शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
शब्द गढऩे की आदत ने बेहद खूबसूरत शब्द गढ़वा दिया ‘आंदोलन जीवी’, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा/लोकसभा में अपने संबोधन में इस नये शब्द की रचना की है। एक परजीवी होता है जो दूसरों पर निर्भर करता है, किसान आंदोलन को तो प्रधानमंत्री ‘पवित्र’ मानते हैं पर उनके पीछे कुछ लोगों को ‘परजीवी’ कहने में भी पीछे नहीं है, उनका कहना है कि ‘कुछ लोग’ किसी भी आंदोलन में शिरकत करने स्वत: ही चले जाते हैं उन्हें ही आंदोलनजीवी, परजीवी की संज्ञा प्रधानमंत्री ने दी है। देश का मीडिया अब नये शब्द गढऩे की दिशा में सक्रिय नहीं है, पहले नये नये शब्द गढ़े जाते रहे हैं, वर्षा नहीं हुई तो एक शब्द अवर्षा गढ़ा गया था…. उसके बाद मीडिया तो नहीं कुछ तथाकथित मीडिया के संरक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘परजीवी’/ आंदोलन जीवी की संरचना की है। अब परजीवी/आंदोलन जीवी की परिभाषा क्या है यह निश्चित है देश की कुछ विपक्षी पार्टियों को लेकर यह टिप्पणी की गई है, भाजपा की केंद्र की सरकार तथा कुछ बड़े नेता कृषि के 3 कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के पीछे कुछ राजनीतिक पार्टियों की पीछे से भूमिका का आरोप मढ़ते जा रहे हैं…।
बहरहाल, भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी समेत वे सभी नेता क्या थे जिन्होंने राम मंदिर के नाम पर आंदोलन करके देश में संप्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचाई थी वे आंदोलनकारी थे या आंदोलन जीवी? जय प्रकाश नारायण क्या थे, जिनके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगा हुआ था। वे क्या थे आंदोलनकारी या आंदोलन जीवी? अन्ना हजारे क्या थे… जिनकी पीठ पर सवार होकर प्रधानमंत्री पद की यात्रा पूरी हुई आंदोलनकारी थे या आंदोलनजीवी…। आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, कई आंदोलनकारियों के प्रेरणा स्त्रोत थे अब यह बहस भी शुरू हो सकती है कि वे क्या थे आंदोलनकारी या आंदोलन जीवी….?
खैर जब अन्ना आंदोलन चल रहा था तब कोई नहीं कह रहा था कि यह राजनीति है, तब कोई नहीं कह रहा था कि यह सरकार के खिलाफ साजिश है जबकि उस समय विपक्ष में बैठे हर पार्टी के नेता आंदोलन के मंच पर खड़े होकर सरकार के खिलाफ बोला भी था। आमिर खान, अनुपम खेर, ओमपुरी जैसे बालीवुड अभिनेता लगातार आंदोलन के मंच पर मौजूद रहे पर उन्हें किसी ने देशद्रोही नहीं कहा… .अन्ना आंदोलन, निर्भया आंदोलन, बाबा रामदेव के आंदोलन में वामपंथियों सहित संघियों, भाजपाइयों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तब तो किसी ने उसे देश के खिलाफ साजिश, आंदोलनकारी आतंकी, देशद्रोही, विदेशी साजिश, खलिस्तानी नहीं कहा और न ही गैरकानूनी विदेशी फंडिंग के मनगढ़ंत आरोप लगाये… और अब जब देश के अन्नदाता 70-80 दिनों से उन कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं जिन्हें उनके भले के नाम पर थोपने का प्रयास हो रहा है तो उन्हें केंद्र सरकार चौतरफा घेरने का प्रयास क्यों कर रही है…। कीलों, खाइयों, सुरक्षा की सड़कों पर दीवार बनाकर, कानूनी कार्यवाई कर गिरफ्तार करने में आगे क्यों हैं… ये आंदोलनकारी है या आंदोलनजीवी हैं…। इसका पता तो अभी आगामी कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव में चल जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
बोधघाट और इच्छाशक्ति…
बस्तर की बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना बस्तर के विकास का नया अध्याय लिखेगी यह मानना है भूपेश बघेल का….. उनका कहना है कि इसका विरोध करने वाले आदिवासी विरोधी है इस योजना का विरोध करने वाले यह तो बताएं कि बस्तर के आदिवासी किसानों के खेत तक पानी पहुंचाने का बोधघाट के अलावा क्या विकल्प है…। अभी इंद्रावती नदी के 11 टीएमसी जल का उपयोग बस्तरवासी कर रहे हैं जबकि 300 टीएमसी जल पर बस्तरवासियों का हक है… 40 वर्ष पूर्व यह हाइड्रल प्रोजेक्ट के रूप में तैयार की गई थी अब उसे सिंचाई परियोजना के रूप में परिवर्तित करने की योजना है। अब 3 लाख 66 हजार 580 हेक्टेयर में सिंचाई तथा 300 मेगावाट विद्युत उत्पादन की कल्पना इसके पीछे की गई है।
करीब 4 दशक पुरानी बस्तर की महत्वाकांक्षी बोधघाट परियोजना को केंद्र सरकार की हरी झंडी के बाद भूपेश सरकार इस दिशा में कदम बढ़ा रही है। जिसका विरोध बस्तर के कुछ नेताओं सहित भाजपा के कुछ लोग भी कर रहे हैं… बस्तर में बारसूर में 500 मेगावाट (4 यूनिट 125 मेगावाट) उत्पादन की क्षमता के लिए यह प्रस्तावित थी, परियोजना का सर्वेक्षण 1968 में प्रारंभ किया गया था। भारत सरकार ने 1979 में पर्यावरण स्वीकृति प्रदान की, पर्यावरण मंत्रालयने 5700 हेक्टेयर वन भूमि में परियोजना निर्माण के प्रयोग की अनुमति दी थी केंद्रीय जल आयोग की एक विशेषज्ञ समिति ने 8 अप्रैल 1981 को परियोजना स्थल का निरीक्षण कर निर्माण हेतु अनुमोदन भी किया था, इस परियोजना को उस समय 6 साल में पूरा करना था और परियोजना की लागत 202.20 करोड़ आंकी गई थी, 1981 में निर्माण शुरू हुआ तो वित्तीय अड़चन के चलते तत्कालीन म.प्र. की सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने विश्वबैंक से 500 करोड़ का सशर्त ऋण भी स्वीकृत करा लिया पर तब के बस्तर के कुछ नेताओं ने 42 गांव तथा 10 हजार लोगों के विस्थापित होने, वन विनाश की दुहाई देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री को हजारों पत्र भिजवाकर परियोजना को निरस्त करने का अनुरोध किया था बाद में यह परियोजना निरस्त कर दी गई बाद में इस परियोजना का विरोध करने वाले अधिकांश आदिवासी नेता मालिक मकबूजा में भी संलिप्त पाए गये। जिसमें लाखों वृक्षों की बलि इस योजना में चढ़ी थी। बोधघाट योजना निरस्त होने पर भारत सरकार को ऋण ली गई राशि लौटाने के अतिरिक्त 5 करोड़ डॉलर का भुगतान भी विश्वबैंक को करना पड़ा था। वैसे यह बताना भी जरूरी है कि इसी कालखंड में ओडि़सा के नवरंगपुर के निकट 600 मेगावाट विद्युत उत्पादन और सिंचाई परियोजना के लिए इंद्रावती नदी पर ही बांध का निर्माण किया जा रहा था। यह योजना तो पूरी हो गई पर बस्तर की बोधघाट परियोजना शैशवकाल में ही रोक दी गई। बस्तर की इस परियोजना को भूपेश सरकार अपनी इच्छाशक्ति से मूर्तरूप देने कटिबद्ध दिखाई दे रही है तो विरोध क्यों…। यह बात और है कि 209.20 करोड़ की वह परियोजना अब 22 हजार 653 करोड़ की हो गई है…।
अमिताभ जैन, सचिव इम्पैनल
छत्तीसगढ़ के 12 वें मुख्य सचिव अमिताभ जैन (आईएएस 1989 बैच) का केंद्र में सचिव पद के लिए इम्पेनल हुआ है, इसका मतलब यह है कि वे भविष्य में कभी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहें तो उन्हें सचिव पद पर नियुक्ति मिलेगी वैसे छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अमिताभ चौथे आईएएस हैं जिन्हें केंद्र में सचिव पद पर इम्पेनल हुआ है। इसके पहले मुख्य सचिव सुनील कुमार भी इम्पेनल हो चुके हैं पर जब वे इम्पेनल हुए थे तब उनके पास नौकरी के लिए अधिक समय नहीं बचा था। छत्तीसगढ़ से अंतराज्यीय प्रतिनियुक्ति पर गये वीवी आर सुब्रमणयम (अभी मुख्य सचिव जम्मू-कश्मीर) भी पहले ही केंद्र में सचिव इम्पेनल हो चुके हैं। वैसे छग काडर के आईएएस बैजेन्द्र कुमार (अब सेवानिवृत्त) भी केंद्र में सचिव इम्बीवैलेण्ट इम्पेनल हो चुके थे। ज्ञात रहे कि मूलत: छत्तीसगढिय़ा अमिताभ जैन ने अपनी स्कूली पढ़ाई दल्ली राजहरा में की है। वे आईएफएस में भी सफल रहे तथा बाद में आईएएस में भी सफल रहे। केंद्र की प्रतिनियुक्ति में वे कुछ समय लंदन में भी रहे हैं। सादा जीवन उच्च विचार की मानसिकता वाले अमिताभ जैन को ‘काम से काम’ करने वाले अधिकारी के रूप में जाना जाता है वे ‘प्रचार प्रसार’ से दूर अपने काम में ही लगे रहते हैं। गृह जेल, परिवहन, जल संसाधन, वाणिज्य कर जैसे कई विभागों में कार्यकर चुके अमिताभ की केंद्र में भी अच्छी पकड़ है क्योंकि सुनील कुमार के बाद वे दूसरे मुख्य सचिव है जो प्रतिनियुक्ति में दिल्ली में लंबे समय तक रह चुके हैं।
एक और डीजी बढ़ा….
केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ कॉडर के 1988 बैच के आईपीएस रविसिन्हा को डीजी इम्पेनल कर दिया है इसका मतलब ह है कि वे कभी भी छत्तीसगढ़ लौटते हैं तो डीजी पद पर कार्यभार सम्हालेंगे उन्हें छग सरकार डीजी के पद पर प्रोफार्मा पदोन्नत दे देगी। ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2002 में रवि सिन्हा डेपुरेशन में केंद्र में गये हैं फिर वे छत्तीसगढ़ नहीं लौटे हैं। अभी रॉ में ज्वाइन्ट डायरेक्टर के पद पर पदस्थ हैं। ज्ञात रहे कि छग में अभी डीजीपी डीएम अवस्थी हैं तो डीजी जेल संजय पिल्ले, डीजी आर के विंज, डीजी नक्सल अशोक जुनेजा हैं तो एक डीजी मुकेश गुप्ता (अभी निलंबित) हैं तथा स्वागत दास भी बतौर डीजी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर है।
और अब बस….
0 प्रधानमंत्री के आंदोलन जीवी/ परजीवी के बयान के बाद छग के वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे ने राममंदिर के नाम पर गली-मोहल्लों में चंदा करने वाले के लिए ‘चंदा जीवी’ शब्दका इजाद किया है।
0 मुख्यमंत्री सचिवालय में एक चर्चित अफसर की पूछपरख कुछ दिनों से बढ़ गई है जो शतरंज की चाल चलने में भी माहिर है।
0 छत्तीसगढ़ की तथाकथित सेक्स सीडी मामले में सीबीआई की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को भी पक्षकार बना लिया है।
0 भाजपा के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर तथा महामंत्री सवन्नी का विवाद चर्चा में है। सवन्नी वैसे नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के खास माने जाते हैं।