फिलिप्स मार्किट,जवाहिर बाजार,गेट और सारंगढ़ के राजा

(किश्त79)

रायपुर शहर के फिलिप्स बाजार,जवाहिर बाजार का इतिहास 2 शताब्दी पुराना है।1909 में यहां फिलिप्स बाजार लगता था।हालांकि बाजार बिना नाम पहले से लगता था।रायपुर डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में इस बात का जिक्र है।इतिहासकारों की मानें तो इस बाजार का पुराना नाम फिलिप्स मार्केट रहा है।1940 में सारंगढ़ राजा जवाहिर सिंह के समय फिलिप्स बाजार को बाड़े में विकसित कराया था वहीं एक गेट भी बनवाया था इसलिए इसका नाम जवाहिर बाजार पड़ गया था।दिलचस्प यह है कि यहां बिजली बिल काफ़ी समय तक फिलिप्स मार्केट के नाम से आता है।सारंगढ़ के राजा जवाहिर सिंह ने 1940 में गेट भी बनवाया था।सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र सिंह के पिता का नाम जवाहिर सिंह था।ब्रिटिश सरकार के पॉलिटिकल एजेंट के रायपुर में रहने के कारण राजा,जमींदार, पटेल और महाजनों को सरकारी कामकाज से रायपुर आना पड़ता था।दूर से आने के कारण उन्हें रायपुर में रुकने के लिए असुविधा होती थी,वे सब यहीं बाड़ा बनाकर रहते थे।यहां अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदते थे, बाद में कुछ लोगों ने अपना स्वयं का बाड़ा भी बनवाया था, वह भी अपना अस्तित्व ख़ो चुका है।1947 में भारत आजाद हुआ और फिर विकास ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि देखते ही देखते जवाहिर द्वार के चारों तरफ कच्ची पक्की दुकानों का निर्माण हो गया।उन्हें हटा कर बाद में नगर निगम ने हाल ही में वहाँ बड़ा बाजार बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार ली है पर उस ऐतिहासिक जवाहिर गेट के साथ न्याय नहीं हुआ है।सन 1818 में अंग्रेजों ने रतनपुर से रायपुर को अपना मुख्यालय बनाया। तब रायपुर व्यापारिक केंद्र हुआ करता था।साथ ही लोग प्रशासनिक काम के लिए रायपुर आया करते थे।इतिहासकार बताते हैं कि लगभग 200 साल पहले दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदने बाहर से लोग रायपुर आया करते थे।उस समय रायपुर एक प्रमुख केंद्र माना जाता था।जवाहिर दरवाजा की भी अपनी एक अलग पहचान रखता था।लोग विश्राम करने के लिए यहां पर रुका करते थे,साथ ही अस्तबल में घोड़ों को बांधकर रखा जाता था।लेकिन बदलते समय ने इस जवाहिर दरवाजा के स्वरूप को ही बदल डाला है।सौंदर्यी करण के नाम पर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर का विनाश करके जवाहर बाजार बना दिया गया,ऐसे में आने वाली पीढ़ी को ऐतिहासिक धरोहरों की जानकारी नहीं मिल पाएगी।अब यह सिर्फ इतिहास के पन्नों पर सिमट कर रह जाएगा…..!

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