वन विभाग का अपने ही प्रदेश के वनांचल तेंदूपत्ता देहाडी मजदूर से पक्षपात का रवैया…!

विपुल कनैया,राजनांदगांव : कसूर सिर्फ इतना कि अपने परिवार के जीवकापार्जन के लिए रोजी- रोटी की तलाश में दूसरे प्रदेशों में पलायन किया, कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गांव तक पहुंचने की सजा मिली।

गाँव अपने घर मे पहुंचकर भी सजा गांव के लोगों को अधूरी लगी, गांव की पंचायत ने कोरेन्टाइन के नाम पर अपनी मनमर्जी से 14 दिन 28 दिन के लिए गांव के स्कूल बिल्डिंग में कैद कर बाहर से ताला जड़ दिया।वहीं हरा सोना (तेंदूपत्ता) के सौदागरों के कर्मचारी जो दूसरे प्रदेशों से काम करने पहुंचे गांव में बेख़ौफ़ बिना रोक-टोक घूम रहे है।कोरोना संक्रमण के चलते पूरे देश मे लॉक डाउन हो गया, राजनांदगांव जिले के अधिकांश देहाडी मजदूर वनांचल क्षेत्रों से पलायन के हैदराबाद, दिल्ली, नागपुर, पुणे, हरियाणा, मुम्बई और अन्य प्रदेशों में जाते है।

लॉक डाउन के बात यातायात के सारे संसाधन भी बंद होंगे, देहाडी मजदूरों के सामने अपने घरों तक पहुँचने की समस्या आ पड़ी, कुछ दिनों तक इंतजार करते रहे, फिर सब्र का बांध टूट गया, और ये देहाडी मजदूर महिलाओं और बच्चों को लेकर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर का सफर 5 से 6 चिलचिलाती धूप में दिन- रात लगातार चलकर अपने गांव पहुंचे, गांव पहुंचकर सकून की सांस भी नही ली थी कि गांव की पंचायत ने इन देहाडी मजदूरों को कोरेन्टाइन के नाम पर अपने मन मुताबिक 14 दिन और 28 दिनों के लिए गांव के बाहर स्कूल बिल्डिंग में डालकर बाहर से ताला जड़ दिया।
पंचायत द्वारा किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था इन मजदूरों के लिए नही की गई।

इन मजदूरों के लिए इन्ही के घरों से खाना पानी आता है, मजदूरों ने बताया कि 5-6 दिन लगातार पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे तो गांव में पंचायत के लोगों ने स्कूल बिल्डिंग में रखकर बाहर से ताला लगा दिया, सुबह शाम 1-1 घण्टे के लिए ही खोला जाता है, ऐसे यहां और कितने दिन रहना पड़ेगा इन्हें पता नही है।
इन्होंने बताया कि इनके घरों की भी माली हालत ठीक नही है, घरों में चाँवल तो है पर सब्जी के लिए पैसे नही है, बाहर से काम कर जो थोड़ा बहुत पैसा बचाकर रखा है उसे गांव के लोग घर वालों को देने भी नही देते, वही बच्चों के लिए बिस्किट, चॉकलेट, इत्यादि हमारे द्वारा पैसा देकर मंगवाना चाहते है,वो पैसा भी नही लेते और बच्चों को कुछ खाने का लाकर भी नही देते है।

शासन- प्रशासन का दोहरा रवैया तब देखने मिला जब एक तरफ अन्य प्रदेशों से पहुंचे देहाडी मजदूरों को अपने ही गांव- घर पहुंचकर स्कूल बिल्डिंग में गांव वालों द्वारा रखकर बाहर से ताला लगा दिया गया, वहीं छत्तीसगढ़ के हरे सोने (तेंदूपत्ता) के सौदागरों के कर्मचारी जो मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना से पहुंचकर गांव में बेख़ौफ़ बिना रोक- टोक बिंदास गांव में घूमकर काम कर रहे है।

पूरे मामले में जब हमारे संवाददाता ने वन विभाग के एसडीओ से बात की तो उनका कहना है कि उन्हें पता ही नही की कब तेंदूपत्ता ठेकेदारों के लोग गांव में पहुंचे जबकि जो लोग अन्य प्रदेशों से तेंदूपत्ता का काम करने पहुंचे है, उनकी पूरी जानकारी, पूरे दस्तावेज वनविभाग के पास मौजूद है, वही जो लोग काम करने पहुंचे है, उनका कहना भी है, की गांव में पहुंचे ही वन विभाग से रेंजर, पुलिस प्रशासन को जानकारी दे दी गई थी।

वन विभाग जानकारी छुपाकर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है, नियमानुसार इन्हें भी जिले में प्रवेश करते ही मेडिकल चेकअप कर जहां काम करना है वहां 28 दिन या फिर 14 दिन के लिए कोरेन्टाइन करना चाहिए, ये सभी तेंदूपत्ता कर्मचारी रेड जोन वाले प्रदेशों से जिले में प्रवेश किये है।

पूरा मामला जिले के वनांचल क्षेत्र पैलीमेटा गांव का है,जिले में लगभग सभी वनांचल गांव में देहाडी मजदूरों के लिए पंचायत स्तर पर कोरेन्टाइन सेंटर बनाए गए अमूमन अधिकांश गांव के कोरेन्टाइन सेंटरों में गांव के लोगों का यही रवैया देखने मिल रहा है। शासन – प्रशासन का दोहरा चरित्र समझ से परे है।

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