बात करें तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यज्ञदत्त शर्मा, कुंजीलाल दुबे, काशी प्रसाद पांडे ,श्रीनिवास तिवारी का अपना स्थान रहा है। वही म.प्र. में सत्यव्रत चतुर्वेदी, सुरेश पचौरी, कैलाश जोशी, नरोत्तम मिश्रा, अनूप मिश्रा, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल और गोपाल भार्गव जैसे ब्राम्हण नेता सक्रिय है। म.प्र. की राजनीति में पूर्व मंत्री स्व. ओंकार तिवारी (जबलपुर) का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान में भी कांग्रेस से सत्यनारायण शर्मा, अमितेश शुक्ला, अरुण वोरा, शैलेष पांडे आदि चुने गए हैं पर इन्हें मंत्रीमंडल में शामिल नही किया गया है।
अटलजी सबसे बड़े ब्राम्हण नेता.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को म.प्र. भारत ही नहीं विश्व के सबसे बड़ा ब्राम्हण नेता कहा जाए तो अतिशोयिक्त नहीं होगी। उन्होंने ही अपने प्रधानमंत्रित्व काल में छत्तीसगढ़, उतराखंड और झारखंड को पृथक राज्य का तोहफा दिया। पर उन्होंने कभी भी जाति के आधार पर ब्राम्हणों को आगे नहीं बढ़ाया। दरअसल वे जातिवादी राजनीति के पक्षधर ही नहीं है। यह बात और है कि उनकें भांजे और भतीजी राजनीति में उतरे। उनकी भतीजी करूणा शुक्ल विधायक सांसद बनकर राष्ट्रीय राजनीति में पहुंच गई थी पर बाद में भाजपा से अलग हो गई थीं। सूत्र कहते है कि 1980 के दशक के बाद जातिगत राजनीति का बोलबाला हो गया और सामंतशाही ने ब्राम्हणों को आगे बढ़ने नहीं दिया गया। ब्राम्हणों के खिलाफ तमिलानाडू से शुरू हुआ आंदोलन दूसरे प्रदेशों में पहुंचा फिर आरक्षण और अन्य कारणों से ब्राम्हणों की स्थिति भी कमजोर होती गई और इसका असर म.प्र. सहित छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है। जाहिर है कि संख्या के आधार पर होने वाली राजनीति में ब्राम्हणों के लिये नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है। वैसे ब्राम्हण समाज की एकता भी इसमें बाधक है। कान्यकुब्ज, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, जिजोतिया, राजस्थानी , सनाड्य, रीवांपारी ब्राह्मणआदि मतभेद भी एकता में बड़े बाधक है।
नंदकुमार बघेल,ब्राह्मण विरोध और अर्जुनसिंह…...
हाल ही में छग के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल के उप्र में ब्राम्हण विरोधी बयान, भूपेश बघेल का अपने ही पिता के बयान को गलत ठहराना, पिता की छग पुलिस द्वारा गिरफ्तारी, जेल जाना फिर जमानत में रिहा होना चर्चा में है, वैसे नन्द कुमार बघेल पहले भी जोगी शासन काल में एक चर्चित पुस्तक लेखन के नाम पर जेल जा चुके हैं तब भूपेश, जोगी मंत्रिमंडल में शामिल थे। भूपेश का अपने पिता से मतभेद काफी समय से है पर वे कर भी क्या सकते हैं । दरअसल1970 के उत्तरार्ध में बौद्ध धर्म अपनाने के बाद जातिगत आधार पर नंदकुमार बघेल का नजरिया कुछ सख्त हो गया है। 86वर्षीय पिता को अब समझना अब भूपेश बघेल के बस में नही है, बहरहाल इस अवसर पर भूपेश के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह की याद इसी तारतम्य में आ रही है….! अर्जुन सिंह के पिता को किसी मामले में सजा हो गई थी, बाद में उनका निधन भी हो गया। जब अर्जुन सिंह पहली बार विधायक चुने गए तो पिता के उसी मामले को लेकर उन्हे भी निशाना बनाया गया था तब अर्जुनसिंह ने एक ही जवाब दिया था….” मेरी जानकारी में हमारे समाज में पिता चुनने की छूट किसी बेटे को नही रहती है….!” बस इस बयान के बाद वह मामला समाप्त हो गया… अब पिता के ब्राह्मणवाद विरोधी मानसिकता के लिए भूपेश बघेल को तो ज़िम्मेदार ठहराया नही जा सकता है….?
और अब बस…
0राजू ने एक लड़की को कमल का फूल दिया। लड़की ने उसे एक थप्पड़ रसीद किया। राजू नेबोला
– मैं तो भाजपा का प्रचार कर रहा हूं। लड़की- मैं भी कांग्रेस का प्रचार कर रही हूं।
0एक डाक्टर साहब से मारपीट के मामले में महिला आयोग के एक कर्मचारी की गिरफ्तारी, जेल जाने के पीछे एक बड़े रिश्तेदार पुलिस अफ़सर की भूमिका की जमकर चर्चा है।
0रायपुर के एसएसपी विजय यादव के अचानक हटाने और बद्री मीणा को नवें जिले में एसपी बनाने के पीछे किसने प्रमुख भूमिका निभाई है….?
0छग की लगभग 72 तहसील में सूखे के हालात दिखाई दे रहे हैं।
0छग के कुछ लोग राहुल गांधी से वैष्णव देवी यात्रा के दौरान मिले और भूपेश बघेल सरकार की तारीफ की गई… इस को लेकर चर्चा कर रहे हैं। 15दिन पहले इन लोगों ने रिजर्वेशन करा लिया था, तब तो राहुल का कार्यक्रम ही तय नही हुआ था….!