राजेश यादव ( लेखक / भारत कृषक समाज के पदाधिकारी हैं ) सुभाष यानी उदय…चमकदार, मृदुभाषी, प्रतिभाशाली…जी हां अपने नाम के इस अर्थ के मुताबिक ही था निमाड़ का वो लाल जिसने अपने राजनीतिक प्रभाव से पूरे देश में पिछड़े वर्ग की राजनीति को नई पहचान दी। कद में बड़े और पद मिलने के बाद भी विनम्रता उनकी पहचान रही। बात हो रही है वरिष्ठ किसान नेता सुभाष यादव की जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। आज उनकी 78 वीं जयंती है। सुभाष यादव ने निमाड़ से हरित क्रांति को जन्म दिया और सहकारिता के पुरोधा के रूप में स्थापित हुए। निमाड़ में किसान नेता के रूप में पहचान रखने वाले सुभाष यादव ने निमाड की पथरिली जमीन पर विकास के कई पौधे लगाए जो आज छाया दार वृक्ष बनकर आम लोगों को सुकून दे रहे हैं। लोग आज भी ये कहते नहीं थकते कि ये स्व यादव की देन है जो निमाड में किसानों के खेतों तक पानी पहुँचा है। किसानों के लिए विज़न रखने वाले इस नेता ने इंदिरा सागर बांध परियोजना की नीव रखने की पहल की थी।
जिसका भूमि पूजन पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया। गांधी परिवार के करीब रहे सुभाष यादव से इंदिरा गांधी बहुत प्रभावित थीं। यही कारण था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी सहकारिता के इस दूर दृष्टि रखने वाले नेता से प्रभावित हुए बिना न रह सके। राजनीति के इस योद्धा को जब प्रतिद्वंद्वी नेताओं ने परास्त करने की कोशिश की तो उन्होंने इंदौर में किसानों की विशाल रैली कर उनको जवाब भी दिया। इस आयोजन में जिसमें सोनिया गांधी ने खुद शामिल होकर एक नया राजनीतिक संदेश दिया था कि इंदिरा और राजीव के बाद सुभाष यादव अकेले नहीं हैं उनके साथ गांधी परिवार अब भी साथ खड़ा है। किसानों और पिछड़े वर्गों के नेता के तौर पर जब भी बात होती मध्यप्रदेश में सबसे पहले सुभाष यादव का नाम ही लिया जाता है। आज उसी विरासत को उनके बेटे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और छोटे बेटे सचिन यादव आगे बढ़ा रहे हैं। बेहद सरल और विनम्र अरुण यादव में अपने पिता की तरह ही संगठन क्षमता है। बीजेपी सरकार की नींव कमजोर होना अरुण यादव की संगठन क्षमता का ही परिणाम था। बाद में कांग्रेस के बड़े नेताओं को ये भली भांति समाज आ गया। खैर बात आज किसान नेता रहे सुभाष यादव की हो रही है तो ये गौर हो कि सुभाष यादव का जन्म 1 अप्रैल 1946 में ग्राम बोरावां में हुआ था । अपने जीवनकाल में उन्होंने कई राजनीतिक मुकाम हासिल किए। कृषि उनका प्रिय विषय रहा और इसी पर काम करते हुए उनकी पहचान किसान नेता के तौर पर हुई।
यादव ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत साल 1971 में प्राथमिक सहकारी समिति मर्यादित बोरावां के सदस्य के रूप में की। वे सन् 1974 में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित खरगोन के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। ये सफर रुका नहीं और वे म.प्र. के सहकारिता क्षेत्र के सबसे बड़े चेहरे बनकर उभरे । साल 1980 में म.प्र. राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए । 31 मार्च 1981 में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ नई दिल्ली के उपाध्यक्ष बनाए गए।
साल 1983 से 1989 तक नेशनल फाउंडेशन ऑफ स्टेट कोऑपरेटिव बैंक्स मुंबई के सर्व सम्मति से अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसी तरह राष्ट्रीय कृषि एवं विपणन सहकारी महासंघ (नेफेड), नई दिल्ली के उपाध्यक्ष/संचालक, ऑल इण्डिया कोऑपरेटिव स्पीनिंग मिल के संचालक, जवाहरलाल कोऑपरेटिव ग्रृप हाउसिंग सोसायटी नई दिल्ली के संस्थापक सदस्य रहे। कृभको द्वारा उन्हे सहकारिता श्री का सम्मान भी दिया गया।
यादव ने सहकारिता का अंतराष्ट्रीय अध्ययन भी किया जिसके लिए वे कई बार विदेश यात्रा पर भी गए। वे निरंतर 20 साल तक अपेक्स बैंक मप्र के चेयरमैन पद पर रहे।
सहकारिता क्षेत्र के साथ वे सन् 1971-72 में पहली बार ग्राम पंचायत बोरावां से सरपंच चुने गए। साल 1971 से 77 तक जनपद पंचायत कसरावद जिला खरगोन के अध्यक्ष पद पर रहे। वर्ष 1977 में उन्होने कांग्रेस पार्टी से पहला लोकसभा चुनाव लडा। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें साल 1980 में दोबारा लोकसभा खरगोन से अपना उम्मीद्वार घोषित किया, जिसमें उन्होंने बडी जीत हासिल की । वे दो बार 1980 एवं 1985 में लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुचे। म.प्र. की दसवी विधानसभा में कसरावद से पहली बार विधायक बने।
सन् 1998 में दुसरी बार व 2003 में तीसरी बार विधानसभा में परचम लहराया। वर्ष 1993 में वे मप्र के उपमुख्यमंत्री बनाए गए। उन्हें वर्ष 2003 में म.प्र. कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया।