{किश्त120 }
‘द कश्मीर प्रिंसेस’ एयर इंडिया के स्वामित्ववाला चार्टड लाकडीह एल 749 ए विमान 11अप्रैल 1955 को एक बम विस्फोट से दक्षिण चीन सागर में क्षति ग्रस्त हो गया,इसमें 16लोग मारे गये थे,असल निशाना तब के चीनी पी एम चाऊ एन लाई थे,पर एक मेडि कल इमरजेंसी के कारण वे उड़ान से चूक गये थे या जानबूझ कर विमान में सवार नहीं हुए थे।विमान दुर्घटना में 3 लोग बच गये थे,उनमें एक एमसी दीक्षित वे पहले नागरिक थे जिन्हें ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया था। छत्तीसगढ़ से उनका पुराना नाता था।यह विमान सांताक्रूज एयर पोर्ट बाम्बे (तब मुंबई नहीं) से उड़ान भरा था,काईटेक एयरपोर्ट (हांककांग) होकर केमायोरन एयरपोर्ट जका र्ता इंडोनेशिया जाना था। जकार्ता में एशिया-एफो वाडुंग सम्मेलन के लिए चीनी,यूरोपीय प्रतिनिधियों, मुख्यरूप से पत्रकारों को लेकर यह विमान हांगकांग के लिए प्रस्थान किया था। विमान विस्फोट का कारण उसमे रखा एक टाईमबम माना जाता है। विस्फोट के पीछे चीनी पीएम चाऊ एन लाई की हत्या ही थी। 19 67 में सीआईए के एक भूतपूर्व एजेंट जानस्मिथ ने स्वीकार किया था कि एक चीनी सीआईए के लिए काम करता था उसके ही जरिये कश्मीर प्रिंसेस विमान में टाईम बम रख वाया गया था,वैसे अमरीका लगातार इसका खंडन भी करता रहा है पर सूत्र कहते हैं कि अमरीका गुप्तचर एजेंसी सीआईए,एशियाई सम्मेलन में बाधा डालना चाहती थी,चीनी पीएम इस षडयंत्र से बच ही गये…? विमान दुर्घटना में बचे सह पायलेट एमसी दीक्षित का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। पं.रविशंकर शुक्ल की एक बहन कौशल्या थी जिनके पुत्र रामेश्वर प्रसाद तिवारी का विवाह श्रीमती किशोर मालती से हुआ था उन्हीं के 3 भाई जगदीशचंद्र दीक्षित (पूर्व आईजी, कुलपति,रवि शंकर विश्वविद्यालय) एम सी दीक्षित (अशोकचक्र से सम्मानित पहले नागरिक ) तथा वाई सी दीक्षित (पूर्व डीआई जी) थे। एमसी दीक्षित की पत्नी श्रीमती कौशल,मप्र में विधानपुरूष के रूप में चर्चित मथुरा प्रसाद दुबे,पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसादशुक्ल के निकटीय रिश्तेदार थीं।करीब 6/7 साल पहले ही रायपुर के एक विवाह समा रोह में स्वेतवर्ण, लंबीसफेद दाढ़ीवाले,एमसी दीक्षित से मेरी मुलाकात हुई,सहायक पायलेट के रूप में इन्होंने अदम्य साहस से मौत से जिंदगी छीन ली थी। एयर इंडिया का वह विमान 11 अप्रैल 55 को दक्षिण चीन सागर के उपर बम विस्फोट के बाद सागर में गिर गया था। चीनीन्यूज एजेंसी ‘शिन्हुआ’ के मुताबिक सन 2004 में चीन में कश्मीर प्रिंसेस से जुड़ी राजनीतिक फाईल से गोपनीयता का पर्दा उठाया गया जिससे पता चला कि चीन के तब के पीएम चाऊ एन लाई ही इस हमले में निशाना थे।पर उस विमान वे सवार ही नहीं हुए थे। दूसरा विश्वयुद्धशुरू होने ही वाला था,उस समय एम सी दीक्षित वकील थे। बाद में मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर वायुसेना में ‘फाइटर पायलेट’ के रूप में काम सम्हाला।15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद एक निजी एयरलाईंस में नौकरी कर ली जो बाद में एयर इंडिया के रूप में ही अस्तित्व में आई।बाडूंग की उड़ान सहायक पायलेट बतौर उनकी आखरी उड़ान थी।इसके बाद उन्हें कप्तान बनाया जाना तय था।करीब 6/7 साल पहले रायपुर में एक निजी प्रवास पर आये एमसी दीक्षित ने बताया था कि 11अप्रैल 1955 हांग कांग से 0425 टीएमटी पर उड़ान भरी,हमें उड़ते हुये 5 घंटे हुए थे तभी 0945 टी एमसी पर हमे विस्फोट की आवाज सुनाई दी। कुछ सम्हलते तब तक विमान के तीसरे इंजन में आग लगगई थी,आग का धुआं केबिन में फैलने लगा था। हमने तीन आपातकालीन संदेश भी नूतनद्वीप के ऊपर होने का दिया,हमारा संदेशवाहक सिस्टम बंद पड़ गया। कुछ ही देर में हमने स्वयं को समुद्र में पाया,किसी तरह हम समुद्र की सतह पर पहुंचे।अपनी मौत निश्चित ही नजर आ रही थी।तभी आसपास ग्राऊंड मैंटेनेंस इंजीनियर अनंत कारनिक और एक नैवीग्रेटर जगदीश पाठक को भी पाया तो, हिम्मत बढ़ी,करीब 12 घंटे तक किसी तरह हम समुद्र में एक दिशा की ओर तैरते रहे। पानी ठंडा नहीं था यह सौभाग्य की बात थी।सुबह -सुबह, सूरज की लालिमा के साथ ही कुछ दूरी पर जमीन दिखाई दी। कुछ इंडोनेशियाई मछुवारों की हम पर निगाह पड़ी,उन्होंने हमें बचाया,खाना खिलाया, पहनने को कपड़े भी दिये और संदेश भी भेजा। बाद में हमें एक ब्रिटिश फ्रिगेट ने वहां से निकाला,हांगकांग ले जाकर सिंगापुर के एक अस्पताल में भर्ती भी कराया। भारत वापसी के बाद चूंकि कालर बोन टूट गई थी इसलिये विमान उड़ाने में ही अक्षम हो गये थे। बाद में सुरक्षित भारत लौटने पर पीएम पं.जवाहर लाल नेहरू ने कोई मांग पूरी करने की इच्छा जाहिर की, दीक्षित ने इंडोनेशियाई मछुवारों को भारतीय दूता वास से सम्मानित करने की इच्छा जाहिर की, नेहरूजी ने उनकी बात भी मानी।अशोक़ चक्र से सम्मानित भी किया गया तब वे पहले नागरिक थे जिन्हें अशोक चक्र मिला था।बाद में हमें राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने जाम्बिया,सिविल एबिएशन में भारत का प्रतिनिधि बना कर भेजा था।जाम्बिया में एमसी दीक्षित ने ‘रामायण’ का अध्ययन कर ‘रामायण पाठ’ की एक संस्था की आधारशिला भी रखी जो आज जाम्बिया में बड़ा रूप ले चुकी है।दीक्षितके भांजे, यूनियन बैंक के पूर्व अधि कारी राजेन्द्र प्रसाद तिवारी के अनुसार दीक्षितजी कश्मीर प्रिंसेस की घटना की जानकारी लोगों को देते रहते थे वहीं अपनी सांस टूटने तक रामायण कागहन अध्ययन करते रहते थे।4 दिसम्बर 2022 को एमसी दीक्षित का दिल्ली में निधन हो गया।