कुपोषित बच्चों को हरहाल में आंगनबाड़ी में लाने कलेक्टर ने दिए निर्देश कहा- ग्रामीणों की फूड हैबिट में बदलाव लाना पहला उद्देश्य

यशवंत गिरी गोस्वामी,धमतरी : धमतरी कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य ने महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की समीक्षा लेकर जिले में कुपोषण की स्थिति एवं नौनिहालों को सुपोषित करने नए सिरे से कार्य करने के निर्देश दिए।

उन्होंने इस समस्या की जड़ तक जाकर ग्रामीणों की फूड हैबिट (खानपान की आदत) में आमूल-चूल बदलाव लाने की बात कहते हुए सबसे पहले कुपोषित बच्चों को फोकस करने पर जोर दिया। साथ ही अतिगम्भीर कुपोषित बच्चों को आंगनबाड़ी केन्द्रों में अनिवार्य रूप से लाया जाए, इसकी जिम्मेदारी संबंधित आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं की होगी। इसके अलावा तीन से छह साल के बीच के गम्भीर कुपोषित बच्चों को गोद लेकर उन्हें गम्भीर अथवा सामान्य स्तर पर लाने के लिए आवश्यक विटामिन, प्रोटीन, मिनेरल्स सहित अन्य पोषक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए वृहत कार्ययोजना बनाने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए।

कलेक्टोरेट सभाकक्ष में आयोजित बैठक में कलेक्टर ने आंगनबाड़ी पर्यवेक्षकों से उनका मैदानी अनुभव पूछा तथा उनसे प्राप्त फीडबैक के आधार पर समीक्षा की। उन्होंने कहा कि कुपोषण कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक नकारात्मक मानसिकता है जिसके विरूद्ध प्रशासन को परस्पर समन्वय के साथ लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे लोगों के मानसिक स्तर में बदलाव लाना है, जो इसे गम्भीरता से नहीं लेते। विशेष तौर पर निरक्षर पालकों को कुपोषण के बारे में बताना और सुपोषण के लिए उन्हें तैयार करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।

कलेक्टर ने कहा कि प्रदेश में कुपोषण की नींव माता-पिता से आती है, जो उनके पारम्परिक खानपान में शामिल है। इसी बात को लक्षित कर कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने की मुहिम जिला प्रशासन द्वारा चलाई जाएगी।

फूड हैबिट में बदलाव लाना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य:- बैठक में कलेक्टर मौर्य ने यह बताया कि छत्तीसगढ़ में फूड हैबिट यानी आहार या भोजन की आदत काफी असंतुलित है जिसकी वजह से बच्चों में कुपोषण हावी है। उन्होंने बताया कि भोजन की थाली में चावल की मात्रा अधिक, दाल की उससे एक-चैथाई और उससे भी कम सब्जी परोसी जाती है, जबकि आहार इसके विपरीत होना चाहिए।

सब्जी-दाल की मात्रा ज्यादा और चावल की मात्रा कम होनी चाहिए, जिससे पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, मिनेरल्स, कार्बोहाइड्रेट्स तथा अन्य पोषक तत्व संतुलित स्तर में बच्चों के शरीर में जा सके। कलेक्टर ने जिले के सभी 1103 आंगनबाड़ी केन्द्रों में सुबह बंटने वाले नाश्ते में रेडी टू ईट फूड से बने व्यंजन अनिवार्य रूप से सम्मिलित करने के निर्देश दिए, साथ ही पोहा जैसे चावल से निर्मित चीजों को खाद्य सामग्री से अलग करने की बात कही। भोजन में सप्ताह में तीन दिन हरी पत्तेदार सब्जियां तथा बाकी के तीन दिन सोयाबीन, मूंगफली, मटर, चना जैसी चीजों को मीनू में शामिल करने के निर्देश दिए।

कलेक्टर ने बाड़ी विकास काॅन्सेप्ट पर आधारित गतिविधियों पर फोकस करते हुए ग्राम स्तर पर हरी सब्जियों को का उत्पादन करने, मुर्गीपालन, मछलीपालन को बढ़ावा देते हुए विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने जिला पंचायत की सी.ई.ओ.  नम्रता गांधी को कहा। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक फल-फूल और सब्जियों में प्रोटीन, विटामिन व मिनेरल्स इतनी पर्याप्त मात्रा में है कि इसका विकल्प तलाशने की आवश्यकता ही नहीं है। कलेक्टर जिले के 2103 गम्भीर कुपोषित बच्चों के भोजन में दूध, दही, पनीर आदि को शामिल कराने शासकीय एवं अशासकीय दानदाताओं के माध्यम से बच्चों को गोद लेकर मुहैया कराने पर जोर दिया।

उन्होंने स्वयं 10 अतिगम्भीर कुपोषित बच्चों को गोद लेने की बात कही। साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्र परिसर में चहारदीवारी स्थापित कर मोटरपम्प लगवाने और किचन गार्डन तैयार कर वहां उत्पादित सब्जियों को कुपोषित बच्चों के आहार का अनिवार्य हिस्सा बनाने पर भी जोर दिया। कलेक्टर ने कुपोषण को लेकर जागरूक लाने के लिए पालकों, पंचायत प्रतिनिधियों को शामिल करने के साथ-साथ विभागीय गतिविधियों के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत जानने के लिए एसडीएम, सी.ई.ओ. जनपद पंचायत तथा बीएमओ को सतत् दौरा करने के लिए निर्देशित किया।

इसके अलावा शत-प्रतिशत टीकाकरण, शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव और एएनसी चेकअप, गर्भवती महिलाओं को टिटनेस का टीका लगाने के लिए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. डी.के. तुर्रे को निर्देश दिए। आंगनबाड़ी में दर्ज बच्चों को हाथ धुलाई की आदत डालने, नेल कटर, कंघी आदि चीजें रखने के लिए भी कलेक्टर ने कहा। बैठक में महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी नायक सहित तीनों अनुविभाग के एसडीएम, जनपद पंचायत के सी.ई.ओ. तथा सेक्टर सुपरवाइजर उपस्थित रहे।

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