{किश्त 205 }
गुरूघासीदास के व्यक्तित्व के कारण तेलासी गांव के अन्य जाति के लोग भी सत नामी समाज में शामिल हो गए, कोढ़ से ग्रस्त लोगों को अमृत पिलाकर जीवनदान, अभिशप्त तालाब का शुद्धि करण करना आदि जन श्रुतियां इस धाम से जुड़ी है।गुरूघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र गुरूअमरदास, द्वितीय पुत्र गुरूबालकदास,तीसरी पीढ़ी के वंशज गुरू अगर मनदास, गुरू अजबदास सपरिवार तेलासीबाड़ा में रहते थे। तेलासीबाड़ा को एक व्यापारी के पास गिरवी रखे जाने से मुक्त करानेतक की दिलचस्प कहानियां गुरू भक्ति की जिज्ञासा को प्रबल करती है,तेलासीबाड़ा के गुरूगद्दी कक्ष में बनी सुरंग की जनश्रुतियों पर आधारित कहानी और भी अधिक दिलचस्प हैं। कहते हैं कि सुरंग का अंत गिरौद पुरी पर होता है।तेलासी बाड़ा मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व गुरूआसकरणदास ने किया। महंतों एवं जन सहयोग से यह संभव हो पाया। हर साल तेलासीधाम में 2 दिवसीय गुरूदर्शन मेला दशहरा में आयोजित होता है। एक दिवसीय गुरू बालकदास जयंती,मुक्ति मेला लगता है। बलौदा बाजार से 35 किमी दूर भैसा-आरंग मार्ग में स्थित है,ग्राम तेलासी जहां स्थित है सतनामी पंथ के संत अमरदास की तपोभूमि जिसे तेलासीबाड़ा कहते हैं ।सतनाम पंथ के लोगों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।1840 के लगभग तेलासी बाड़ा का निमार्ण गुरुघासीदास के द्वितीय पुत्र बालकदास ने किया गया, उनका तेलासी बाड़ा में जीवन यापन होता रहा। गुरु बालकदास की मृत्यु के बाद सन 1911 में तेलासी के साथ ही 273 एकड़ जमीन एक व्यापारी गिरवी होने पर काबिज हो गये था,उसे मुक्त कराने हेतु समाज गुरू असकरणदास, राज महंत नैनदास कुर्रे के नेतृत्व 103 समाज के लोग जेल गए थे, 27 अप्रैल 19 86 को मप्र में तब केसीएम मोतीलाल वोरा द्वारा उक्त जमीन समाज को देने का निर्णय लिया गया। आज भी यह प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर के रूप में स्थापित हैं। ग्राम तेलासी सतनामी पंथ के संत अमरदास की तपोभूमि, गुरुघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र गुरु अम्मरदास का निवास था। 1856 के भीषण अकाल के चलते एक व्यापारी के हाथोँ इसे गिरवी रखा गया था, उसे 130 वर्षो बाद आन्दोलन, संघर्षो और सत्याग्रहों के बाद 27 अप्रेल 1986 को विमुक्त किया गया। (इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष तेलासी बाड़ा मुक्ति मेला का आयो जन किया जाता है।)