कहीं न सबको समंदर बहा के ले जाए….. ये खेल खत्म करो कश्तियां बदलने का..

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )       

इजराइली फोन हैकिंग सॉफ्टवेयर पेगासस द्वारा भारत समेत कम से कम दस देशों में हो रही जासूसी का खुलासा करने के लिए कई मानवाधिकार संगठनों एवं पत्रकारों ने वैश्विक स्तर पर तालमेल बना कर काम किया, जिसे ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ के नाम से जाना जा रहा है. काफी मेहनत से की गई इस जांच ने, जिसमें कई फोन नम्बरों की स्वतंत्र फॉरेन्सिक एनालिसिस भी शामिल है, भारतीय लोकतंत्र के सामने कई परेशान करने वाले सवाल खड़े कर दिये हैं. यह साबित हो गया है कि 2017—18 में सामने आये पेगासस के संभावित ‘टारगेट्स’ में कम से कम 1000 फोन नम्बर भारतीय हैं. जिनमें विपक्षी दलों के कई प्रमुख नेता, एक विपक्षी दलों को सहयोग कर रहे चुनाव रणनीतिज्ञ, बड़ी संख्या में सम्पादक और रिपोर्टर, सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश, एक चुनाव आयुक्त, सीबीआई के पूर्व प्रमुख,बहुत से मानवाधिकार व अन्य कार्यकर्ता तथा एक महिला जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीडऩ की रिपोर्ट दर्ज कराई थी तथा उनके परिजन, आदि शामिल हैं. पेगासस के निशाने पर रहे…. कई लोगों के फोन की फॉरेन्सिक जांच से स्पष्ट हो गया है कि उनके फोन में पेगासस सफलतापूर्वक डाला गया था, और विपक्ष के दलों को सहयोग करने वाले चुनाव रणनीतिकार प्रशान्त किशोर के फोन में तो वह इस महीने तक सक्रिय रूप में काम रहा था…..
इजराइली कम्पनी एनएसओ ने कहा है कि वह इस सॉफ्टवेयर को केवल सरकारों को बेचती है. स्पष्ट है कि या तो भारत सरकार, अथवा किसी अन्य देश की सरकार पत्रकारों, जजों, कार्यकर्ताओं के निजी क्षणों समेत उनके जीवन के हर पहलू की जासूसी कर रही थी. पेगासस बहुत मंहगा सॉफ्टवेयर है और एक फोन में इसे डलवाने की कीमत कम से कम डेढ़ करोड़ रुपये होती है. इस सॉफ्टवेयर के ऐसे इस्तेमाल का ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ से कोई लेना—देना नहीं है, बल्कि यह शासक पार्टी द्वारा उसके राजनीतिक आलोचकों की जासूसी करने के उद्देश्य से किया जा रहा है. ….? इस प्रकार से सूचनायें एकत्र कर विरोधियों को ब्लैकमेल किया जा सकता है, उन्हें दबाया जा सकता है या उनके खिलाफ फर्जी सबूत बना कर उन्हें झूठे केसों में फंसाया जा सकता है. यह लोकतंत्र के तीन स्तम्भों — स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका और जागरूक नागरिकों पर सीधा हमला है.
इस खुलासे के सामने आने के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो गया है कि वह जरूर कुछ छिपा रही है……? सरकार ने इन खुलासों को सीधे सीधे ‘भारत को बदनाम करने की साजिश’ कहते हुए कहा है कि उसने अपनी तरफ से कोई गलत काम नहीं किया है….? अगर सरकार ने दूसरों के फोन हैक करने के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है, तब उसे यह क्यों लग रहा है कि जो खुलासे सामने आये हैं वे ‘बदनाम’ करने की साजिश हैं? वह अकड़ दिखाने की जगह यह पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं कर रही कि किन लोगों ने पेगासस को खरीद कर भारतीय नागरिकों की जासूसी की? अगर कोई विदेशी ताकत भारतीय नागरिकों की जासूसी करवा रही है, और भारत के संसदीय एवं विधानसभा चुनावों पर असर डालने की कोशिश कर रही है, तथा एक इजरायली कम्पनी के पास संवेदनशील पदों पर बैठे कई भारतीय नागरिकों का निजी डाटा है, तो निस्संदेह रूप में यह राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगाने का एक गम्भीर मामला बनता है? ऐसे में हमारी सरकार सुरक्षा में सेंध लगाने वालों की जांच कर उनकी पहचान करने से क्यों कतरा रही है.. ?
सरकार यह भी दावा कर रही है कि उसके द्वारा की गई कोई भी निगरानी भारतीय कानूनों के प्रावधानों के अनुरूप हुई है. जन सुरक्षा को स्पष्ट खतरा होने की स्थिति में भारतीय कानून फोन टैप करने की अपवाद स्वरूप इजाजत देते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में एक अधिकृत पेनल द्वारा एक सप्ताह के अन्दर फोन टैप करने के आदेश की समीक्षा करवाना अनिवार्य है. वैसे भी पेगासस फोन टैप करने का सॉफ्टवेयर नहीं है, यह तो उन्हें हैक करने का काम करता है और भारत में हैकिंग गैरकानूनी कृत्य है. भारतीय जनता को यह जानने का हक है, और भारत सरकार को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि उसने पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा था या नहीं…..? किसने इसकी खरीद का निर्णय लिया और और किसने इसके बिल का भुगतान किया….? क्या ऐसा कोई पेनल बना था जो इस प्रकार की जासूसी की कार्यवाही की समीक्षा करे और क्या जासूसी के लिए तय किये गये नामों के चयन पर उस पेनल ने कोई स्पष्टीकरण मांगा? क्या सर्वोच्च न्यायाधीश श्री गोगोई पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाली महिला व उनके 10 परिजनों की पेगासस से जासूसी की गई थी…? इस प्रकार की निगरानी से पाये गये तथ्यों का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड रखा गया है…? यदि हां, तो ऐसे रिकॉर्ड किस अधिकारी के पास है…..

छग और इजराईल टीम….     

छत्तीसगढ़ में भी पैगासस को लेकर सियासी बवाल तेज है। छग में रमन सिंह की सरकार के समय पेगासस का इस्तेमाल करने का आरोप कांग्रेस लगा रही है वहीं डॉ. रमन सिंह ने किसी भी तरह की जांच की चुनौती भी दी है।
पैगासस जासूसी मामले के बाद छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रेस से चर्चा में कहा कि हमें सूचना मिली थी कि पैगासस कंपनी के अधिकारी छग आये थे। उन्होंने कुछ लोगों से संपर्क किया था। डॉ. रमन सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री यह बताएं कि उस समय इजराइल का वह दल किससे मिला और क्या समझौता हुआ। वैसे डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में कुछ लोगों के मोबाईल टेप होने की चर्चा उठती रही थी। भूपेश की सरकार छग में बनी तो उन्होंने 10 नवंबर 2019 को एक जांच कमेटी भी गठित की थी एसीएस सुब्रत साहू की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आईजी गुप्तवार्ता तथा संचालक जनसंपर्क सदस्य बनाए गये थे। हालांकि इस कमेटी ने क्या किया इसका खुलासा नहीं हो सका है। वैसे मिली जानकारी के अनुसार इजराइल के कुछ अधिकारी छग आये थे। इन्होंने पुलिस मुख्यालय में प्रेजेन्टेशन दिया था, कुछ का कहना है कि नक्सली क्षेत्र में तैनात सुरक्षाबल के लिए बुलेट प्रुफ जैकेट, तो बारूदी सुरंगरोधी वाहन तो घातक हथियार पर चर्चा हुई थी…। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पैगाससके अफसर आये थे….। बहरहाल क्या बातचीत हुई थी…..। क्या करारहुआ था….। बात आगे बढ़ी थी कि नहीं…. इस कपनी को किसने बुलवाया था……. आदि से संबंधित कोई रिकार्ड भी पुलिस मुख्यालय में नहीं है ऐसा पता चला है। वैसे भूपेश सरकार बनते ही पुलिस मुख्यालय में कई गोपनीय रिकार्ड भी जलाने की खबर थी। क्या इजराइल की टीम के आने-जाने, करार आदि के कागजात या रिकार्ड उस आग में जला दिये गये…। बहरहाल पैगासस जासूसी मामला आने के बाद छग में भी सरगर्मी तेज है। वैसे अक्टूबर-नवंबर 2019 के दौरान अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को की संघीय अदालत में एक मामले की सुनवाई के दौरान खुलासा हुआ था कि सैकड़ों लोगों का वाट्सअप हैक कर जासूसी की गई थी इस जासूसी कांड में प्रभावित लोगों की सूची में छग के भी पांच सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल पाए गये थे। बेला भाटिया, शालिनी गैरा, आलोक शुक्ला, शुभ्रांशु चौधरी और डिग्री प्रसाद चौहान शामिल थे। मामला सामने आने पर छग सरकार ने एक समिति बनाकर जांच का जिम्मा सौंपा था।

राजद्रोह और जीपी सिंह…?      

छत्तीसगढ़ के निलंबित आईपीएस जीपी सिंह के घर मिली डायरी में ईव्हीएम हैकरों (4-5) का नाम पता मिला है, वहीं कुछ विधायकों के मोबाईल नंबर तथा कुछ संख्या आदि भी लिखी होने की खबर मिली है हालांकि इसकी अधिकृत पुष्टी नहीं हुई है। वैसे ‘राजद्रोह’ का मामला यदि बनाया गया है तो लिखित आधार तो होगा ही… हालांकि तरह-तरह की बातें सामने आ रही है, एक अफसर के पास रहने वाली मोबाईल टेप मशीन इनके पास होने की खबर पर एसीबी ने छापा मारा था पर वह मशीन नहीं मिली है वहमशीन अभी कहां है ढाई साल में सरकार पतानहीं लगा सकी है….। वैसे दुर्ग में 2016 में दुर्ग के आईजी के पद पर पदस्थ जीपी सिंह के समय नक्सली लीडर पहाड़ सिंह ने आत्मसमर्पण किया था। एसीबी की छापेमारी में यह पता चला है कि पहाड़ सिंह से करोड़ों रूपये काहिसाब किताब मिला है, पहाड़ सिंह ने नोटबंदी के दौरान करोड़ों की रकम कुछ व्यापारियों को दे दी थी, बाद में जीपी सिंह ने डराकर कारोबारियों से रूपये ले लिये थे इस मामले की जांच आईजी विवेकानंद सिन्हा कर रहे हैं। वैसे जीपी सिंह के घर से तलाशी के दौरान बाद में कम्प्यूटर, लेपटाप सहित कुछ दस्तावेज भी मिले हैं उसकी भी जांच चल रही है। किसी एडीजी के खिलाफ राजद्रोह का मामला बनाने के पीछे ठोस सबूत होंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता वैसे एफआईआर में 48 पेज के साक्ष्य दस्तावेज की छायाप्रति संलग्न की गई है। जिसमें गंभीर और संवेदनशील बातें, लेख है। इन दस्तावेजों में राज्य के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के प्रतिनिधियों/ उम्मीदवारों के संबंध में गोपनीय विश्लेषण लेख भी है, धार्मिक मुद्दों पर भड़काऊ लेख भी है, कुल मिलाकर सरकार के खिलाफ घृणा, असंतोष उत्पन्न करने का उल्लेख है। हाईकोर्ट गये जीपी सिंह को राहत नहीं मिली है।

और अब बस……….

0 बस्तर के पूर्व सांसद दिनेश कश्यप ने कहा है कि छग में अगली सरकार भाजपा की नहीं बनने पर वे कान कटवा लेंगे?
0 31 जुलाई को राजस्व मंडल के अध्यक्ष सीके खेतान रिटायर हो रहे हैं तो सोनमणी वोरा इसी सप्ताह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए कार्यमुक्त हो जाएंगे जाहिर है एक छोटा फेरबदल मंत्रालय स्तर पर होना तय है।
0 छग मंत्रिमंडल में फेरबदल के भी संकेत 15 अगस्त के बाद होने के संकेत मिल रहे हैं।
0 पर्यटन मंडल में अटल श्रीवास्तव की नियुक्ति से कौन सबसे अधिक दुखी है।

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