रिफंड’ के प्रस्ताव से खरीदार का मुआवजा पाने का अधिकार खत्म नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी प्रोजेक्ट में देरी के चलते अगर कोई घर खरीदार उससे निकलना चाहता है तो रियल एस्टेट डेवलपर खरीदार को मुआवजा पाने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा, डेवलपर खरीदार को सिर्फ रिफंड या कुछ अन्य निकासी विकल्प की पेशकश नहीं कर सकता।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत घर खरीदार को मिले अधिकारों को और मजबूत करने वाले आदेश में कहा, मुआवजे का दावा करने का अधिकार डेवलपर्स द्वारा किए उस प्रस्ताव से अलग है जिसके तहत खरीदारों को उनकी खरीद रद्द करने का विकल्प दिया जाता है। पीठ ने कहा कि उपभोक्ता को होने वाली क्षति डेवलपर-खरीदार करार में दर्ज उस राशि के ऊपर हो सकती है, जो प्रोजेक्ट में देरी होने की स्थिति में मुआवजे की रकम निर्धारित हुई हो। एक वास्तविक फ्लैट खरीदार सिर पर छत चाहता है। ऐसे में खरीदार को उसके द्वारा अब तक दी गई रकम का भुगतान (रिफंड) पर्याप्त नहीं है।

पीठ ने कहा, वास्तविक खरीदार जिसने प्रोजेक्ट में निवेशक या फाइनेंसर के रूप में परिवार के लिए फ्लैट बुक कराया हो, उसे रिफंड प्रस्ताव देने से मुआवजे का दावा करने का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। पीठ ने यह आदेश डीएलएफ होम डेवलपर्स लिमिटेड की अपील खारिज करते हुए दिया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने डीएलएफ को कैपिटल ग्रीन्स प्रोजेक्ट (दिल्ली) के फ्लैट खरीदारों को मुआवजे देने का आदेश दिया था। आयोग के इस आदेश को डीएलएफ ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। डीएलएफ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिनाकी मिश्रा का कहना था कि अपार्टमेंट को पूरा करने में देरी उन वजहों से हुई जो डेवलपर के नियंत्रण से बाहर थी। उन्होंने यह भी कहा कि डेवलपर ने रिफंड के साथ-साथ नौ फीसदी ब्याज का भी प्रस्ताव दिया था लेकिन पीठ ने इन दलीलों को तवज्जो न देते हुए कहा कि ब्याज के साथ रिफंड देने से उपभोक्ता के मुआवजे का अधिकार खत्म नहीं हो जाता।

 

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