( शंकर पांडे , वरिष्ठ पत्रकार )
छत्तीसगढ के घनश्याम सिंह गुप्ता को संविधान सभा ने हिंदी अनुवाद करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया था। आज हिंदी में संविधान सभा की उपलब्धता का बड़ा श्रेय इन्हे जाता है। दुर्ग छग के रहने वाले घनश्याम गुप्ता अंग्रेजों के भारत में कब्जे के समय सीपी एंड बरार स्टेट (तब मप्र, छग महाराष्ट्र आदि इसके अधीन था) के लगभग 14सालों तक विधानसभा अध्यक्ष भी रहे थे। इन्होंने ही देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को 24जनवरी1950 को संविधान सभा की हिंदी अनुवाद प्रति सौंपी थीं। यहां यह बताना भी जरुरी हे कि संविधान कि हिंदी प्रति में 282 लोगो के हस्ताक्षर हैं तो अंग्रेजी प्रति में 278 लोगो ने अपना हस्ताक्षर किया था। छत्तीसगढ के इस बेटे को आज संविधान दिवस पर नमन तथा गर्व करना बनता है।
अफवाह और मुख्य सचिव ….
छग में 89 बैच के आईएएस अमिताभ जैन का नंबर वरिष्ठता में सबसे उपर आता है वे अपने बैच के अकेले अफसर है और मुख्य सचिव हैं। 89 बैच के आईपीएस अशोक जुनेजा के डीजीपी बनने के बाद कुछ लोग हवा दे रहे हैं कि एसीएस सुब्रत साहू सीएस बन सकते हैं…? पर एक तो उनकी सर्विस 30 साल की नही हुई है, दूसरा इतनी जल्दी उन्हे सीएस बनने की जल्दी नही है क्योंकि 2028 तक उन्हेअभी नौकरी करनी है जाहिर है कि 7 साल वे सीएस रह नही सकते हैं….? छग 89बैच के अभिताभ जैन हैं। उनके बाद 90 बैच का कोई आईएएस छग में नहीं है। 91 बैच की आईएएस रेणु जी पिल्ले हैं तो 92 बैच के है सुब्रत साहू….,अभी दोनों ही एडीशनल चीफ सेक्रेटरी है। वहीं इनके बाद 93 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में है। इसके बाद प्रमुख सचिव 94 बैच की रिचा शर्मा, निधी छिब्बर, विकासशील और मनोज पिंगुआ हैं जिनमें मनोज पिंगुआ को छोड़कर बाकी तीन को केंद्र सरकार ने एडीशनल सेक्रेटरी इम्पेनल किया है, वैसे अमिताभ और रेणु पिल्ले केंद्र में एडीशनल सेक्रेटरी इम्पेनल पहले ही हो चुके हैं वहीं अमित अग्रवाल एडीशनल सेक्रेटरी के तौर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। खैर 94 के बाद 95 बैच की मनिंदर कौर, गौरव द्विवेदी है इसके बाद 97 बैच की निहारिका बारिक हैं। 98 बैच के सुबोध कुमार सिंह, एम. गीता हैं तो 99 बैच के सोनमणी वोरा का नंबर आता है। इसके बाद 2001 बैच की शहला निगार, 2002 बैच के डॉ. कमलप्रीतसिंह एवं डॉ. रोहित यादव हैं। 2003 बैच की ऋतु सेन, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, 2004 बैच की पी. संगीता, आर. प्रसन्ना, अमित कटारिया, अवलंगन पी, अलरमेल मंगई डी का नंबर आता है। बहरहाल अमिताभ मुख्य सचिव का कार्यकाल 2025 तक रहेगा वैसे अभी तक साढ़े 4 साल करीब मुख्य सचिव रहकर विवेक ढांड ने रिकार्ड बनाया है। जैसे सरकार से अच्छा तालमेल है, अच्छी छवि है उससे लगता नही है कि अभिताभ को फिलहाल डिस्टर्ब किया जाएगा…
छग में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली…?
शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, भौगोलिक स्थितियां बदल रही हैं. ऐसे में कानून व्यवस्था के सामने नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं. इसी को देखते हुए पड़ोसी राज्य मप्र के भोपाल और इंदौर में कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए कमिश्नर सिस्टम लागू करने का फैसला किया है. फिलहाल मध्य प्रदेश के किसी भी जिले में कमिश्नरी प्रणाली नहीं है। इधर छग में भी इस प्रणाली को राजधानी रायपुर में लागू होने के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे आईपीएस/आईएएस रहे स्व. अजीत जोगी ने भी इसके लिए पहल की थी पर नए बने राज्य में तत्काल यह संभव नही हो सका था।
कमिश्नर प्रणाली को आसान भाषा में समझें तो फिलहाल पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं. वो आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम, मंडल कमिश्नर या शासन के दिए निर्देश पर ही काम करते हैं. पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के ये अधिकार पुलिस अधिकारियों को मिल जाएंगे. इसमें होटल और बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार उन्हें मिल जाता है. इसके अलावा शहर में धरना प्रदर्शन की अनुमति देना, दंगे के दौरान लाठी चार्ज या कितना बल प्रयोग हो ये निर्णय सीधे पुलिस ही करेगी. यानि उनके अधिकार और ताकत बढ़ जाएंगे. पुलिस खुद फैसला लेने की हकदार हो जाएगी. ऐसा क्यों माना जाता है कि कानून व्यवस्था के लिए कमिश्नर प्रणाली ज्यादा बेहतर है. ऐसे में पुलिस कमिश्नर कोई भी निर्णय खुद ले सकते हैं. सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में ये अधिकार जिलाधिकारी (डीएम) के पास होते हैं.
पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने से पुलिस का बल बढ़ जाएगा. सबसे पहले कमिश्नर का मुख्यालय बनेगा. एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस पुलिस कमिश्नर के पद पर तैनात होंगे. शहर को जोन में बांटा जाएगा. हर जोन में डीसीपी की तैनाती की जाएगी. कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद पद
पुलिस आयुक्त या कमिश्नर – सीपी,संयुक्त आयुक्त या ज्वॉइंट कमिश्नर –जेसीपी,डिप्टी कमिश्नर डीसीपी,सहायक आयुक्त- एसीपी। पुराने रिकॉर्ड्स देखें तो आजादी से पहले अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी, इसे आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने अपनाया. कमिश्नर व्यवस्था में पुलिस कमिश्नर का सर्वोच्च पद होता. अंग्रेजों के जमाने में ये सिस्टम कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में हुआ करता था. इसमें ज्यूडिशियल पावर कमिश्नर के पास होता है. यह व्यवस्था पुलिस प्रणाली अधिनियम, 1861 पर आधारित है. यहां यह बताना जरुरी है कि छग की राजधानी रायपुर की आबादी 15 लाख पार कर गई है ,(2011 की जनगणना मे 10लाख की आबादी हो चुकी थी) 215 वर्ग किलोमीटर इसका क्षेत्रफल है।कानून व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए यहां पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार किया जा सकता है।
3 कृषि कानूनों की वापसी….
देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। कड़कड़ाती ठंड में किसानों पर वाटर कैनन चलाई, गोलियां चलाई, लाठी चार्ज किया, किसानों के रास्तों में खाइयां खुदवाईं, कीलें गडवाईं, कंटीले तार लगाये, ऊंची चौडी पत्थर की दीवारें खडी करवाईं, पीने के लिए पानी तक बंद किया……., मुट्ठीभर लोग, नकली किसान, देशद्रोही, खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी, नक्सली, आंदोलनजीवी, परजीवी जैसे तरह-तरह के विशेषणों से नवाजा, 750 से अधिक की शहादत ली, डंडो से पीटा, सिर फोड़े, पत्थर चलवाये, गाडी से रौंदकर मार डाला, किसानों को पूरी तरह से बदनाम किया। इतना सब करने के बाद अचानक मोदीजी को किसानों पर इतना प्यार क्यों आया? यदि ये सारे नकली किसान, देशद्रोही…. लोग हैं तो फिर कानून वापसी क्यूँ …?
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया नरसंहार के सूत्रधार अजय मिश्रा टेनी आज भी मोदी सरकार में है। इसलिए प्रधानमंत्री चाहकर किसानों के बीच यह संदेश नहीं भेज सकते कि यह फैसला उन्होंने किसानों से हमदर्दी के आधार पर लिया है। क्योंकि अजय मिश्रा टेनी जो कहता था कि यदि मेरा बेटा आशीष मिश्रा गुनहगार ठहरा तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। आज आशीष मिश्रा जेल में है, इसके बावजूद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री टेनी को भाजपा ने बर्खास्त तक नहीं किया ….? मोदीजी माफी मांगते हुए कहते हैं कि यह तीनों कानून किसानों की आय दुगनी करने के लिए लाया गया था, यह बात समझाने के लिए बहुत मेहनत किया पर नहीं समझा पाया इसलिए कानून समाप्त कर रहा हूँ। तो प्रधानमंत्री, उनके मंत्रीगण, शासक वर्ग की,दलाल मीडिया और उनके भक्तगण किसानों को समझाने में एक साल लगा दिए, फिर भी सब मिलकर समझा भी नहीं पाए और साल भर बाद अक्ल आयी, पर ये समझदारी यूं ही नहीं आयी है।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेता कोई कार्यक्रम नहीं कर पा रहें हैं! वहां जबरदस्त विरोध हो रहा है राज्यों के उपचुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा उसका सूपड़ा साफ हो गया और इधर 5 राज्यों में चुनाव है तो इन चुनाव को ख्याल रखते हुवे कानून की वापसी हुई है। भाजपा के नेता सतपाल मलिक जैसे राज्यपाल कई महीनों से कह रहे हैं कि ग्राउंड रिपोर्ट्स बता रही है किसानों के विरोध की वजह से यह सरकार सिर्फ यूपी का चुनाव ही नहीं हारेगी बल्कि 2024 में सत्ता से पूरी तरह बेदखल हो जाएगी….!तो किसानों से हमदर्दी में नहीं बल्कि किसान आन्दोलन के ताप से अपनी कुर्सी बचाने के लिए तथा पांच राज्यों में आसन्न चुनाव के मद्देनजर कानून वापसी की गयी है….!मनमाना फैसला थोपना निरंकुशता है तो कथित तौर पर देशहित से जुड़ा बड़ा कानून चुनावी फायदे के लिए वापस लेना मौकापरस्ती….। अब आप तय करें कि सरकार गैर-जिम्मेदार है या फिर मौका-परस्त?
और अब बस…
0बहुचर्चित नान घोटाला में आरोपी बनाए गए आईएएस अनिल टुटेजा और पूर्व आईएएस आलोक शुक्ला की जमानत रद्द करने सुप्रीम में अगली सुनवाई 30 को होगी।बढ़ सकती है मुसीबतें…?
0मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजनादगांव जिले के चिटफंड निवेशकों को 2 करोड़ 46 लाख रुपए की राशि ऑनलाइन उनके खाते में अंतरित की। कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा को भी साधुवाद..।
0छग डीजीपी का पद संभाला अशोक जुनेजा ने और डीआईजी, आईजी की पदोन्नति सूची जारी कर दी, इससे अब नीचे के लोग भी उम्मीद से हैं ।
0भाजपा के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय केवल पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चिंता जाहिर की, बल्कि प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व और उनकी भूमिका पर भी विचार की जरूरत बताई है।