जयंती- 28 अक्टूबर
🔹भगिनी निवेदिता: राष्ट्र की प्रेरणा
भगिनी निवेदिता, स्वामी विवेकानंद जी की शिष्या, भारतीय समाज में शिक्षा और सुधार की अद्वितीय प्रतीक हैं। उनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड में मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल के रूप में हुआ। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें निवेदिता और भारत ने उन्हे “भगिनी” कहकर संबोधित किया, जो उनके समर्पण और उनके प्रति के प्रेमादर का प्रतीक है। निवेदिता जी ने अपने जीवन को महिला शिक्षा के लिए समर्पित किया और इसे राष्ट्र के उत्थान का आधार माना।
🔹सेवा और समर्पण
स्वामी विवेकानंद ने भगिनी निवेदिता को उनके इंग्लैंड के कार्य का सर्वोत्तम पुष्प कहा। उनका नाम ‘निवेदिता’ इस तथ्य को दर्शाता है कि उन्होंने स्वयं को भगवान और धर्म के प्रति समर्पित किया। निवेदिता जी का जीवन सेवा और समर्पण का प्रतीक था। उनके दादा और नाना स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे, और पिता धर्मोपदेशक थे।
1884 में इंग्लैंड में अध्यापन आरंभ करने के बाद, 1892 में उन्होंने रस्किन स्कूल की स्थापना की। धर्म के विषय में उनकी सोच व्यापक थी – वे मानती थीं कि धर्म एक गहन विज्ञान है। ● 13 नवंबर 1818 को, काली पूजा के पवित्र दिन, उन्होंने बालिका विद्यालय की स्थापना की। प्लेग महामारी के दौरान, स्वामीजी के साथ मिलकर उन्होंने सेवा कार्य किया।
🔹शिक्षा की परिवर्तनकारी प्रक्रिया
भगिनी निवेदिता ने शिक्षा को एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया माना, जिसमें महिलाओं की मानसिकता, आत्म-विश्वास और नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। उन्होंने अनुभव किया कि जब महिलाएँ शिक्षित होती हैं, तो वे न केवल अपने परिवारों, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं। शिक्षित महिलाएँ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं और उन्हें समान अधिकार एवं अवसर मिलने चाहिए। उनका विचार था कि शिक्षा केवल सूचना प्रदान करने का माध्यम नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करने और उत्कृष्ट चरित्र का निर्माण करने का साधन है। निवेदिता जी ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में कई नवाचार किए, जिससे अनेक महिलाओं को शिक्षा का लाभ प्राप्त हुआ। उनका दृष्टिकोण यह था कि शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में सहायता करती है। उनका उद्देश्य था कि महिलाएँ न केवल सामान्य शिक्षा प्राप्त करें, बल्कि विज्ञान, कला और अन्य विषयों में भी प्रशिक्षण लें।
🔹भगिनी निवेदिता जी ने कई संस्थानों की स्थापना की और महिलाओं के लिए विशेष पाठ्यक्रम तैयार किए, जो उन्हें सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने में सहायक रहे। उनकी शिक्षण विधियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी शिक्षाएँ न केवल उनके समय की महिलाओं को प्रेरित करती हैं, बल्कि आज भी स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक के रूप में याद की जाती हैं।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में भगिनी निवेदिता ने भारत की परंपरा, संस्कृति, ज्ञान को महत्व देने का दृष्टिकोण दिया।
🔹वह काल ऎसा था कि अंग्रेजो के गुलामी में अपने स्वत्व का विस्मरण था, भारतीयता के प्रति भारत के ही मन में अनास्था आ रही थी, ऐसे में भारत की संस्कृति, वेद ,पुराण की बाते व्यावहारिक करने की शिक्षा भगिनी ने अपने ओजस्वी वाणी से दी है।
🔹वंदे मातरम् इन शब्दों के उच्चारण से भी अंग्रेज कोड़े लगाते थे, कारावास में डालते थे तब अपने बालिका विद्यालय की प्रार्थना वंदे मातरम् रखी थी।
जिसका रोज गायन राष्ट्रभक्ति रोम रोम में जागृत करती थी।
🔹महिला शिक्षा
शारदा माता और क्रांतिकारी चाफेकर बंधुओं की माताजी का जीवन आचरण को भगिनी निवेदिता ने अनुभव किया था। अपने तीनों पुत्रो कों अंग्रेजो ने फासी दी तब भी यह माता दुख करती है की मुझे चौथा पुत्र नहीं की देश के लिये दे सकू।
ऐसी महिलाएं जिस देश में है वहाँ कभी अनपढ, पीछडा और गुलाम नहीं रह सकता।
भगिनी निवेदिता ने महिलाओं की शिक्षा और मुक्ति को केवल किताबी शिक्षा या वित्तीय स्वतंत्रता से नहीं बल्कि उच्च लक्ष्य और व्यापक भलाई के लिए स्वयं को बलिदान करने की इच्छा और आकांक्षा से जोड़ा। महिलाओं की शिक्षा और मुक्ति का अर्थ व्यक्ति का उत्थान नहीं है; इसका अर्थ है दूसरों के लिए स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार रहना। फर्क केवल इतना है कि पहले भारतीय महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने परिवार के लिए ऐसा करें, अब उनसे कहा जा रहा है कि वे महान राष्ट्रीय बलिदान में स्वयं को समर्पित करें और अपना जीवन सार्थक बनाएं।
🔹भगिनी निवेदिता ने महिला शिक्षा की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में प्रस्तुत की है:
1. स्त्री यथार्थ शक्ति पूजा : जब महिलाएँ शिक्षित और सशक्त होती हैं, तभी वे समाज में परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं। उनका मानना था कि महिलाओं का सम्मान और उनकी शक्ति की पूजा समाज के सशक्तीकरण का मूल मंत्र है।
2. धर्म शिक्षा का केंद्र बिंदु : धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि मानवता की सेवा और उच्च नैतिकता का मार्ग है। उन्होंने शिक्षा को धर्म का अभिन्न अंग मानते हुए इसे आत्म-निर्माण और समाज सुधार का साधन माना।
3. आदर्श एवं त्याग की शिक्षा : निवेदिता जी ने आदर्श और त्याग को शिक्षा के अनिवार्य तत्व माना। वे मानती थीं कि केवल ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उच्च मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भी आवश्यक है। उनके अनुसार, एक सच्चे नागरिक की पहचान उसके आदर्शों और त्याग की भावना से होती है।
4. लौकिक शिक्षा : लौकिक शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि समाज में सक्रिय भूमिका निभाने की क्षमता विकसित करना है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाए रखने का साधन है।
5. आत्मरक्षा की शिक्षा : निवेदिता जी ने आत्मरक्षा की शिक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना। उनका मानना था कि एक शिक्षित और सशक्त महिला अपनी सुरक्षा के लिए सक्षम होनी चाहिए। यह केवल शारीरिक सुरक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्म-विश्वास का भी प्रतीक है।
6. गृह विज्ञान की शिक्षा : उन्होंने गृह विज्ञान की शिक्षा को महिलाओं की आत्मनिर्भरता और प्रबंधन क्षमताओं को विकसित करने का माध्यम माना। यह उन्हें अपने परिवार की भलाई के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करती है।
7. विज्ञान की शिक्षा : निवेदिता जी का मानना था कि विज्ञान की शिक्षा से महिलाओं में तार्किक सोच और समस्या समाधान की क्षमता विकसित होती है। यह उन्हें नई चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाती है।
8. संस्कृत भाषा की शिक्षा : संस्कृत भाषा की शिक्षा को उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन की जड़ों से जोड़कर देखा। उनके अनुसार, यह शिक्षा न केवल भाषा का ज्ञान देती है, बल्कि संस्कार और नैतिक मूल्य भी सिखाती है।
9. राष्ट्रीयता की शिक्षा : भगिनी निवेदिता ने राष्ट्रीयता की शिक्षा को अत्यंत आवश्यक माना। यह विद्यार्थियों में देश प्रेम और सेवा का भाव विकसित करती है और उन्हें अपने देश के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनाती है।
10. धार्मिक शिक्षा : उन्होंने धार्मिक शिक्षा को नैतिक और आध्यात्मिक विकास का आधार माना। निवेदिता जी के अनुसार, यह शिक्षा मानवता की सेवा और सहिष्णुता के सिद्धांतों को सिखाती है।
11. व्यावसायिक शिक्षा : व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता को उन्होंने प्रमुखता दी। यह उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और समाज में एक सशक्त स्थान दिलाने का माध्यम है।
भगिनी निवेदिता उस शिक्षा की आलोचक थीं जो ‘एक बंगाली लड़की को फ्रेंच या पियानो’ सिखाती है ; इसके बजाय, उन्होंने भारतीय महिलाओं की वास्तविक शिक्षा के बारे में बात की, ‘उन्हें भारत के बारे में सोचने में सक्षम बनाना’, जो उन्हें ‘एक ऐसा व्यक्ति बनाएगा जिसके साथ जुड़कर विश्व के महानतम मस्तिष्क अभिमान की अनुभूती करेंगे।’ भगिनी निवेदिता के अनुसार, इस शिक्षा का उद्देश्य ‘अपनी बेटियों को अपने देश को देखने के लिए तैयार करना है।’ ‘भारतीय महिला की भविष्य की शिक्षा’ के संबंध में, निवेदिता ने इतिहास के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। देश के लिए प्यार देश के ज्ञान पर आधारित है। किसी को इसके इतिहास और भूगोल की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। इस संबंध में, उन्होंने लिखा, ‘राष्ट्रीयता की अवधारणा… इसी तरह, नागरिक भावना हमारे अपने शहरों, उनकी स्थिति और युग दर युग में उनके परिवर्तनों के इतिहास के अध्ययन से प्राप्त की जा सकती है।’
गुलामी की मानसिकता में जकड़े पड़े भारत के समाज में अपने संस्कृति के प्रति आदर पुनर्जजीवित करने का कार्य भगिनी निवेदिता जी ने किया |
🔹सांस्कृतिक पुनरुद्धार
भारतीय कलाओं के पुनरुद्धार में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने कई कलाकारों जैसे रबिंद्रनाथ ठाकूर और नंदलाल बसु को प्रेरित किया, जिससे भारतीय संस्कृति को नया जीवन मिला। स्वामी विवेकानंद के सानिध्य में, उन्होंने हिंदू धर्म को अपनाया और स्वतंत्र भारत का ध्वज गेरुआ रंग का रखा, जिसमें दधीचि की अस्थियों का वज्रचिन्ह अंकित था।
भगिनी निवेदिता के विचार और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका योगदान न केवल शिक्षा में, बल्कि समाज सुधार में भी महत्वपूर्ण है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि एक शिक्षित और जागरूक समाज का निर्माण कैसे किया जा सकता है। उनके विचारों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी प्रेरणा से हम आगे बढ़ सकते हैं, एक शिक्षित और सशक्त भारत की ओर।
28 अक्टूबर भगिनी निवेदिता की जयंती पर हम महिलाएं उन्हें शतशः वंदन करती हैं, जिन्होंने हमें देश राष्ट्र के प्रति के भावपूर्ण व्यवहार की शिक्षा दी है।
(राष्ट्र सेविका समिति, छत्तीसगढ़ प्रान्त, रायपुर)