मेरठ : हौसला हो तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं है। मेरठ में सकौती के रहने वाले बिल्डर के बेटे ने 14 साल की उम्र में कंप्यूटर साइंस के 11 कोर्स ऑनलाइन व ऑफलाइन पूरे कर लिए हैं। यह कोर्स सामान्य तौर 24 साल की उम्र में पूरे होते हैं।
गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रह रहे सकौती गांव निवासी गोपाल अरोरा के परिवार में पत्नी कविता अरोरा, बेटा आदर्श अरोरा व बेटी आन्या अरोरा है। उन्होंने बताया कि बेटा 9वीं कक्षा में आया है। जब बेटा कक्षा छह में था तो उन्होंने उसे रोबोटिक्स में कोर्स कराए, इस दौरान आदर्श के मन में प्रोग्रामिंग कोर्स करने की जिज्ञासा हुई। इसके बाद आदर्श ने ऑफलाइन कोर्स करने के लिए इंस्टीट्यूट व ऑनलाइन कोर्स करने के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी को नेट पर तलाशा और उसे सफलता भी मिली।
आदर्श ने बताया कि वह अमेरिका की कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहता है। लेकिन स्टैनफोर्ड ने उम्र कम बताते हुए दाखिला देने से इनकार कर दिया। अब आदर्श उम्र का मानक पूरा होने का इंतजार कर रहा है।
आदर्श ने पूरे किए यह कोर्स…
आदर्श ने कंप्यूटर साइंस के लिए लैंग्वेज सी का कोर्स करने के लिए नोएडा में कई इंस्टीट्यूट में जाकर बात की, लेकिन चार इंस्टीट्यूट ने उसकी उम्र कम बताई। एचटीएस इंस्टीट्यूट ने आदर्श के हौसले को देख उसे दाखिला दिया। जिस कोर्स के लिए आदर्श ने आवेदन किया उस कोर्स को अधिकांश बीटेक के छात्र करते हैं। सहपाठियों ने उसका नाम छोटा गुरु जी रख दिया।
आदर्श ने लैंग्वेज सी, लैंग्वेज सी प्लस, लैंग्वेज कोर जावा, एडवांस जावा कोर्स किए, जबकि ऑनलाइन इंटरोडक्शन टू सी प्लस, प्लस माइक्रोसॉफ्ट, लर्न टू प्रोग्राम जावा माइक्रोसॉफ्ट, मिशिगन यूनिवर्सिटी अमेरिका से लैंग्वेज पाइथन, पाइथन डाटा स्ट्रेक्चर, हावर्ड यूनिवर्सिटी से सीएस 50, ए वन फॉर एवरीवन दीप लर्निंग एआई से, सीएस 50 ए वन हावर्ड यूनिवर्सिटी से पूरे किए। कोर्स पूरा करने के बाद उसे प्रमाण पत्र भी दिए गए।
अल्फर्ड यूनिवर्सिटी से मिला ग्रेजुएशन के लिए ऑफर…
14 साल की उम्र में कामयाबी के बाद न्यूर्याक सिटी स्थित अल्फर्ड यूनिवर्सिटी ने आदर्श को प्रतिवर्ष जोनाथन ऐलन स्कॉलरशिप के तहत 21 हजार डालर देकर ग्रेजुएशन करने का ऑफर दिया। लेकिन आदर्श ने इस ऑफर को ठुकरा दिया।
आदर्श का कहना है कि वह इस यूनिवर्सिटी से न्यूरल नेटवर्क पर मशीन लर्निंग इंजीनियरिंग का कोर्स करेगा। उसका सपना है कि वह मशीनरी वैज्ञानिक बने। छात्र ने सफलता का श्रेय पिता गोपाल, शिक्षक गजेंद्र सिंह, रेखा वालिया और शील महलोत्रा को दिया।