बस्तर की अमूल्य जड़ी बूटियों के दोहन की जरुरत..

 {किश्त118}

योगगुरू बाबा रामदेव की कंपनी पंताजलि आयुर्वेद की नजर छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर पर पड़ गयी थी। छग में दो हर्बल फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की तैयारी में बाबा थे,उसमें से एक बस्तर में भी लगाने की योजना थी।इसके लिए राज्य सरकार से दो से तीन सौ एकड़ जमीन की मांग भी की गई थी।वैसे भी बस्तर केजंगली कंद मूल से सौंदर्य उत्पाद, बेबी फूड,कैप्सूल का खोल साबूदाना पड़ोसी राज्यों में तो बनाया जा रहा है।यहां उत्पादित तिखूर का तो विदेश में निर्यात होता है। बस्तर से कच्चा मालपड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश,तेलांगाना ले जाकर साबूदाना बनाया जाता है।बस्तर में पानेवाले कोचई,तीखूर,जिमीकंद,शकरकंद,मिश्रीकंद रतालू, केऊकांदा से सौंदर्य उत्पाद, बेबीफूड बनाया जाता है तो सिमलीकांदा से साबूदाना बनाया जाता है।सूत्रों का कहना है कि यहांका तिखूर विदेशों में निर्यात भी होता है।बस्तर की इन कंदमूल को कौड़ी के भाव खरीद कर सौंदर्य उत्पाद बना कर काफी महंगे बेचा जाता है। बस्तर के नारायणपुर क्षेत्र सहित अन्य हिस्सों में तिखूर का उत्पादन होता है।इन्हें कुछ बड़े व्यापारी खरीदकर मुंबई, गुजरात बंदरगाहों से विदेश भेज देते हैं।तिखूर देश में केवल छत्तीसगढ़ ओडि़शा और बिहार में ही होता है।यहां बताना भी जरूरी है कि बस्तर में पाये जानेवाले जिमीकंद कोचई,शकरकंद मिश्रीकंद,सिमलीकंद,रसालू और केऊकांदा में स्टार्च अधिक पाया जाता है,स्टार्च अधिक होने से ही सौंदर्य उत्पाद और बेबीफूड बनाये जाते हैं।स्टार्चअधिक होने के कारण ही कुछ दवाइयों के कैप्सूल का खोल भी बनाया जाता है,स्टार्च,पानी में घुलनशील होने के कारण यह मानव स्वास्थ्य पर प्रति कूल असर नहीं डालते हैं। सूत्रों की मानें तो बस्तर से कई ट्रक सिमलीकांदा,आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरीजिले के पेदमपूरम की फैक्ट्री में भेजा जाता है।वहां साबू दाना बनाया जाता है। इन कंदों में कार्बोहाइडे्रड, पौस्टिक तत्व होते हैंजिससे मानव शरीर को ऊर्जा मिलती है।छत्तीसगढ़ में ‘ब्लडकैंसर’ जैसी खतर नाक बीमारियों के उपचार में लाभदायक जड़ीबूटिया भी पाई जाती हैँ यहां की सफेद-काली मूसली,अस गंध,ब्रह्मासार,सतावर,कुकरोड़ा,अदुसा,याददाश्त बढ़ाने ब्राम्हनी और वाच के साथ मधुमेह के इलाज़ के लिये भी गुड़मार,चिरायता सदा सुहागन,चमत्कारी जड़ी बूटी भी पाई जाती है,छ्ग सरकार ने पहले आयुर्वेद-हर्बल दवा का निर्माण करने एकइकाई लगाने का भी निर्णय लिया था। इकाई रायपुर में ही स्थापित करने की घोषणा की गयी थी।दवा निर्माण पर जोर देने के साथ ही सरगुजा में चरोटा (कैसिया तोरा)से बीज पावडर संयंत्र लगाने का भी फैसला लिया गया था। निविदा भी आमं त्रित की गयी थी।तब लघु वनोपज महासंघ के प्रबंध संचालक बी एल शरण ही हुआ करते थे।बाद में उस प्रस्ताव का क्या हुआ पता ही नही चल सका है….?बहरहाल बस्तर की अमूल्य जड़ी बूटियों का दोहनकरने हर्बल और फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की जरूरत है। बस्तर की अमूल्य जड़ी बूटियों के दोहन से मानवता कीसेवा के साथ ही लोगों कोकाम भी मिलेगा तथा सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी।

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